⮪ All Stories / कथा / कहानियाँ

समस्त लौकिक-पारलौकिक सुखोंकी प्राप्तिका साधन  [Short Story]
Spiritual Story - Short Story (प्रेरक कथा)

बात आजको नहीं, सृष्टिके प्रारम्भके सत्ययुगकी | है। मनुके दो पुत्र थे- प्रियव्रत और उत्तानपाद इनमें उत्तानपाद नरेश हुए। उनकी दो रानियाँ थीं; किंतु अपनी बड़ी रानी सुनीतिपर नरेशका प्रेम कम ही था। वे छोटी रानी सुरुचिके वश हो रहे थे। एक दिन बड़ी रानीका पुत्र ध्रुव खेलता आया और पिताकी गोदमें बैठ गया। छोटी रानी वहीं थीं, उनसे यह सहा नहीं गया। उन्होंने पाँच वर्षके बालक ध्रुवको हाथ पकड़कर नरेशकी गोदसे नीचे उतार दिया और झिड़ककर बोलीं- यह आसन मेरे पुत्र उत्तमका है। तुझे यहाँ बैठना हो से भगवान्का भजन करके मेरे गर्भ से जन्म ले।'

बड़ी कड़ी बात थी। नन्हे बालकको कहा जा र था कि 'पिताकी गोद या सिंहासनपर बैठने के लिये मरना होगा और फिर विमाताके गर्भ से उत्पन्न होना होगा। पिताने भी बालकके अपमानको रोका नहीं। ध्रुव अन्ततः सम्राट्का कुमार था, अपमानसे क्षुब्ध रोता हुआ `चल पड़ा वहाँसे। नन्हा बालक कहाँ जाय? माता ही एकमात्र उसका आश्रय स्थान ठहरी।'

पति-प्रेम- वञ्चिता रानी सुनीतिने हृदयपर पत्थर रखकर सब सुना। पुत्रको छाती से लगाकर रोती हुई वे बोलीं- 'बेटा! मुझ अभागिनीके गर्भ से जन्म लेकर सचमुच तुम भाग्यहीन हो गये हो; लेकिन तुम्हारी विमाताने तुम्हारे अपमानके लिये जो बात कही है, सच्ची बात वही है। सचमुच यदि तुम उनके पुत्र उत्तमकी भाँति महाराजके सिंहासनपर बैठना चाहते होतो पद्मपलाश-लोचन श्रीहरिके चरणोंकी आराधना करो। तुम्हारे पितामह मनुने उन नारायणकी आराधनासे ही श्रेष्ठ पद पाया। भगवान् ब्रह्मा श्रीहरिकी कृपासे ही ब्रह्मत्वको भूषित करते हैं। समस्त लौकिक-पारलौकिक सुखोंकी प्राप्तिका साधन भगवद्भक्ति ही है।'

बालक ध्रुवको जैसे मार्ग मिल गया। उन्हें पता नहीं था कि भगवान् कौन हैं, उनकी भक्ति कैसे होती हैं, किंतु वे माताको प्रणाम करके घरसे निकल पड़े अकेले वनके मार्गमें। ध्रुवको कुछ पता हो या न हो, ध्रुव जिसे पाने निकले थे, उसे तो सब पता रहता है। कोई सचमुच उसे पाने चले और उसे मार्ग न मिले, यह सम्भव नहीं है। भगवान् नारायणके मनके ही अंश हैं देवर्षि नारदजी, ध्रुवके वनमें पहुँचते-न-पहुँचते वीणा बजाते वे उनके सम्मुख मार्गमें आ खड़े हुए।

बालक ध्रुवने देवर्षिको प्रणाम किया। देवर्षिने उनके मस्तकपर हाथ रखा, पुचकारा और सब बातें | पूछकर समझाया- 'अभी तो तुम बच्चे हो । बालकोंका क्या अपमान और क्या सम्मान। घर लौट चलो, मैं तुम्हारे पिताको समझा देता हूँ। यह तपस्या और उपासनाका मार्ग बड़ा कठोर है। समय आयेगा, बड़े होओगे तुम और तब यह सब भी कर लोगे।'

