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प्यालीमें सागर भरनेकी चाह  [छोटी सी कहानी]
प्रेरक कथा - Short Story (प्रेरक कहानी)

प्यालीमें सागर भरनेकी चाह

यूनानी सन्त आगस्टिनस एक सुबह सागरके तटपर अकेले ही घूमने निकल पड़े। तबतक सूर्योदय हो गया था। अनेक रातोंके जागरणसे उनकी आँखें थकी माँदी थीं। सत्यकी खोजमें वे अपना सारा सुख-चैन खो बैठे थे। परमात्माको पानेके विचारमें उन्हें पता ही नहीं चलता था कि दिन और रात कब बीत जाते थे। शास्त्र और शास्त्र, शब्द और शब्द, विचार और विचार - इनके बोझके नीचे ही वे दब-से गये थे।
लेकिन उस सुबह सागर तटपर घूमने आना उनके लिये बड़ा सौभाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ। वे जब निकले थे, तो विचारोंके बोझसे दबे थे, लेकिन जब लौटे, तो कोई बोझ न था। सागरके किनारे उन्होंने एक बालकको खड़ा देखा, जिसके हाथमें एक छोटी-सी प्याली थी और वह किसी चिन्तामें डूबा हुआ था। आगस्टिनसने बच्चेसे पूछा, 'बेटे! तुम यहाँ क्या कर रहे हो और किस चिन्तामें डूबे हो ?'
बच्चेने आगस्टिनसकी ओर देखा और कहा, 'चिन्तित तो आप भी दिखाई दे रहे हैं, इसलिये पहले आप ही अपनी चिन्ताका कारण बतायें। हो सकता है, जो मेरी चिन्ता हो, वही आपकी भी हो। लेकिन आपकी प्याली कहाँ है ?' आगस्टिनसकी कुछ समझमें नहीं आया। प्यालीकी बात सुनकर उन्हें हँसी भी आयी। प्रकटतः उन्होंने कहा, 'मैं सत्यकी खोजमें हूँ। और उसीके कारण चिन्तित हूँ।' बच्चा बोला, 'मेरी चिन्ताका कारण यह है कि मैं इस प्याली में सागरको भरकर घर ले जाना चाहता हूँ, लेकिन सागर हैं कि प्याली में आ ही नहीं रहा है।'
आगस्टिनसने सुना तो उन्हें अपनी बुद्धिकी प्याली भी दिखाई दी और सत्यका सागर भी वे हँसने लगे और बच्चेसे बोले, 'मित्र, सचमुच हम दोनों बालक ही हैं, क्योंकि बालक ही सागरको प्यालीमें भरना चाहते हैं।'
आगस्टिनस आगे बढ गये और सोचने लगे कि वस्तुतः संसारके सभी लोग बालक हैं और किसी न किसी सागर-तटपर अपनी-अपनी प्यालियाँ लिये खड़े हैं। उन सबको इस बातका रंज है कि सागर उनकी प्यालियोंमें समा क्यों नहीं रहा है! कोई-कोई तो यह भी सोचने लगते हैं कि किसकी प्याली बड़ी है और किसकी प्यालीमें सागरके समा जानेकी सर्वाधिक सम्भावना है। अब कौन उन्हें समझाये कि प्याली जितनी बड़ी होगी, सागरके उसमें समानेकी सम्भावना भी उतनी ही कम होगी; क्योंकि बड़ी प्यालीका अहंकार उसे छूटने नहीं देता है और सागर तो उसे मिलता है, जो प्याली छोड़ने का साहस दिखा पाता है और सागरमें उत्तर जाता है। सागर उसका, वह सागरका।
मुझमें समा जा इस तरह तन प्राणका जो ठौर है। जिससे न कोई फिर कहे. मैं और हूँ तू और है।



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pyaaleemen saagar bharanekee chaaha

pyaaleemen saagar bharanekee chaaha

yoonaanee sant aagastinas ek subah saagarake tatapar akele hee ghoomane nikal pada़e. tabatak sooryoday ho gaya thaa. anek raatonke jaagaranase unakee aankhen thakee maandee theen. satyakee khojamen ve apana saara sukha-chain kho baithe the. paramaatmaako paaneke vichaaramen unhen pata hee naheen chalata tha ki din aur raat kab beet jaate the. shaastr aur shaastr, shabd aur shabd, vichaar aur vichaar - inake bojhake neeche hee ve daba-se gaye the.
lekin us subah saagar tatapar ghoomane aana unake liye bada़a saubhaagyapoorn siddh huaa. ve jab nikale the, to vichaaronke bojhase dabe the, lekin jab laute, to koee bojh n thaa. saagarake kinaare unhonne ek baalakako khaड़a dekha, jisake haathamen ek chhotee-see pyaalee thee aur vah kisee chintaamen dooba hua thaa. aagastinasane bachchese poochha, 'bete! tum yahaan kya kar rahe ho aur kis chintaamen doobe ho ?'
bachchene aagastinasakee or dekha aur kaha, 'chintit to aap bhee dikhaaee de rahe hain, isaliye pahale aap hee apanee chintaaka kaaran bataayen. ho sakata hai, jo meree chinta ho, vahee aapakee bhee ho. lekin aapakee pyaalee kahaan hai ?' aagastinasakee kuchh samajhamen naheen aayaa. pyaaleekee baat sunakar unhen hansee bhee aayee. prakatatah unhonne kaha, 'main satyakee khojamen hoon. aur useeke kaaran chintit hoon.' bachcha bola, 'meree chintaaka kaaran yah hai ki main is pyaalee men saagarako bharakar ghar le jaana chaahata hoon, lekin saagar hain ki pyaalee men a hee naheen raha hai.'
aagastinasane suna to unhen apanee buddhikee pyaalee bhee dikhaaee dee aur satyaka saagar bhee ve hansane lage aur bachchese bole, 'mitr, sachamuch ham donon baalak hee hain, kyonki baalak hee saagarako pyaaleemen bharana chaahate hain.'
aagastinas aage badh gaye aur sochane lage ki vastutah sansaarake sabhee log baalak hain aur kisee n kisee saagara-tatapar apanee-apanee pyaaliyaan liye khada़e hain. un sabako is baataka ranj hai ki saagar unakee pyaaliyonmen sama kyon naheen raha hai! koee-koee to yah bhee sochane lagate hain ki kisakee pyaalee bada़ee hai aur kisakee pyaaleemen saagarake sama jaanekee sarvaadhik sambhaavana hai. ab kaun unhen samajhaaye ki pyaalee jitanee bada़ee hogee, saagarake usamen samaanekee sambhaavana bhee utanee hee kam hogee; kyonki bada़ee pyaaleeka ahankaar use chhootane naheen deta hai aur saagar to use milata hai, jo pyaalee chhoda़ne ka saahas dikha paata hai aur saagaramen uttar jaata hai. saagar usaka, vah saagarakaa.
mujhamen sama ja is tarah tan praanaka jo thaur hai. jisase n koee phir kahe. main aur hoon too aur hai.

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