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यज्ञमें या देवताके लिये की गयी पशुबलि भी पुण्योंको  [Moral Story]
हिन्दी कहानी - Wisdom Story (प्रेरक कहानी)

विदर्भदेशमें सत्य नामका एक दरिद्र ब्राह्मण था । उसका विश्वास था कि देवताके लिये पशु बलि देनी ही चाहिये। परंतु दरिद्र होनेके कारण न तो वह पशु पालन कर सकता था और न बलिदानके लिये पशु खरीद ही सकता था। इसलिये कूष्माण्डादि फलोंको ही पशु कल्पित करके, उनका बलिदान देकर हिंसाप्रधान यज्ञ एवं पूजन करता था।

एक तो वह ब्राह्मण स्वयं सदाचारी, तपस्वी, त्यागी और धर्मात्मा था और दूसरे उसकी पत्नी सुशीला पतिव्रता तथा तपस्विनी थी। उस साध्वीको पतिका हिंसाप्रधान पूजन-यज्ञ सर्वथा अरुचिकर था; किंतुपतिकी प्रसन्नताके लिये वह उनका सम्भार अनिच्छापूर्वक करती थी। कोई धर्माचरणकी सच्ची इच्छा रखता हो और उससे अज्ञानवश कोई भूल होती हो तो उस भूलको स्वयं देवता सुधार देते हैं। उस तपस्वी ब्राह्मणसे हिंसापूर्ण संकल्पकी जो भूल हो रही थी, उसे सुधारनेके लिये धर्म स्वयं मृगका रूप धारण करके उसके पास आकर बोला- 'तुम अङ्गहीन यज्ञ कर रहे हो। पशुबलिका संकल्प करके केवल फलादिमें पशुकी कल्पना करनेसे पूरा फल नहीं होता। इसलिये तुम मेरा बलिदान करो।' ब्राह्मण हिंसाप्रधान यज्ञ-पूजन करते थे, पशु बलिका संकल्प भी करते थे; किंतु उन्होंने कभी पशुबलि की नहीं थी। उनका कोमलहृदय मृगकी हत्या करनेको प्रस्तुत नहीं हुआ। ब्राह्मणने मृगको हृदयसे लगाकर कहा - 'तुम्हारा मङ्गल हो, तुम शीघ्र यहाँसे चले जाओ।'

धर्म, जो मृग बनकर आया था, ब्राह्मणसे बोला 'आप मेरा वध कीजिये यज्ञमें मारे जानेसे मेरी सद्रति होगी और पशु बलि करके आप भी स्वर्ग प्राप्त करेंगे। आप इस समय स्वर्गकी अप्सराओं तथा गन्धर्वोके विचित्र विमानोंको देख सकते हैं।'

ब्राह्मण यह भूल गया कि मृगने छलसे वही तर्क दिया है, जो बलिदानके पक्षपाती दिया करते हैं। स्वर्गीय विमानों तथा अप्सराओंको देखकर उसके मनमें स्वर्ग प्रातिकी कामना तीव्र हो गयी। उसने मृगका बलिदानकर देनेका विचार किया।

अब मृगने कहा—'ब्रह्मन् ! सचमुच क्या दूसरे प्राणीकी हिंसा करनेसे किसीका कल्याण सम्भव है ?' ब्राह्मणने सोचकर उत्तर दिया- 'एकका अनिष्ट करके दूसरा कैसे अपना हित कर सकता है।'

अब मृग अपने वास्तविक रूपमें प्रकट हो गया। साक्षात् धर्मराजको सामने देखकर ब्राह्मण उनके चरणोंपर गिर पड़ा। धर्मने कहा- 'ब्रह्मन् ! आपने यज्ञमें मृगको मार देनेकी इच्छा मात्र की, इसीसे आपकी तपस्याका बहुत बड़ा भाग नष्ट हो गया है। यज्ञ या पूजनमें पशु हिंसा उचित नहीं है।'उसी समयसे ब्राह्मणने यज्ञ-पूजनमें पशुबलिका संकल्प भी त्याग दिया।

- सु0 सिं0 (महाभारत, शान्ति0 272)



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yajnamen ya devataake liye kee gayee pashubali bhee punyonko

vidarbhadeshamen saty naamaka ek daridr braahman tha . usaka vishvaas tha ki devataake liye pashu bali denee hee chaahiye. parantu daridr honeke kaaran n to vah pashu paalan kar sakata tha aur n balidaanake liye pashu khareed hee sakata thaa. isaliye kooshmaandaadi phalonko hee pashu kalpit karake, unaka balidaan dekar hinsaapradhaan yajn evan poojan karata thaa.

ek to vah braahman svayan sadaachaaree, tapasvee, tyaagee aur dharmaatma tha aur doosare usakee patnee susheela pativrata tatha tapasvinee thee. us saadhveeko patika hinsaapradhaan poojana-yajn sarvatha aruchikar thaa; kintupatikee prasannataake liye vah unaka sambhaar anichchhaapoorvak karatee thee. koee dharmaacharanakee sachchee ichchha rakhata ho aur usase ajnaanavash koee bhool hotee ho to us bhoolako svayan devata sudhaar dete hain. us tapasvee braahmanase hinsaapoorn sankalpakee jo bhool ho rahee thee, use sudhaaraneke liye dharm svayan mrigaka roop dhaaran karake usake paas aakar bolaa- 'tum angaheen yajn kar rahe ho. pashubalika sankalp karake keval phalaadimen pashukee kalpana karanese poora phal naheen hotaa. isaliye tum mera balidaan karo.' braahman hinsaapradhaan yajna-poojan karate the, pashu balika sankalp bhee karate the; kintu unhonne kabhee pashubali kee naheen thee. unaka komalahriday mrigakee hatya karaneko prastut naheen huaa. braahmanane mrigako hridayase lagaakar kaha - 'tumhaara mangal ho, tum sheeghr yahaanse chale jaao.'

dharm, jo mrig banakar aaya tha, braahmanase bola 'aap mera vadh keejiye yajnamen maare jaanese meree sadrati hogee aur pashu bali karake aap bhee svarg praapt karenge. aap is samay svargakee apsaraaon tatha gandharvoke vichitr vimaanonko dekh sakate hain.'

braahman yah bhool gaya ki mrigane chhalase vahee tark diya hai, jo balidaanake pakshapaatee diya karate hain. svargeey vimaanon tatha apsaraaonko dekhakar usake manamen svarg praatikee kaamana teevr ho gayee. usane mrigaka balidaanakar deneka vichaar kiyaa.

ab mrigane kahaa—'brahman ! sachamuch kya doosare praaneekee hinsa karanese kiseeka kalyaan sambhav hai ?' braahmanane sochakar uttar diyaa- 'ekaka anisht karake doosara kaise apana hit kar sakata hai.'

ab mrig apane vaastavik roopamen prakat ho gayaa. saakshaat dharmaraajako saamane dekhakar braahman unake charanonpar gir pada़aa. dharmane kahaa- 'brahman ! aapane yajnamen mrigako maar denekee ichchha maatr kee, iseese aapakee tapasyaaka bahut bada़a bhaag nasht ho gaya hai. yajn ya poojanamen pashu hinsa uchit naheen hai.'usee samayase braahmanane yajna-poojanamen pashubalika sankalp bhee tyaag diyaa.

- su0 sin0 (mahaabhaarat, shaanti0 272)

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