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जिस सुख की चाहत में तू,
दर दर को भटकता है,

जिस सुख की चाहत में तू,
दर दर को भटकता है,
वो श्याम के मंदिर में,
दिन रात बरसता है,
जिस सुख की चाहत में तु,
दर दर को भटकता है...


अनमोल है हरपल,
तेरी जिंदगानी का,
कब अंत हो जाए,
तेरी कहानी का,
जिस पावन गंगाजल से,
जीवन ये सुधरता है,
वो श्याम के मंदिर में,
दिन रात बरसता है,
जिस सुख की चाहत में तु,
दर दर को भटकता है...

जैसे भरा पानी,
सागर में खारा है,
वैसे भरा दुःख से,
जीवन हमारा है,
जिस अमृत को पिने को,
संसार तरसता है,
वो श्याम के मंदिर में,
दिन रात बरसता है,
जिस सुख की चाहत में तु,
दर दर को भटकता है...

ना कर भरोसा तू,
‘सोनू’ दीवाने पर,
तू देख ले जाकर,
इसके ठिकाने पर,
वो सावन जो धरती की,
तक़दीर बदलता है,
वो श्याम के मंदिर में,
दिन रात बरसता है,
जिस सुख की चाहत में तु,
दर दर को भटकता है...

जिस सुख की चाहत में तू,
दर दर को भटकता है,
वो श्याम के मंदिर में,
दिन रात बरसता है,
जिस सुख की चाहत में तु,
दर दर को भटकता है...




jis sukh ki chaahat me too,
dar dar ko bhatakata hai,

jis sukh ki chaahat me too,
dar dar ko bhatakata hai,
vo shyaam ke mandir me,
din raat barasata hai,
jis sukh ki chaahat me tu,
dar dar ko bhatakata hai...


anamol hai harapal,
teri jindagaani ka,
kab ant ho jaae,
teri kahaani ka,
jis paavan gangaajal se,
jeevan ye sudharata hai,
vo shyaam ke mandir me,
din raat barasata hai,
jis sukh ki chaahat me tu,
dar dar ko bhatakata hai...

jaise bhara paani,
saagar me khaara hai,
vaise bhara duhkh se,
jeevan hamaara hai,
jis amarat ko pine ko,
sansaar tarasata hai,
vo shyaam ke mandir me,
din raat barasata hai,
jis sukh ki chaahat me tu,
dar dar ko bhatakata hai...

na kar bharosa too,
sonoo deevaane par,
too dekh le jaakar,
isake thikaane par,
vo saavan jo dharati ki,
takadeer badalata hai,
vo shyaam ke mandir me,
din raat barasata hai,
jis sukh ki chaahat me tu,
dar dar ko bhatakata hai...

jis sukh ki chaahat me too,
dar dar ko bhatakata hai,
vo shyaam ke mandir me,
din raat barasata hai,
jis sukh ki chaahat me tu,
dar dar ko bhatakata hai...








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