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भक्तका स्वभाव  [छोटी सी कहानी]
Story To Read - Story To Read (आध्यात्मिक कथा)

प्रह्लादने गुरुओंकी बात मानकर हरिनामको न छोड़ा, तब उन्होंने गुस्सेमें भरकर अग्रिशिखाके समान प्रज्वलित शरीरवाली कृत्याको उत्पन्न किया। उसअत्यन्त भयंकर राक्षसीने अपने पैरोंकी चोटसे पृथ्वीको कँपाते हुए वहाँ प्रकट होकर बड़े क्रोधसे प्रह्लादजीकी छातीमें त्रिशूलसे प्रहार किया; किंतु उस बालककेहृदयमें लगते ही वह झलझलाता हुआ त्रिशूल टुकड़े टुकड़े होकर जमीनपर गिर पड़ा। जिस हृदयमें भगवान् श्रीहरि निरन्तर प्रकटरूपसे विराजते हैं, उसमें लगनेसे वज्रके भी टूक-टूक हो जाते हैं, फिर त्रिशूलकी तो बात ही क्या है ?

पापी पुरोहितोंने निष्पाप भक्तपर कृत्याका प्रयोग किया था, बुरा करनेवालेका ही बुरा होता इसलिये कृत्याने उन पुरोहितोंको ही मार डाला। उन्हें मारकर वह स्वयं भी नष्ट हो गयी। अपने गुरुओंको कृत्याके द्वारा जलाये जाते देखकर महामति प्रह्लाद 'हे कृष्ण ! रक्षा करो! हे अनन्त ! इन्हें बचाओ !' यों कहते हुए उनकी ओर दौड़े।

प्रह्लादजीने कहा- 'सर्वव्यापी विश्वरूप, विश्वस्रष्टा जनार्दन ! इन ब्राह्मणोंकी इस मन्त्राग्रिरूप भयानकविपत्तिसे रक्षा करो। यदि मैं इस सत्यका मानता हूँ। कि सर्वव्यापी जगद्गुरु भगवान् सभी प्राणियों में व्याप्त हैं तो इसके प्रभावसे ये पुरोहित जीवित हो जायें। यदि मैं सर्वव्यापी और अक्षय भगवान्‌को अपनेसे के रखनेवालोंमें भी देखता हूँ तो ये पुरोहितगण जीवित हो जायँ। जो लोग मुझे मारनेके लिये आये, जिन्होंने मुझे जहर दिया, आगमें जलाया, बड़े-बड़े हाथियोंसे कुचलवाया और साँपोंसे डँसवाया, उन सबके प्रति यदि मेरे मनमें एक-सा मित्रभाव सदा रहा है और मेरी कभी पाप - बुद्धि नहीं हुई है तो इस सत्यके प्रभावसे ये पुरोहित जीवित हो जायँ ।'

यों कहकर प्रह्लादने उनका स्पर्श किया और स्पर्श होते ही वे मरे हुए पुरोहित जीवित होकर उठ बैठे और प्रह्लादका मुक्तकण्ठसे गुणगान करने लगे!

-सु0 सिं0



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bhaktaka svabhaava

prahlaadane guruonkee baat maanakar harinaamako n chhoda़a, tab unhonne gussemen bharakar agrishikhaake samaan prajvalit shareeravaalee krityaako utpann kiyaa. usaatyant bhayankar raakshaseene apane paironkee chotase prithveeko kanpaate hue vahaan prakat hokar bada़e krodhase prahlaadajeekee chhaateemen trishoolase prahaar kiyaa; kintu us baalakakehridayamen lagate hee vah jhalajhalaata hua trishool tukada़e tukada़e hokar jameenapar gir pada़aa. jis hridayamen bhagavaan shreehari nirantar prakataroopase viraajate hain, usamen laganese vajrake bhee tooka-took ho jaate hain, phir trishoolakee to baat hee kya hai ?

paapee purohitonne nishpaap bhaktapar krityaaka prayog kiya tha, bura karanevaaleka hee bura hota isaliye krityaane un purohitonko hee maar daalaa. unhen maarakar vah svayan bhee nasht ho gayee. apane guruonko krityaake dvaara jalaaye jaate dekhakar mahaamati prahlaad 'he krishn ! raksha karo! he anant ! inhen bachaao !' yon kahate hue unakee or dauड़e.

prahlaadajeene kahaa- 'sarvavyaapee vishvaroop, vishvasrashta janaardan ! in braahmanonkee is mantraagriroop bhayaanakavipattise raksha karo. yadi main is satyaka maanata hoon. ki sarvavyaapee jagadguru bhagavaan sabhee praaniyon men vyaapt hain to isake prabhaavase ye purohit jeevit ho jaayen. yadi main sarvavyaapee aur akshay bhagavaan‌ko apanese ke rakhanevaalonmen bhee dekhata hoon to ye purohitagan jeevit ho jaayan. jo log mujhe maaraneke liye aaye, jinhonne mujhe jahar diya, aagamen jalaaya, bada़e-bada़e haathiyonse kuchalavaaya aur saanponse dansavaaya, un sabake prati yadi mere manamen eka-sa mitrabhaav sada raha hai aur meree kabhee paap - buddhi naheen huee hai to is satyake prabhaavase ye purohit jeevit ho jaayan .'

yon kahakar prahlaadane unaka sparsh kiya aur sparsh hote hee ve mare hue purohit jeevit hokar uth baithe aur prahlaadaka muktakanthase gunagaan karane lage!

-su0 sin0

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