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हे कृष्ण कहाँ हो  आओ  तुम,  क्यूँ  भूल  गये गौ-माता को,
बसते हैं  जिसके  रोम-रोम,  सब  देव  पुनीत-सुजात?

हे कृष्ण कहाँ हो  आओ  तुम,  क्यूँ  भूल  गये गौ-माता को,
बसते हैं  जिसके  रोम-रोम,  सब  देव  पुनीत-सुजाता  को,

वृन्दावन   में  ग्वालों  के  सँग,  ले  गौएँ  भटके  वन-वन  में,
सहलाते   थे  निज   हाथों   से, यमुना-तीरे  वन-उपवन   में,

सिहरन कर गौधन निज तन में, करती थीं प्रकट भाव अपने,
किन्तु  अब-वे, अनुभव उनको, बनकर रह गये  निरा  सपने,

कह  रँभा-रँभा  अम्मा बछड़े,  जब  माँ  के  पहलू  आते  थे,
तब देख दृष्य़ वह मनमोहन !  तुम कितने  खुश हो जाते  थे,

तुम   मुरली   तान   सुनाते   थे,  वे  दौड़ी-दौड़ी  आती   थीं,
पा  दर्शन   तेरे   मनमोहन, निज-को  वे  सुरक्षित  पाती  थीं,

निज हाथों उनको तृप्त किया,  द्वापर-युग में  बनकर  ग्वाला,
इस  कारण  जग में  नाम  पड़ा,  हे कृष्ण ! तुम्हारा  गोपाला,

क्या  हुआ  तुम्हारी  मुरली  को,  क्यों नहीं  सुनाई  देते  स्वर,
कानों   के  दोनें   घुमा-घुमा,  आतुर  हैं  सुरीले   सुनने  स्वर,

अब   कोइ  करे   न   परिचर्या,  न  कोइ  उन्हें  सहलाता  है,
कर  झूठा  अभिनय  सेवा  का,  नर धेनु-भक्त  कहलाता  है,

अब मेरी बातें सुनो श्याम तुम ! कभी-कभी  मिल  पाते  हो,
मन  की दो बातें तो  कहलूँ,  हे श्याम !  कहाँ  तुम   जाते  हो,

ऐसी  क्या   जल्दी  जाने   की, माना   कि  काम  बहुत  होंगे,
कुछ देवों  के कुछ  मनुज-दनुज,  कुछ  तिर्यक-योनि के  होंगे,

जो  पावन गौएँ बसती  थीं,  हे कृष्ण !  निरन्तर  आप  हृदय,
सुनते  जाओ  उनके  दुर्दिन,  मुरलीधर !  तुमसे  यही  विनय,

हे  श्याम !  दुर्दशा  गौओं   की, अब  देखी-सुनी  नहीं  जाती,
तेरे  इस  जग  की  रीति-नीति, अब  सत्पुरुषों  को  न  भाती,

इस कलियुग में  अब लोगों को, उनके  पालन  में  रुचि  नहीं,
रहने  को   जगह नहीं  उनको,  गौ-शाला दिखती  नहीं  कहीं,

गोबर  गौमूत्र  से  घृणा   करें,  ऐसी  निष्कृष्ट  सोच   जिनकी,
तब   कौन   उन्हें  बाँधे-छोरे,  अरु  कौन   करे  सेवा  उनकी,

वे    खुले   आसमां  के   नीचे,  भूखी-प्यासी   रह  जाती  हैं,
हो   ठंडी  गरमी  या  वारिस,  कुछ  ऐसे   ही  मर   जाती  हैं,

गोचर   भूमि   पर   काबिज़  हैं,  ये   मानव   मन-के-मतवारे,
चरने  की  इनको  जगह   नहीं,  ये  जायँ  कहाँ  गिरधर-प्यारे,

अपना   दाना   तो  ले   आते,  खेतों   खलिहानों   से  मानव,
पर   पशुओं  का  चारा-भूसा,  कुछ-भी  न  लाते  घर  मानव,

हो रहा विनाश पहाड़ों का, नित खनिज काष्ठ पाषाण के हित,
मानव कहता जिसको विकास, हे श्याम ! सर्वथा है  अनुचित,

मानव  की  त्रुटियों से  कान्हाँ,  वन  घास-पात  से  हीन  हुए,
नाले  सर-सरिता   बावड़ियाँ,  मनमोहन !  नीर   विहीन  हुए,

वे    फिरती   हैं   मारी-मारी,   तेरे    जग   में   भूखी-प्यासी,
क्यूँ  आती  नहीं  दया तुझको,  दुर्दशा   देख   हे   सुख-रासी,

हैं   कुछ  बातें  ऐसीं  जिनको,  कहने   में  छाती   फटती  है,
तुम  खुद आकर देखो  कान्हाँ ! गौ कैसे  आज  सिसकती  है,

यदि   ऐसा   हाल  रहा   कान्हाँ !  तो  दूध  कहाँ   से  पायेंगे,
घी  मावा  छाछ   दही  माखन,  हे श्याम !  कहाँ   से  पायेंगे,

नवनीत  घरों  में  न  होगा  तब,  क्या  तुम  श्याम   चुराओगे,
फिर  कैसे  मुनि-जन  राधाप्रिय !  तुम माखन-चोर कहाओगे,

