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नामनिन्दासे नाक कट गयी  [Moral Story]
छोटी सी कहानी - Hindi Story (हिन्दी कहानी)

एक बार भक्त हरिदासजी सप्तग्रामके जमींदार हिरण्य मजूमदारके यहाँ हरिनामका माहात्म्य वर्णन करते हुए बोले कि 'भक्तिपूर्वक हरिनाम लेनेसे जीवके हृदयमें जो भक्ति-प्रेमका संचार होता है, वही हरिनाम लेनेका फल है।' इसी बातचीतके सिलसिलेमें जमींदारके गोपाल चक्रवर्ती नामक एक कर्मचारीने हरिनामकी निन्दा की और यह कहा कि-'ये सब भावुकताकी बातें हैं। यदिहरिनामसे ही मनुष्यकी नीचता मिटती हो तो मैं अपनी नाक कटवा डालूँ।' हरिदासजीने भी बड़ी दृढ़तासे उत्तर दिया कि - 'भाई! यदि हरिनाम स्मरण और हरिनाम जपसे मनुष्यको मुक्ति न मिले तो मैं भी अपनी नाक कटवा डालूँगा।' कहते हैं कि दो-तीन महीने बाद ही गोपाल चक्रवर्तीकी नाक कुष्ठरोगसे गलकर गिर पड़ी। हरिनाम - निन्दाका फल प्रत्यक्ष हो गया।



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naamanindaase naak kat gayee

ek baar bhakt haridaasajee saptagraamake jameendaar hirany majoomadaarake yahaan harinaamaka maahaatmy varnan karate hue bole ki 'bhaktipoorvak harinaam lenese jeevake hridayamen jo bhakti-premaka sanchaar hota hai, vahee harinaam leneka phal hai.' isee baatacheetake silasilemen jameendaarake gopaal chakravartee naamak ek karmachaareene harinaamakee ninda kee aur yah kaha ki-'ye sab bhaavukataakee baaten hain. yadiharinaamase hee manushyakee neechata mitatee ho to main apanee naak katava daaloon.' haridaasajeene bhee bada़ee dridha़taase uttar diya ki - 'bhaaee! yadi harinaam smaran aur harinaam japase manushyako mukti n mile to main bhee apanee naak katava daaloongaa.' kahate hain ki do-teen maheene baad hee gopaal chakravarteekee naak kushtharogase galakar gir pada़ee. harinaam - nindaaka phal pratyaksh ho gayaa.

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