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कबीर मन पंछी भया

कबीर मन पंछी भया भावे तो उड़ जाय,
जो जैसी संगती करें वो वैसा ही फल पाय,
कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ,
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ,
हम वासी उन देश के,
जहाँ जाती वरण कुल नाहीं,
शब्द से मिलावा हो रहा देह मिलावा नाहीं
हम वासी उस देश के, जहाँ जात वर्ण कुल नाय,
ये जी शब्द मिलावा हो रहा, और देह मिलावा नाय
हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी,
रहावूँ तुम्हारी नगरी में जब लग है दाना पानी,
हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.......

खेल पर खेल तू खूब कर ले आखिर है जो जानी,
ओ अवसर थारो फेर नहीं आवे फेर मिलण को नाहीं,
हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.....

चेतन होकर चेत ज्यो भाई नहीं तो तासों हैरानी,
देखो दुनियाँ यूँ चली जावे जैसे नदियों का पानी,
हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.....

परदेशी से प्रीत लगाईं डूब गई जिंदगानी,
बोल्यो चाल्यो माफ़ करज्यो इतनी रखना मेहरबानी,
हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.....

मनुष्य जनम महा पदार्थी जैसे पारस की खानी,
कहत कबीरा सुनों भाई साधो वाणी कोई बिरले जाणि,
हम पंछी परदेशी मुसाफ़िर आये हैं सैलानी.....



kabeer man panchi bhya

kabeer man panchhi bhaya bhaave to ud jaay,
jo jaisi sangati karen vo vaisa hi phal paay,
kabeer tan panchhi bhaya, jahaan man tahaan udi jaai,
jo jaisi sangati kar, so taisa hi phal paai,
ham vaasi un desh ke,
jahaan jaati varan kul naaheen,
shabd se milaava ho raha deh milaava naaheen
ham vaasi us desh ke, jahaan jaat varn kul naay,
ye ji shabd milaava ho raha, aur deh milaava naay
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani,
rahaavoon tumhaari nagari me jab lag hai daana paani,
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani...


khel par khel too khoob kar le aakhir hai jo jaani,
o avasar thaaro pher nahi aave pher milan ko naaheen,
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani...

chetan hokar chet jyo bhaai nahi to taason hairaani,
dekho duniyaan yoon chali jaave jaise nadiyon ka paani,
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani...

paradeshi se preet lagaaeen doob gi jindagaani,
bolyo chaalyo maapah karajyo itani rkhana meharabaani,
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani...

manushy janam maha padaarthi jaise paaras ki khaani,
kahat kabeera sunon bhaai saadho vaani koi birale jaani,
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani...

kabeer man panchhi bhaya bhaave to ud jaay,
jo jaisi sangati karen vo vaisa hi phal paay,
kabeer tan panchhi bhaya, jahaan man tahaan udi jaai,
jo jaisi sangati kar, so taisa hi phal paai,
ham vaasi un desh ke,
jahaan jaati varan kul naaheen,
shabd se milaava ho raha deh milaava naaheen
ham vaasi us desh ke, jahaan jaat varn kul naay,
ye ji shabd milaava ho raha, aur deh milaava naay
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani,
rahaavoon tumhaari nagari me jab lag hai daana paani,
ham panchhi paradeshi musaapahir aaye hain sailaani...




kabeer man panchi bhya Lyrics





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