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भट्टजीकी जाँघोंपर भगवान्  [छोटी सी कहानी]
Hindi Story - Story To Read (छोटी सी कहानी)

वृन्दावनमें श्रीभट्ट नामक एक महात्मा रहते थे। लोगों का कहना था कि उनकी दोनों जाँघोंपर श्रीराधा कृष्ण आकर बैठा करते हैं। एक दिन एक ग्यारह वर्षके बालकने सोचा कि मैं भी जाकर भगवान्के दर्शन करूँ। वह भागकर
भट्टजीके समीप आया। आकर उसने महात्माको प्रणाम किया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। महात्माने उसे बुलाया और खड़े रहनेका कारण पूछा। लड़केने अपनी इच्छा बता दी। इसपर उन्होंने पूछा कि 'तुमको मेरी जाँघपर कुछ दिखायी पड़ता है ?"लड़केने कहा - 'नहीं।'

महात्मा - 'बेटा! तुम्हारी आँखें अभी खराब हैं। लेकिन इसके ठीक होनेका एक उपाय है। तुम जाकर बारह वर्षतक गोवर्धन पर्वतकी परिक्रमा करो। तब तुम्हारी आँखें ठीक हो जायँगी। वहाँ जब तुमको भूख लगे, माँगकर खा लेना और जहाँ नींद आये सो जाना।' लड़का चला गया और विश्वासपूर्वक बारह वर्षतक ऐसे ही करता रहा। बारह वर्ष बीत जानेपर उसने सोचा कि अब मुझको भगवान्‌के दर्शन होंगे। यह सोचकर वह वहाँ आया।महात्माने फिर पूछा—'अब तुमको कुछ दिखायी देता है ?' उसने कहा - 'नहीं।' वह निराश हो गया। किंतु महात्माने कहा—'अच्छा, तुम फिर जाओ। इस बार तुम्हारी आँखें जरूर ठीक हो जायँगी।'

वह फिर गया और वैसे ही परिक्रमा करने लगा। बारह वर्ष बाद वह लौटा। इस बार जब महात्माने पूछा - 'तुमको कुछ दिखायी पड़ता है ?' उत्तरमें उसनेउल्लसित होकर कहा, 'मुझको आपकी एक जाँघपर श्रीराधाजी और दूसरीपर श्रीकृष्ण बैठे दिखलायी पड़े हैं।'

फिर तो उसे उस समयसे दिव्यदृष्टि प्राप्त हो गयी और वे सज्जन आगे चलकर एक प्रसिद्ध महात्मा बने, जिनकी बनायी हुई एक बड़ी सुन्दर लीलाकी पुस्तक है। सभी उनके आगे सिर झुकाते थे।
–'राधा'



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bhattajeekee jaanghonpar bhagavaan

vrindaavanamen shreebhatt naamak ek mahaatma rahate the. logon ka kahana tha ki unakee donon jaanghonpar shreeraadha krishn aakar baitha karate hain. ek din ek gyaarah varshake baalakane socha ki main bhee jaakar bhagavaanke darshan karoon. vah bhaagakara
bhattajeeke sameep aayaa. aakar usane mahaatmaako pranaam kiya aur haath joda़kar khada़a ho gayaa. mahaatmaane use bulaaya aur khada़e rahaneka kaaran poochhaa. lada़kene apanee ichchha bata dee. isapar unhonne poochha ki 'tumako meree jaanghapar kuchh dikhaayee pada़ta hai ?"lada़kene kaha - 'naheen.'

mahaatma - 'betaa! tumhaaree aankhen abhee kharaab hain. lekin isake theek honeka ek upaay hai. tum jaakar baarah varshatak govardhan parvatakee parikrama karo. tab tumhaaree aankhen theek ho jaayangee. vahaan jab tumako bhookh lage, maangakar kha lena aur jahaan neend aaye so jaanaa.' lada़ka chala gaya aur vishvaasapoorvak baarah varshatak aise hee karata rahaa. baarah varsh beet jaanepar usane socha ki ab mujhako bhagavaan‌ke darshan honge. yah sochakar vah vahaan aayaa.mahaatmaane phir poochhaa—'ab tumako kuchh dikhaayee deta hai ?' usane kaha - 'naheen.' vah niraash ho gayaa. kintu mahaatmaane kahaa—'achchha, tum phir jaao. is baar tumhaaree aankhen jaroor theek ho jaayangee.'

vah phir gaya aur vaise hee parikrama karane lagaa. baarah varsh baad vah lautaa. is baar jab mahaatmaane poochha - 'tumako kuchh dikhaayee pada़ta hai ?' uttaramen usaneullasit hokar kaha, 'mujhako aapakee ek jaanghapar shreeraadhaajee aur doosareepar shreekrishn baithe dikhalaayee pada़e hain.'

phir to use us samayase divyadrishti praapt ho gayee aur ve sajjan aage chalakar ek prasiddh mahaatma bane, jinakee banaayee huee ek bada़ee sundar leelaakee pustak hai. sabhee unake aage sir jhukaate the.
–'raadhaa'

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