जब भोग लगेगा माखन  का, तब तुम  कह  दोगे  नकली  है,
फिर हम  कैसे कह  पायेंगे  कि, नहीं  श्याम !  ये  असली है,

अब तूँही जानें हे गुपाल ! कह दिया जो  कहना  था  मुझको,
अब  बारी  है   तेरी  अशोक  तूँ जानें  जो  करना   तुझको,

अब  बारी  है  तेरी  अशोक  तूँ   जानें  जो  करना  तुझको,

                                        (रचना- अशोक कुमार खरे



he krishan kaha ho aao tum kyu bhul gaye go maata ko

he krishn kahaan ho  aao  tum,  kyoon  bhool  gaye gaumaata ko,
basate hain  jisake  romarom,  sab  dev  puneetasujaata  ko


vrindaavan   me  gvaalon  ke  sang,  le  gauen  bhatake  vanavan  me,
sahalaate   the  nij   haathon   se, yamunaateere  vanupavan   me

siharan kar gaudhan nij tan me, karati theen prakat bhaav apane,
kintu  abave, anubhav unako, banakar rah gaye  nira  sapane

kah  ranbhaaranbha  amma bchhade,  jab  ma  ke  pahaloo  aate  the,
tab dekh darashy vah manamohan !  tum kitane  khush ho jaate  the

tum   murali   taan   sunaate   the,  ve  daudeedaudi  aati   theen,
pa  darshan   tere   manamohan, nijako  ve  surakshit  paati  theen

nij haathon unako tarapt kiya,  dvaaparayug me  banakar  gvaala,
is  kaaran  jag me  naam  pada,  he krishn ! tumhaara  gopaalaa

kya  hua  tumhaari  murali  ko,  kyon nahi  sunaai  dete  svar,
kaanon   ke  donen   ghumaaghuma,  aatur  hain  sureele   sunane  svar

ab   koi  kare   n   paricharya,  n  koi  unhen  sahalaata  hai,
kar  jhootha  abhinay  seva  ka,  nar dhenubhakt  kahalaata  hai

ab meri baaten suno shyaam tum ! kbheekbhi  mil  paate  ho,
man  ki do baaten to  kahaloon,  he shyaam !  kahaan  tum   jaate  ho

aisi  kya   jaldi  jaane   ki, maana   ki  kaam  bahut  honge,
kuchh devon  ke kuchh  manujadanuj,  kuchh  tiryakayoni ke  honge

jo  paavan gauen basati  theen,  he krishn !  nirantar  aap  haraday,
sunate  jaao  unake  durdin,  muraleedhar !  tumase  yahi  vinay

he  shyaam !  durdsha  gauon   ki, ab  dekheesuni  nahi  jaati,
tere  is  jag  ki  reetineeti, ab  satpurushon  ko  n  bhaatee

is kaliyug me  ab logon ko, unake  paalan  me  ruchi  nahi,
rahane  ko   jagah nahi  unako,  gaushaala dikhati  nahi  kaheen

gobar  gaumootr  se  gharana   karen,  aisi  nishkrisht  soch   jinaki,
tab   kaun   unhen  baandhechhore,  aru  kaun   kare  seva  unakee

ve    khule   aasamaan  ke   neeche,  bhookheepyaasi   rah  jaati  hain,
ho   thandi  garami  ya  vaaris,  kuchh  aise   hi  mar   jaati  hain

gochar   bhoomi   par   kaabiz  hain,  ye   maanav   manakematavaare,
charane  ki  inako  jagah   nahi,  ye  jaayan  kahaan  girdharapyaare

apana   daana   to  le   aate,  kheton   khalihaanon   se  maanav,
par   pshuon  ka  chaaraabhoosa,  kuchhbhi  n  laate  ghar  maanav

ho raha vinaash pahaadon ka, nit khanij kaashth paashaan ke hit,
maanav kahata jisako vikaas, he shyaam ! sarvtha hai  anuchit

maanav  ki  trutiyon se  kaanhaan,  van  ghaasapaat  se  heen  hue,
naale  sarasarita   baavadiyaan,  manamohan !  neer   viheen  hue

ve    phirati   hain   maareemaari,   tere    jag   me   bhookheepyaasi,
kyoon  aati  nahi  daya tujhako,  durdsha   dekh   he   sukharaasee

hain   kuchh  baaten  aiseen  jinako,  kahane   me  chhaati   phatati  hai,
tum  khud aakar dekho  kaanhaan ! gau kaise  aaj  sisakati  hai

yadi   aisa   haal  raha   kaanhaan !  to  doodh  kahaan   se  paayenge,
ghi  maava  chhaachh   dahi  maakhan,  he shyaam !  kahaan   se  paayenge

navaneet  gharon  me  n  hoga  tab,  kya  tum  shyaam   churaaoge,
phir  kaise  munijan  radhaapriy !  tum maakhanchor kahaaoge

jab bhog lagega maakhan  ka, tab tum  kah  doge  nakali  hai,
phir ham  kaise kah  paayenge  ki, nahi  shyaam !  ye  asali hai

ab toonhi jaanen he gupaal ! kah diya jo  kahana  tha  mujhako,
ab  baari  hai   teri  ashok  toon jaanen  jo  karana   tujhako

he krishn kahaan ho  aao  tum,  kyoon  bhool  gaye gaumaata ko,
basate hain  jisake  romarom,  sab  dev  puneetasujaata  ko




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