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अकेली गई थी ब्रिज में कोई नही था मेरे मन में,
मोर पंख वाला मिल गया...

अकेली गई थी ब्रिज में कोई नही था मेरे मन में,
मोर पंख वाला मिल गया...


नींद चुराई बंसी बजा के चैन चुराया सैन चुरा के,
लग आस मेरे मन में गई थी,
वृंदावन में बांसुरी वाला मिल गया,
मोर पंख वाला मिल गया...

उसी ने बुलाया उसी ने रुलाया,
ऐसा सलोना श्याम मेरे मन भाया,
तेरी बांकी चाल देखी तेरा मुकट भी देखा,
टेढ़ी टांग वाला मिल गया,
मोर पंख वाला मिल गया...

बांके बिहारी मेरे हिर्दय में वस जाओ,
तेरे बिन श्याम सुंदर कहा चैन पाऊ,
लगन लगी तन मन में ढूंड रही मैं निधि वन में,
गउएँ वाला मिल गया मोर पंख वाला मिल गया...

अकेली गई थी ब्रिज में कोई नही था मेरे मन में,
मोर पंख वाला मिल गया...




akeli gi thi brij me koi nahi tha mere man me,
mor pankh vaala mil gayaa...

akeli gi thi brij me koi nahi tha mere man me,
mor pankh vaala mil gayaa...


neend churaai bansi baja ke chain churaaya sain chura ke,
lag aas mere man me gi thi,
vrindaavan me baansuri vaala mil gaya,
mor pankh vaala mil gayaa...

usi ne bulaaya usi ne rulaaya,
aisa salona shyaam mere man bhaaya,
teri baanki chaal dekhi tera mukat bhi dekha,
tedahi taang vaala mil gaya,
mor pankh vaala mil gayaa...

baanke bihaari mere hirday me vas jaao,
tere bin shyaam sundar kaha chain paaoo,
lagan lagi tan man me dhoond rahi mainnidhi van me,
guen vaala mil gaya mor pankh vaala mil gayaa...

akeli gi thi brij me koi nahi tha mere man me,
mor pankh vaala mil gayaa...








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