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अग्नियोंद्वारा उपदेश  [Short Story]
Moral Story - शिक्षदायक कहानी (Short Story)

कमलका पुत्र उपकोसल सत्यकाम जाबालके यहाँ ब्रह्मचर्य ग्रहण करके अध्ययन करता था। बारह वर्षोंतक उसने आचार्य एवं अग्रियोंकी उपासना की। आचार्यने अन्य सभी ब्रह्मचारियोंका समावर्तन-संस्कार कर दिया और उन्हें घर जानेकी आज्ञा दे दी। केवल उपकोसलको ऐसा नहीं किया।

उपकोसलके मनमें दुःख हुआ। गुरुपत्नीको उसपर दया आ गयी। उसने अपने पतिसे कहा-'इस ब्रह्मचारीने बड़ी तपस्या की है, ब्रह्मचर्यके नियमोंका पालन करते हुए विद्याध्ययन किया है। साथ ही आपकी तथा अग्रियोंकी विधिपूर्वक परिचर्या की है। अतएव कृपया इसको उपदेश कर इसका भी समावर्तन कर दीजिये। अन्यथा अग्नि आपको उलाहना देंगे।' पर सत्यकामने बात अनसुनी कर दी और बिना कुछ कहे ही वे कहीं अन्यत्र यात्रामें चले गये।

उपकोसलको इससे बड़ा क्लेश हुआ। उसने अनशन आरम्भ किया। आचार्यपत्नीने कहा- 'ब्रह्मचारी ! तुम भोजन क्यों नहीं करते ?' उसने कहा- 'माँ, मुझे बड़ा मानसिक क्लेश है, इसलिये भोजन नहीं करूँगा।'अग्नियोंने सोचा इस तपस्वी ब्रह्मचारीने मन लगाकर हमारी बहुत सेवा की है। अतएव उपदेश करके इसके मानसिक क्लेशको मिटा दिया जाय।' ऐसा विचार करके उन्होंने उपकोसलको ब्रह्मविद्याका यथोचित उपदेश दे दिया। तदनन्तर कुछ दिनों बाद उसके आचार्य सत्यकाम यात्रासे लौटे। इधर उपकोसलका मुखमण्डल ब्रह्मतेजसे देदीप्यमान हो रहा था। आचार्यने पूछा- 'सौम्य ! तेरा मुख ब्रह्मवेत्ता जैसा दीख रहा है; बता, तुझे किसने ब्रह्मका उपदेश किया ?' उपकोसलने बड़े संकोचसे सारा समाचार सुनाया। इसपर आचार्यने कहा- यह सब उपदेश तो अलौकिक नहीं है। अब मुझसे उस अलौकिक ब्रह्मतत्वका उपदेश सुन, जिसे भली प्रकार जान लेनेपर-साक्षात् कर लेनेपर पाप-ताप प्राणीको उसी प्रकार स्पर्श नहीं कर पाते, जैसे कमलके पत्तेको जल।'

इतना कहकर आचार्यने उपकोसलको ब्रह्मतत्त्वका रहस्यमय उपदेश किया और समावर्तन संस्कार करके उसे घर जानेकी आज्ञा दे दी।

- जा0 श0 (छान्दोग्य0 4। 10-15 )



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agniyondvaara upadesha

kamalaka putr upakosal satyakaam jaabaalake yahaan brahmachary grahan karake adhyayan karata thaa. baarah varshontak usane aachaary evan agriyonkee upaasana kee. aachaaryane any sabhee brahmachaariyonka samaavartana-sanskaar kar diya aur unhen ghar jaanekee aajna de dee. keval upakosalako aisa naheen kiyaa.

upakosalake manamen duhkh huaa. gurupatneeko usapar daya a gayee. usane apane patise kahaa-'is brahmachaareene bada़ee tapasya kee hai, brahmacharyake niyamonka paalan karate hue vidyaadhyayan kiya hai. saath hee aapakee tatha agriyonkee vidhipoorvak paricharya kee hai. ataev kripaya isako upadesh kar isaka bhee samaavartan kar deejiye. anyatha agni aapako ulaahana denge.' par satyakaamane baat anasunee kar dee aur bina kuchh kahe hee ve kaheen anyatr yaatraamen chale gaye.

upakosalako isase bada़a klesh huaa. usane anashan aarambh kiyaa. aachaaryapatneene kahaa- 'brahmachaaree ! tum bhojan kyon naheen karate ?' usane kahaa- 'maan, mujhe bada़a maanasik klesh hai, isaliye bhojan naheen karoongaa.'agniyonne socha is tapasvee brahmachaareene man lagaakar hamaaree bahut seva kee hai. ataev upadesh karake isake maanasik kleshako mita diya jaaya.' aisa vichaar karake unhonne upakosalako brahmavidyaaka yathochit upadesh de diyaa. tadanantar kuchh dinon baad usake aachaary satyakaam yaatraase laute. idhar upakosalaka mukhamandal brahmatejase dedeepyamaan ho raha thaa. aachaaryane poochhaa- 'saumy ! tera mukh brahmavetta jaisa deekh raha hai; bata, tujhe kisane brahmaka upadesh kiya ?' upakosalane bada़e sankochase saara samaachaar sunaayaa. isapar aachaaryane kahaa- yah sab upadesh to alaukik naheen hai. ab mujhase us alaukik brahmatatvaka upadesh sun, jise bhalee prakaar jaan lenepara-saakshaat kar lenepar paapa-taap praaneeko usee prakaar sparsh naheen kar paate, jaise kamalake patteko jala.'

itana kahakar aachaaryane upakosalako brahmatattvaka rahasyamay upadesh kiya aur samaavartan sanskaar karake use ghar jaanekee aajna de dee.

- jaa0 sha0 (chhaandogya0 4. 10-15 )

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