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प्रसादका अपमान  [हिन्दी कहानी]
बोध कथा - Shikshaprad Kahani (छोटी सी कहानी)

प्रसादो जगदीशस्य अन्नपानादिकं च यत् ।

ब्रह्मवन्निर्विकारं हि यथा विष्णुस्तथैव तत् ॥

नरेशका हृदय जला जा रहा था। वे मन-ही मन छटपटा रहे थे। अशान्ति बढ़ती जा रही थी। बात यह थी कि वे नियमपूर्वक प्रतिदिन भोजनके पूर्व प्रभु श्रीजगन्नाथजीका प्रसाद लिया करते थे। प्रसादके बिना वे भोजनका स्पर्श भी नहीं करते थे। प्रसादमें बड़ी निष्ठा थी उनकी। किंतु उस दिन पाकशालामें पुजारीने प्रसाद नहीं दिया था । कारण यह था कि महाराज चौपड़ खेल रहे थे खेलमें तन्मय थे। उसी समय पुजारीजी भगवत्-प्रसाद लेकर पहुँचे। नरेशने चौपड़खेलते हुए प्रसादको बायें हाथसे स्पर्श कर दिया। पुजारीजीसे प्रसादका अपमान नहीं सहा गया और उस दिन उन्होंने पाकशालामें प्रसाद नहीं दिया। उन्होंने नरेशको प्रसाद देनेका अधिकारी नहीं समझा।

धार्मिक नरेश व्यथित थे । उनका हृदय बैठा जा रहा था।‘प्रसादका अपमान करनेवाला अङ्ग अनावश्यक है।' अपनी इस धारणाके अनुसार उन्होंने अपना दाहिना हाथ अलग कर देनेका निश्चय कर लिया था ।

'मेरे शयनकक्षमें खिड़कीसे हाथ डालकर एक प्रेत प्रतिदिन मुझे डराता है।'- नरेशने हाथ कटानेकी युक्ति सोचकर अपने मन्त्रीसे कहा'रात्रिमें आपके साथ मैं भी शयन करूँगा' मन्त्रीने नरेशको निर्भीक रहनेका आश्वासन दिया।

दूसरे दिन प्रातः काल जब मन्त्रीको विदित हुआ कि खिड़कीसे हाथ डालकर हिलानेवाले महाराज ही थे और प्रेतके विचारसे मैंने अपनी तीक्ष्ण तलवारसे परम पुण्यात्मा नरेशका दाहिना हाथ काटकर अलग कर दिया है, तब उनके मनमें बड़ा खेद हुआ। वे पश्चात्ताप करने लगे। किंतु नरेश आनन्द- निमग्न थे। उनकी आकृतिपर हँसी खेल रही थी ।

श्रीपुजारीजीको प्रसाद लाते देखकर नरेशने दौड़करउनका स्वागत किया और प्रसादके लिये ललककर एक हाथ बढ़ाया, तो दूसरा हाथ भी निकल आया; यह पूर्व हाथकी अपेक्षा अधिक सुन्दर था। राजाके नये हाथके निकल आनेसे मन्त्री और सारी प्रजा भगवान्‌की जय-जयकार करने लगी।

गहत प्रसाद हाथ जमि आयौ ।

सकल पुरी जय-जय-रव छायौ ॥


श्रीजगन्नाथजीके आदेशानुसार पुजारीजीने नरेशका कटा हाथ एक खेतमें गाड़ दिया। वही दानाके पौदोंके रूपमें उग आया। 'दाना' भगवान्‌को अबतक नित्य चढ़ाया जाता है। उसकी सुगन्ध प्रभुको अत्यन्त प्रिय लगती है।

- शि0 दु0



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prasaadaka apamaana

prasaado jagadeeshasy annapaanaadikan ch yat .

brahmavannirvikaaran hi yatha vishnustathaiv tat ..

nareshaka hriday jala ja raha thaa. ve mana-hee man chhatapata rahe the. ashaanti badha़tee ja rahee thee. baat yah thee ki ve niyamapoorvak pratidin bhojanake poorv prabhu shreejagannaathajeeka prasaad liya karate the. prasaadake bina ve bhojanaka sparsh bhee naheen karate the. prasaadamen bada़ee nishtha thee unakee. kintu us din paakashaalaamen pujaareene prasaad naheen diya tha . kaaran yah tha ki mahaaraaj chaupaड़ khel rahe the khelamen tanmay the. usee samay pujaareejee bhagavat-prasaad lekar pahunche. nareshane chaupada़khelate hue prasaadako baayen haathase sparsh kar diyaa. pujaareejeese prasaadaka apamaan naheen saha gaya aur us din unhonne paakashaalaamen prasaad naheen diyaa. unhonne nareshako prasaad deneka adhikaaree naheen samajhaa.

dhaarmik naresh vyathit the . unaka hriday baitha ja raha thaa.‘prasaadaka apamaan karanevaala ang anaavashyak hai.' apanee is dhaaranaake anusaar unhonne apana daahina haath alag kar deneka nishchay kar liya tha .

'mere shayanakakshamen khida़keese haath daalakar ek pret pratidin mujhe daraata hai.'- nareshane haath kataanekee yukti sochakar apane mantreese kahaa'raatrimen aapake saath main bhee shayan karoongaa' mantreene nareshako nirbheek rahaneka aashvaasan diyaa.

doosare din praatah kaal jab mantreeko vidit hua ki khida़keese haath daalakar hilaanevaale mahaaraaj hee the aur pretake vichaarase mainne apanee teekshn talavaarase param punyaatma nareshaka daahina haath kaatakar alag kar diya hai, tab unake manamen bada़a khed huaa. ve pashchaattaap karane lage. kintu naresh aananda- nimagn the. unakee aakritipar hansee khel rahee thee .

shreepujaareejeeko prasaad laate dekhakar nareshane dauda़karaunaka svaagat kiya aur prasaadake liye lalakakar ek haath badha़aaya, to doosara haath bhee nikal aayaa; yah poorv haathakee apeksha adhik sundar thaa. raajaake naye haathake nikal aanese mantree aur saaree praja bhagavaan‌kee jaya-jayakaar karane lagee.

gahat prasaad haath jami aayau .

sakal puree jaya-jaya-rav chhaayau ..


shreejagannaathajeeke aadeshaanusaar pujaareejeene nareshaka kata haath ek khetamen gaada़ diyaa. vahee daanaake paudonke roopamen ug aayaa. 'daanaa' bhagavaan‌ko abatak nity chadha़aaya jaata hai. usakee sugandh prabhuko atyant priy lagatee hai.

- shi0 du0

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