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जो फूल चढ़ाने हैं तुझपर
मैं तेरा द्वार ना ढूंड सका

जो फूल चढ़ाने हैं तुझपर
मैं तेरा द्वार ना ढूंड सका
भटक रहा हूँ डगर डगर ….क्या दुख क्या सुख सब भूल मेरी
मैं उलझा हूँ इन बातों में
दिन खोया चाँदी-सोने में
सोया मैं बेसूध रातों में
तब ध्यान किया मैने तेरा
टकराया पग से जब पत्थर
मैं तेरा द्वार ना ढूंड सका
भटक रहा हूँ डगर डगर में धूप च्चावन् के बीच कही
माटी के टन को लिए फिरा
उस जगह मुझे थमा तूने
में भूले से जिस जगह गिरा
आब तू ही पाठ दिखला मुझको
सदियो से हुन्न, घर से बेघर
मैं तेरा द्वार ना ढूंड सका
भटक रहा हूँ डगर डगरमुझ में ही दोष रहा होगा
मॅन तुझको अप्राण कर ना सका
तो मुझ को देख रहा काब्से
में तेरा दर्शन कर ना सका
हर दिन हर पल चलता रहता
संग्राम कही मॅन के भीतर
मैं तेरा द्वार ना ढूंड सका
भटक रहा हूँ डगर डगर



Wo phool na ab tak chunn paya - Krishna Bhajan By Anup Jalota

jo phool chadahaane hain tujhapar
maintera dvaar na dhoond sakaa
bhatak raha hoon dagar dagar .kya dukh kya sukh sab bhool meree
mainuljha hoon in baaton me
din khoya chaandi-sone me
soya mainbesoodh raaton me
tab dhayaan kiya maine teraa
takaraaya pag se jab patthar
maintera dvaar na dhoond sakaa
bhatak raha hoon dagar dagar me dhoop chchaavan ke beech kahee
maati ke tan ko lie phiraa
us jagah mujhe thama toone
me bhoole se jis jagah giraa
aab too hi paath dikhala mujhako
sadiyo se hunn, ghar se beghar
maintera dvaar na dhoond sakaa
bhatak raha hoon dagar dagaramujh me hi dosh raha hogaa
main tujhako apraan kar na sakaa
to mujh ko dekh raha kaabse
me tera darshan kar na sakaa
har din har pal chalata rahataa
sangram kahi main ke bheetar
maintera dvaar na dhoond sakaa
bhatak raha hoon dagar dagar







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