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नास्तिक और आस्तिक  [Shikshaprad Kahani]
Hindi Story - आध्यात्मिक कथा (शिक्षदायक कहानी)

नास्तिक और आस्तिक

(म0म0 देवर्षि श्रीकलानाथजी शास्त्री )

भारतके मूर्धन्य वैज्ञानिक, नोबेल पुरस्कार विजेता, भारतरत्न चन्द्रशेखर वेंकटरामन् अत्यन्त व्यस्त होते हुए भी ईश्वरकी आराधना और अपने कुलके अनुरूप धर्माचरणमें प्रतिदिन कुछ समय अवश्य देते थे। एक बार जब वे संध्यावन्दन करके उठे तो एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक, जो उनसे मिलने आया था और ईश्वरमें विश्वास नहीं रखता था, कहने लगा-'श्रीमान् ! आप वैज्ञानिक होकर भी ऐसी बातोंपर विश्वास करते हैं, जो विज्ञानसे प्रमाणित नहीं हैं। आप प्रतिदिन धर्मकर्मके लिये आधा घण्टा नष्ट करते हैं, किस प्रयोजनसे ?' वेंकटरामन्ने उत्तर दिया- 'अपना परलोक सुधारनेके लिये। मृत्युके बाद सद्गति हो इसलिये।' नास्तिक वैज्ञानिकने बड़ी हिकारतसे उत्तर दिया- 'कहाँ है परलोक ? मृत्युके बाद क्या होगा, किसने देखा है? आपको मालूम है क्या ? कहीं है क्या? आपने देखा है क्या ?'
वेंकटरामन्ने संजीदगीसे कहा- 'बन्धु! मैं भी वैज्ञानिक हूँ और यह मानता हूँ कि न तो ईश्वरको किसीने देखा है, न इस बातपर मुझे विश्वास है कि परलोक है और मृत्युके बाद ऐसे धर्म-कर्मसे कोई स्वर्ग जा सकता है। मैं मानता हूँ कि सत्यापित किये बिना किसी बातको अन्धानुकरणके रूपमें नहीं मानना चाहिये ।
अब मैं पूछता हूँ कि क्या आपके विज्ञानने सत्यापित कर दिया है कि ईश्वर नहीं है? क्या निश्चित कर लिया है कि मृत्युके बाद यह होगा, वह नहीं होगा।'
नास्तिक वैज्ञानिकने उत्तर दिया- 'ये सभी बातें अनिश्चित हैं। प्रमाणित नहीं। आप भी इन्हें मानने लगे ? | कौन कह सकता है कि ईश्वर है या नहीं? मृत्युके बाद क्या होगा ?'
श्रीवेंकटरामन्जीने कहा कि यह सच है कि यह
बात बिलकुल अनिश्चित है कि ईश्वरका
परलोकका, पुनर्जन्मका, मृत्युके बादकी गतिका, कोई अस्तित्व भी है या नहीं यह सब सम्भावनामात्र है। हो सकता है कि ये नहीं हों, यह भी हो सकता है कि ये हों। यदि ये सब मिथ्या हैं और नहीं हैं तो प्रतिदिन मेरा आधा घण्टा धर्माचरणमें व्यर्थ नष्ट हुआ माना जायगा, कोई बात नहीं, कभी कभी व्यर्थके काम में कुछ समय नष्ट हो जाय तो अनर्थ नहीं हो जाता। पर कल्पना करो कि यदि कहीं ये सब सत्य हो, वास्तवमें हों तो क्या होगा? यदि इस सम्भावनाके नामपर हम अपने-आपको किसी दैनिक नियमसे बाँध लें तो क्या बुरा है? यदि इसके बिना परलोकमें दुर्गतिकी स्थिति हुई तो आपका क्या होगा ?' उस नास्तिक वैज्ञानिकके पास इसका कोई उत्तर नहीं था। हो भी नहीं सकता।



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naastik aur aastika

naastik aur aastika

(ma0ma0 devarshi shreekalaanaathajee shaastree )

bhaaratake moordhany vaijnaanik, nobel puraskaar vijeta, bhaarataratn chandrashekhar venkataraaman atyant vyast hote hue bhee eeshvarakee aaraadhana aur apane kulake anuroop dharmaacharanamen pratidin kuchh samay avashy dete the. ek baar jab ve sandhyaavandan karake uthe to ek any bhaarateey vaijnaanik, jo unase milane aaya tha aur eeshvaramen vishvaas naheen rakhata tha, kahane lagaa-'shreemaan ! aap vaijnaanik hokar bhee aisee baatonpar vishvaas karate hain, jo vijnaanase pramaanit naheen hain. aap pratidin dharmakarmake liye aadha ghanta nasht karate hain, kis prayojanase ?' venkataraamanne uttar diyaa- 'apana paralok sudhaaraneke liye. mrityuke baad sadgati ho isaliye.' naastik vaijnaanikane bada़ee hikaaratase uttar diyaa- 'kahaan hai paralok ? mrityuke baad kya hoga, kisane dekha hai? aapako maaloom hai kya ? kaheen hai kyaa? aapane dekha hai kya ?'
venkataraamanne sanjeedageese kahaa- 'bandhu! main bhee vaijnaanik hoon aur yah maanata hoon ki n to eeshvarako kiseene dekha hai, n is baatapar mujhe vishvaas hai ki paralok hai aur mrityuke baad aise dharma-karmase koee svarg ja sakata hai. main maanata hoon ki satyaapit kiye bina kisee baatako andhaanukaranake roopamen naheen maanana chaahiye .
ab main poochhata hoon ki kya aapake vijnaanane satyaapit kar diya hai ki eeshvar naheen hai? kya nishchit kar liya hai ki mrityuke baad yah hoga, vah naheen hogaa.'
naastik vaijnaanikane uttar diyaa- 'ye sabhee baaten anishchit hain. pramaanit naheen. aap bhee inhen maanane lage ? | kaun kah sakata hai ki eeshvar hai ya naheen? mrityuke baad kya hoga ?'
shreevenkataraamanjeene kaha ki yah sach hai ki yah
baat bilakul anishchit hai ki eeshvarakaa
paralokaka, punarjanmaka, mrityuke baadakee gatika, koee astitv bhee hai ya naheen yah sab sambhaavanaamaatr hai. ho sakata hai ki ye naheen hon, yah bhee ho sakata hai ki ye hon. yadi ye sab mithya hain aur naheen hain to pratidin mera aadha ghanta dharmaacharanamen vyarth nasht hua maana jaayaga, koee baat naheen, kabhee kabhee vyarthake kaam men kuchh samay nasht ho jaay to anarth naheen ho jaataa. par kalpana karo ki yadi kaheen ye sab saty ho, vaastavamen hon to kya hogaa? yadi is sambhaavanaake naamapar ham apane-aapako kisee dainik niyamase baandh len to kya bura hai? yadi isake bina paralokamen durgatikee sthiti huee to aapaka kya hoga ?' us naastik vaijnaanikake paas isaka koee uttar naheen thaa. ho bhee naheen sakataa.

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