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धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है

धरा पर अँधेरा बहुत छा रहा है।
दिये से दिये को जलाना पड़ेगा॥

घना हो गया अब घरों में अँधेरा।
बढ़ा जा रहा मन्दिरों में अँधेरा॥
नहीं हाथ को हाथ अब सूझ पाता।
हमें पंथ को जगमगाना, पड़ेगा॥
दिये से दिये को जलाना पड़ेगा॥


विषम विषधरों सी बढ़ी रूढ़ियाँ हैं।
जकड़ अब गयीं मानवी पीढ़ियाँ हैं॥
खुमारी बहुत छा रही है नयन में।
नये रक्त को अब जगाना पड़ेगा॥
दिये से दिये को जलाना पड़ेगा॥


करें कुछ जतन स्वच्छ दिखें दिशायें।
भ्रमित फिर किसी को करें ना निशायें॥
अँधेरा निरकुंश हुआ जा रहा है।
हमें दम्भ उसका मिटाना पड़ेगा॥
दिये से दिये को जलाना पड़ेगा॥


हमें लोभ है इस कदर आज घेरे।
विवाहों में हम बन गए हैं लुटेरे॥
प्रलोभन यहाँ अब बहुत बढ़ गए हैं।
हमें उनमें अंकुश लगाना पड़ेगा॥
दिये से दिये को जलाना पड़ेगा॥



dhra par andhera bahut shaa raha hai

dhara par andhera bahut chha raha hai
diye se diye ko jalaana padegaa..


ghana ho gaya ab gharon me andheraa
badaha ja raha mandiron me andheraa..
nahi haath ko haath ab soojh paataa
hame panth ko jagamagaana, padegaa..
diye se diye ko jalaana padegaa..

visham vishdharon si badahi roodahiyaan hain
jakad ab gayeen maanavi peedahiyaan hain..
khumaari bahut chha rahi hai nayan me
naye rakt ko ab jagaana padegaa..
diye se diye ko jalaana padegaa..

karen kuchh jatan svachchh dikhen dishaayen
bhramit phir kisi ko karen na nishaayen..
andhera nirakunsh hua ja raha hai
hame dambh usaka mitaana padegaa..
diye se diye ko jalaana padegaa..

hame lobh hai is kadar aaj ghere
vivaahon me ham ban ge hain lutere..
pralobhan yahaan ab bahut badah ge hain
hame uname ankush lagaana padegaa..
diye se diye ko jalaana padegaa..

dhara par andhera bahut chha raha hai
diye se diye ko jalaana padegaa..




dhra par andhera bahut shaa raha hai Lyrics





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