एक साधुकी गाय किसीने चुरा ली। जब लोग गाय ढूँढ़ने लगे, तब साधु बोले- 'गाय ले जाते समय मैंने चोरको देखा; किंतु उस समय मैं जप कर रहा था, बोल नहीं सकता था।'
'कितना दुष्ट है वह।' लोग चोरकी निन्दा करने लगे।साधुने उन्हें रोका – 'मैंने उसे क्षमा कर दिया है।
आप सब भी क्षमा कर दें।'
'ऐसा दुष्ट भी क्या क्षमा करनेयोग्य होता है। उसे तो दण्ड मिलना चाहिये।' दूसरे लोग बहुत उत्तेजित थे।साधु बोले–'उसने मेरे प्रति तो कोई अन्याय किया नहीं, मैं क्यों क्रोध करूँ और दण्ड दिलाऊँ । गाय मेरे प्रारब्धमें अब नहीं होगी इसलिये चली गयी। उसनेतो अपने प्रति ही अन्याय किया है; क्योंकि उसने चोरीका पाप किया, जिसका दण्ड उसे अब या जन्मान्तरमें अवश्य भोगना पड़ेगा ।'
ek saadhukee gaay kiseene chura lee. jab log gaay dhoondha़ne lage, tab saadhu bole- 'gaay le jaate samay mainne chorako dekhaa; kintu us samay main jap kar raha tha, bol naheen sakata thaa.'
'kitana dusht hai vaha.' log chorakee ninda karane lage.saadhune unhen roka – 'mainne use kshama kar diya hai.
aap sab bhee kshama kar den.'
'aisa dusht bhee kya kshama karaneyogy hota hai. use to dand milana chaahiye.' doosare log bahut uttejit the.saadhu bole–'usane mere prati to koee anyaay kiya naheen, main kyon krodh karoon aur dand dilaaoon . gaay mere praarabdhamen ab naheen hogee isaliye chalee gayee. usaneto apane prati hee anyaay kiya hai; kyonki usane choreeka paap kiya, jisaka dand use ab ya janmaantaramen avashy bhogana pada़ega .'