ध्रुव बच्चे थे, किंतु कच्चे नहीं थे। उनका निश्चय तो सम्राट्-कुमारका निश्चय था। बड़ी नम्रतासे उन्होंने निवेदन किया-'मुझे तो ऐसा पद चाहिये जो मेरे पिता, पितामह या और किसीको भी नहीं मिला है। ऐसा पदभी मुझे प्राप्त करना है केवल श्रीहरिसे। आपने कृपा करके दर्शन दिया है तो अब इस उद्देश्यकी सिद्धिका साधन भी बता दीजिये।'

देवर्षि प्रसन्न हो गये इस दृढ़तासे। उन्होंने कहा 'तुम्हारी माताने तुम्हें ठीक मार्ग बतलाया है। किसीको कोई पुरुषार्थ अभीष्ट हो उसकी प्राप्तिका सर्वोत्तम साधन नारायणभगवान्की आराधना ही है।' देवर्षिने कृपा करके द्वादशाक्षर मन्त्रका उपदेश किया, मथुरा जाकर भगवान्‌की पूजा करनेका आदेश दिया। मायाकी गति छाया जैसी धरै चलै तौ धावै।

पीठ फेर जो त्याग चलै तो पाछे-पाछे आवै ॥ कहाँ तो महाराज उत्तानपाद ध्रुवको गोदमेंसे हटाये जानेपर चुप बैठे रहे और कहाँ अब वे ही ध्रुवके वनमें जानेके समाचारसे अत्यन्त व्याकुल हो उठे। उन्हें भूख-प्यास और निद्रा भी भूल गयी। ध्रुव लौटें तो उन्हें सर्वस्व दे दें, यही सोचने लगे देवर्षि नारद ध्रुवको मथुरा भेजकर महाराजके पास आये और उन्हें आश्वासन दिया।

ध्रुव मधुवनमें पहुँचे। यमुना स्नान करके वे देवर्षिके उपदेशके अनुसार मन्त्र जप तथा भगवद्ध्यानमें जुट गये। एक महीने उन्होंने तीन दिनके अन्तरसे एक बार बेर और कैथ खानेका नियम बनाया। दूसरे महीने वे प्रति छठे दिन सूखे तृण तथा वृक्षसे अपने-आप गिरे पत्ते खाकर रहे। तीसरे महीने नौ दिनके अन्तरसे एक बार केवल जल पी लेते थे और चौथे महीने तो बारह दिन बीतनेपर एक बार श्वास लेना मात्र उनका व्रत बन गया। चौथा महीना बीता और ध्रुवने श्वास लेना भी बंद कर दिया। एक पैरसे निश्चल, निस्पन्द खड़ा अखण्ड ध्यानमग्र था वह क्षत्रियकुमार। बादल गरजे, बिजली टूटी, ओले पड़े, सिंह और अजगर दहाड़ते फुंकारते आये-व्यर्थ था मायाका यह सब प्रपञ्च ध्रुव तो ऐसे दृढ शैल थे कि उसपर मस्तक पटककर मायिक प्रपक्ष स्वयं नष्ट हो जाते थे। अन्तमें माता सुनीतिका रूप बनाकर माया पुकारती आयी 'बेटा ध्रुव ! लौट चल! लौट चल, बेटा!' पर ध्रुवकेबंद पलक न हिले, न हिले देवता छटपटा रहे थे। वे प्रत्येक देहमें हैं, ध्रुवके दृढ़ प्राणनिरोधके कारण उनका दम घुटा जा रहा था और ध्रुव उनकी पहुँचसे परे पहुँच चुके थे। उनका कोई उद्योग ध्रुवके ध्यानको कम्पिततक करनेमें समर्थ नहीं था। अन्तमें सब देवता 'त्राहि त्राहि करते भगवान् नारायणकी शरण पहुँचे। भगवान्ने उन्हें आश्वासन दिया और स्वयं गरुड़पर बैठकर ध्रुवको कृतार्थ करने मधुवन पधारे।

त्रिलोकीके नाथ सम्मुख खड़े हैं, किंतु ध्यानमग्न ध्रुवको इसका पता तक नहीं। भगवान्ने ध्रुवके हृदयसे अपनी मूर्ति अदृश्य कर दी व्याकुल होकर धुलने नेत्र खोले और चकित देखते रह गये। हाथ जोड़ लिये किंतु कहें क्या; बहुत इच्छा है स्तुति करनेकी, पर स्तुति करनी आती नहीं। सर्वज्ञ प्रभु हँस पड़े अपने निखिलवेदमय शंखका बालकके कपोलसे स्पर्श कर दिया। सरस्वती जाग्रत हो गयीं, वाणी खुल पड़ी, ध्रुव स्तुति करने लगे।

