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नदिया ना पिए कभी अपना जल, वृक्ष ना खाए कभी अपने फल ।
अपने तन का मन का धन का दूजों को दे जो दान है,

नदिया ना पिए कभी अपना जल, वृक्ष ना खाए कभी अपने फल ।
अपने तन का मन का धन का दूजों को दे जो दान है,
वो सच्चा इंसान, अरे इस धरती का भगवन है ॥

अगर सा जिस का अंग जले और दुनिया को मीठी स्वास दे ।
दीपक सा उसका जीवन है, जो दूजों को अपना प्रकाश दे ।
धर्म है जिस का भगवत गीता, सेवा वेद कुरान है,
वो सच्चा इंसान, अरे इस धरती का भगवन है ॥

चाहे कोई गुण गान करे, चाहे करे निंदा कोई ।
फूलों से कोई सत्कार करे, कांटे चुभो जाए कोई ।
मान और अपमान ही दोनों, जिसके लिए सामान है,



nadiya na piye kabhi apna jal vriskh na khaye kabhi apne fal

nadiya na pie kbhi apana jal, vriksh na khaae kbhi apane phal
apane tan ka man ka dhan ka doojon ko de jo daan hai,
vo sachcha insaan, are is dharati ka bhagavan hai ..


agar sa jis ka ang jale aur duniya ko meethi svaas de
deepak sa usaka jeevan hai, jo doojon ko apana prakaash de
dharm hai jis ka bhagavat geeta, seva ved kuraan hai,
vo sachcha insaan, are is dharati ka bhagavan hai ..

chaahe koi gun gaan kare, chaahe kare ninda koee
phoolon se koi satkaar kare, kaante chubho jaae koee
maan aur apamaan hi donon, jisake lie saamaan hai,
vo sachcha insaan, are is dharati ka bhagavan hai ..

nadiya na pie kbhi apana jal, vriksh na khaae kbhi apane phal
apane tan ka man ka dhan ka doojon ko de jo daan hai,
vo sachcha insaan, are is dharati ka bhagavan hai ..




nadiya na piye kabhi apna jal vriskh na khaye kabhi apne fal Lyrics





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