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प्रेम जगत में सार

कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना,
विरह की वेदना में वे सदा बेचैन रहती हैं,
तड़पकर आँह भर कर और, रो रोकर ये कहती हैं,
प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

कहा उधौ ने हँसकर, अभी जाता हूँ वृन्दावन,
जरा देखूँ कि कैसा है, कठिन अनुराग का बंधन,
हैं कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल को कम बताती हैं,
निरर्थक लोक लीला का, यही गुणगान गाती हैं,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

चले मथुरा से जब कुछ दूर, वृन्दावन नज़र आया,
वहीं से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया,
उलझकर वस्त्र में काँटें, लगे उधौ को समझाने,
तुम्हारे ज्ञान पर्दा फाड़,यहाँ प्रेम दीवाने,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

विटप झुककर ये कहते थे, इधर आओ इधर आओ,
पपीहा कह रहा था पी, कहाँ यह भी तो बतलाओ,
नदी जमुना की धारा शब्द, हरि हरि का सुनाती थी,
भ्रमर गुंजार से भी यह, मधुर आवाज़ आती थी,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

गरज पहुँचे वहाँ था गोपियों का, जिस जगह मण्डल,
वहाँ थी शांत पृथ्वी वायु, धीमी व्योम था निर्मल,
सहस्रों गोपियों के बीच बैठी थी श्री राधा रानी,
सभी के मुख से रह रह कर निकलती थी यही वाणी,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

कहा उधों ने यह बढ़कर कि मैं मथुरा से आया हूँ,
सुनाता हूँ संदेसा श्याम का जो साथ लाया हूँ,
कि जब यह आत्मसत्ता ही अलख निर्गुण कहाती  है,
तो फिर क्यों मोह वश होकर वृथा यह गान गाती  है,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

कहा श्री राधिका ने तुम संदेसा ख़ूब लाये हो,
मगर ये याद रखो प्रेम की  नगरी में आए हो,
संभालो योग की पूँजी ना हाथों से निकल जाए,
कहीं विरहाग्नि में यह ज्ञान की पोथी ना जल जाए,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

अगर निर्गुण हैं हम तुम कौन कहता है ख़बर किसकी,
अलख हम तुम हैं तो किस किस को लखती है नज़र किसकी,
जो हो अद्वैत के कायल तो फिर क्यों द्वैत लेते हो,
अरे खुद ब्रह्म होकर ब्रह्म को उपदेश देते हो,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

अभी तुम खुद नहीं समझे कि किसको योग कहते हैं,
सुनो इस तौर योगी द्वैत में अद्वैत रहते हैं,
उधर मोहन बने राधा, वियोगिन की जुदाई में,
इधर राधा बनी है श्यामा, मोहन की जुदाई में,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।

सुना जब प्रेम का अद्वैत उधो की खुली आँखें,
पड़ी थी ज्ञान मद की धूल जिनमे वह धुली आंखें,
हुआ रोमांच तन में बिंदु आँखों से निकल आया,
गिरे श्री राधिका पग पर कहा गुरु मन्त्र यह पाया,
है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं है,
कहा घनश्याम, उधौ से वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान, का कुछ तत्व समझाना।



prem jagat me saar

kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaana,
virah ki vedana me ve sada bechain rahati hain,
tadapakar aanh bhar kar aur, ro rokar ye kahati hain,
prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa


kaha udhau ne hansakar, abhi jaata hoon vrindaavan,
jara dekhoon ki kaisa hai, kthin anuraag ka bandhan,
hain kaisi gopiyaan jo gyaan bal ko kam bataati hain,
nirarthak lok leela ka, yahi gunagaan gaati hain,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

chale mthura se jab kuchh door, vrindaavan nazar aaya,
vaheen se prem ne apana anokha rang dikhalaaya,
uljhakar vastr me kaanten, lage udhau ko samjhaane,
tumhaare gyaan parda phaad,yahaan prem deevaane,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

vitap jhukakar ye kahate the, idhar aao idhar aao,
papeeha kah raha tha pi, kahaan yah bhi to batalaao,
nadi jamuna ki dhaara shabd, hari hari ka sunaati thi,
bhramar gunjaar se bhi yah, mdhur aavaaz aati thi,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

garaj pahunche vahaan tha gopiyon ka, jis jagah mandal,
vahaan thi shaant parathvi vaayu, dheemi vyom tha nirmal,
sahasron gopiyon ke beech baithi thi shri radha raani,
sbhi ke mukh se rah rah kar nikalati thi yahi vaani,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

kaha udhon ne yah badahakar ki mainmthura se aaya hoon,
sunaata hoon sandesa shyaam ka jo saath laaya hoon,
ki jab yah aatmasatta hi alkh nirgun kahaati  hai,
to phir kyon moh vsh hokar vritha yah gaan gaati  hai,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

kaha shri raadhika ne tum sandesa kahoob laaye ho,
magar ye yaad rkho prem ki  nagari me aae ho,
sanbhaalo yog ki poonji na haathon se nikal jaae,
kaheen virahaagni me yah gyaan ki pothi na jal jaae,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

agar nirgun hain ham tum kaun kahata hai kahabar kisaki,
alkh ham tum hain to kis kis ko lkhati hai nazar kisaki,
jo ho advait ke kaayal to phir kyon dvait lete ho,
are khud braham hokar braham ko upadesh dete ho,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

abhi tum khud nahi samjhe ki kisako yog kahate hain,
suno is taur yogi dvait me advait rahate hain,
udhar mohan bane radha, viyogin ki judaai me,
idhar radha bani hai shyaama, mohan ki judaai me,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

suna jab prem ka advait udho ki khuli aankhen,
padi thi gyaan mad ki dhool jiname vah dhuli aankhen,
hua romaanch tan me bindu aankhon se nikal aaya,
gire shri raadhika pag par kaha guru mantr yah paaya,
hai prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa

kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaana,
virah ki vedana me ve sada bechain rahati hain,
tadapakar aanh bhar kar aur, ro rokar ye kahati hain,
prem jagat me saar aur kuchh saar nahi hai,
kaha ghanashyaam, udhau se vrindaavan jara jaana,
vahaan ki gopiyon ko gyaan, ka kuchh tatv samjhaanaa




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