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स्वातंत्र्य गर्व उनका, जो नर फाकों में प्राण गंवाते हैं ,
पर, नहीं बेच मन का प्रकाश रोटी का मोल चुका

स्वातंत्र्य गर्व उनका, जो नर फाकों में प्राण गंवाते हैं ,
पर, नहीं बेच मन का प्रकाश रोटी का मोल चुकाते हैं ।
स्वातंत्र्य गर्व उनका, जिनपर संकट की घात न चलती है ,
तूफानों में जिनकी मशाल कुछ और तेज़ हो जलती है ।


स्वातंत्र्य उमंगो की तरंग, नर में गौरव की ज्वाला है ,
स्वातंत्र्य रूह की ग्रीवा में अनमोल विजय की माला है ।
स्वातंत्र्य भाव नर का अदम्य , वह जो चाहे कर सकता है ,
शासन की कौन बिसात, पाँव विधि की लिपि पर धर सकता है ।

जिंदगी वही तक नहीं , ध्वजा जिस जगह विगत युग ने गाड़ी,
मालूम किसी को नहीं अनागत नर की दुविधाएं सारी ।
सारा जीवन नप चुका, कहे जो, वह दासता प्रचारक है,
नर के विवेक का शत्रु , मनुज की मेधा का संहारक है ।

जो कहे सोच मत स्वयं, बात जो कहूं , मानता चल उसको,
नर की स्वतंत्रता की मणि का तू कह अराति प्रबल उसको ।
नर के स्वतंत्र चिंतन से जो डरता, कदर्य, अविचारी है,
बेड़िया बुद्धि को जो देता, जुल्मी है, अत्याचारी है ।

लक्षमण-रेखा के दास तटों तक ही जाकर फिर जाते हैं,
वर्जित समुद्र में नांव लिए स्वाधीन वीर ही जाते हैं ।
आज़ादी है अधिकार खोज की नई राह पर आने का,
आज़ादी है अधिकार नए द्वीपों का पता लगाने का ।

रोटी उसकी , जिसका अनाज ,जिसकी जमीन, जिसका श्रम हैं ,
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध , सीधा क्रम है ।
आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का ,
आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियां उड़ाने का ।

गौरव की भाषा नई सीख,भिखमंगों की आवाज बदल,
सिमटी बांहों को खोल गरुड़ ,उड़ने का अब अंदाज़ बदल ।
स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं,
रोटी क्या ? ये अम्बरवाले सारे सिंगार मिल सकते हैं ।

रचयिता - रामधारी सिंह दिनकर



swatantrya garv unka sung by Madhuri Mishra written by Ramdhari Singh Dinkar

svaatantry garv unaka, jo nar phaakon me praan ganvaate hain ,
par, nahi bech man ka prakaash roti ka mol chukaate hain
svaatantry garv unaka, jinapar sankat ki ghaat n chalati hai ,
toophaanon me jinaki mshaal kuchh aur tez ho jalati hai


svaatantry umango ki tarang, nar me gaurav ki jvaala hai ,
svaatantry rooh ki greeva me anamol vijay ki maala hai
svaatantry bhaav nar ka adamy , vah jo chaahe kar sakata hai ,
shaasan ki kaun bisaat, paanv vidhi ki lipi par dhar sakata hai

jindagi vahi tak nahi , dhavaja jis jagah vigat yug ne gaadi,
maaloom kisi ko nahi anaagat nar ki duvidhaaen saaree
saara jeevan nap chuka, kahe jo, vah daasata prchaarak hai,
nar ke vivek ka shatru , manuj ki medha ka sanhaarak hai

jo kahe soch mat svayan, baat jo kahoon , maanata chal usako,
nar ki svatantrta ki mani ka too kah araati prabal usako
nar ke svatantr chintan se jo darata, kadary, avichaari hai,
bediya buddhi ko jo deta, julmi hai, atyaachaari hai

lakshmanarekha ke daas taton tak hi jaakar phir jaate hain,
varjit samudr me naanv lie svaadheen veer hi jaate hain
aazaadi hai adhikaar khoj ki ni raah par aane ka,
aazaadi hai adhikaar ne dveepon ka pata lagaane kaa

roti usaki , jisaka anaaj ,jisaki jameen, jisaka shrm hain ,
ab kaun ulat sakata svatantrta ka susiddh , seedha kram hai
aazaadi hai adhikaar parishrm ka puneet phal paane ka ,
aazaadi hai adhikaar shoshanon ki dhajjiyaan udaane kaa

gaurav ki bhaasha ni seekh,bhikhamangon ki aavaaj badal,
simati baanhon ko khol garud ,udane ka ab andaaz badal
svaadheen manuj ki ichchha ke aage pahaad hil sakate hain,
roti kya ye ambaravaale saare singaar mil sakate hain

svaatantry garv unaka, jo nar phaakon me praan ganvaate hain ,
par, nahi bech man ka prakaash roti ka mol chukaate hain
svaatantry garv unaka, jinapar sankat ki ghaat n chalati hai ,
toophaanon me jinaki mshaal kuchh aur tez ho jalati hai




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