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आरती सरस्वती जी: ओइम् जय वीणे वाली

ओइम् जय वीणे वाली,
मैया जय वीणे वाली
ऋद्धि-सिद्धि की रहती,
हाथ तेरे ताली
ऋषि मुनियों की बुद्धि को,
शुद्ध तू ही करती
स्वर्ण की भाँति शुद्ध,
तू ही माँ करती॥ 1 ॥

ज्ञान पिता को देती,
गगन शब्द से तू
विश्व को उत्पन्न करती,
आदि शक्ति से तू॥ 2 ॥

हंस-वाहिनी दीज,
भिक्षा दर्शन की
मेरे मन में केवल,
इच्छा तेरे दर्शन की॥ 3 ॥

ज्योति जगा कर नित्य,
यह आरती जो गावे
भवसागर के दुख में,
गोता न कभी खावे॥ 4 ॥



oim jay veene vaali,
maiya jay veene vaalee

oim jay veene vaali,
maiya jay veene vaalee
riddhi-siddhi ki rahati,
haath tere taalee
rishi muniyon ki buddhi ko,
shuddh too hi karatee
svarn ki bhaanti shuddh,
too hi ma karati.. 1 ..

gyaan pita ko deti,
gagan shabd se too
vishv ko utpann karati,
aadi shakti se too.. 2 ..

hans-vaahini deej,
bhiksha darshan kee
mere man me keval,
ichchha tere darshan ki.. 3 ..

jyoti jaga kar nity,
yah aarati jo gaave
bhavasaagar ke dukh me,
gota n kbhi khaave.. 4 ..







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