स्तवनके पश्चात् प्रभुने कहा- 'बेटा ध्रुव ! जिस पदको तुम्हारे पिता या पितामहतकने नहीं पाया है, जिसे और भी कोई नहीं पा सका है, वह ध्रुवलोक तुम्हारा है। अभी तो तुम घर जाओ। पिताके बाद पैतृक सिंहासनको भूषित करना। धराका राज्य भोगकर यहाँका समय समाप्त होनेपर तुम सशरीर उस मेरे दिव्य लोकमें निवास करोगे। सप्तर्षि तथा समस्त तारक मण्डल उस लोककी प्रदक्षिणा किया करेंगे।'

भगवत्कृपा पाकर ध्रुव लौटे। उनके लौटनेका समाचार देनेवालेको महाराज उत्तानपादने अपने कण्ठका रत्नहार उपहारमें दे दिया। माता सुनीतिके हर्षकी बात तो क्या कोई कहेगा, प्रसन्नताके मारे पूरा आशीर्वाद तो नहीं दे सकीं ध्रुवको तिरस्कृत करनेवाली रानी सुरुचि। ध्रुवके प्रणाम करनेपर गद्गद स्वरसे उन्होंने कहा 'चिरञ्जीवी हो पुत्र !' महाराजने समारोहके साथ ध्रुवको नगरमें लाकर युवराजपद उसी समय दे दिया।

-सु0 सिं0 (श्रीमद्भागवत 4 । 89)



You may also like these:

आध्यात्मिक कहानी 'न मे भक्तः प्रणश्यति'
हिन्दी कहानी अंधा हो गया
Spiritual Story अक्रोध
प्रेरक कहानी अग्निपरीक्षा
Spiritual Story अच्छी फसल
आध्यात्मिक कथा अतिथिके लिये उत्सर्ग
आध्यात्मिक कहानी अत्यधिक कल्याणकर
छोटी सी कहानी अद्भुत उदारता
हिन्दी कहानी अद्भुत क्षमा


samast laukika-paaralaukik sukhonkee praaptika saadhana

baat aajako naheen, srishtike praarambhake satyayugakee | hai. manuke do putr the- priyavrat aur uttaanapaad inamen uttaanapaad naresh hue. unakee do raaniyaan theen; kintu apanee bada़ee raanee suneetipar nareshaka prem kam hee thaa. ve chhotee raanee suruchike vash ho rahe the. ek din bada़ee raaneeka putr dhruv khelata aaya aur pitaakee godamen baith gayaa. chhotee raanee vaheen theen, unase yah saha naheen gayaa. unhonne paanch varshake baalak dhruvako haath pakada़kar nareshakee godase neeche utaar diya aur jhida़kakar boleen- yah aasan mere putr uttamaka hai. tujhe yahaan baithana ho se bhagavaanka bhajan karake mere garbh se janm le.'

bada़ee kada़ee baat thee. nanhe baalakako kaha ja r tha ki 'pitaakee god ya sinhaasanapar baithane ke liye marana hoga aur phir vimaataake garbh se utpann hona hogaa. pitaane bhee baalakake apamaanako roka naheen. dhruv antatah samraatka kumaar tha, apamaanase kshubdh rota hua `chal pada़a vahaanse. nanha baalak kahaan jaaya? maata hee ekamaatr usaka aashray sthaan thaharee.'

pati-prema- vanchita raanee suneetine hridayapar patthar rakhakar sab sunaa. putrako chhaatee se lagaakar rotee huee ve boleen- 'betaa! mujh abhaagineeke garbh se janm lekar sachamuch tum bhaagyaheen ho gaye ho; lekin tumhaaree vimaataane tumhaare apamaanake liye jo baat kahee hai, sachchee baat vahee hai. sachamuch yadi tum unake putr uttamakee bhaanti mahaaraajake sinhaasanapar baithana chaahate hoto padmapalaasha-lochan shreeharike charanonkee aaraadhana karo. tumhaare pitaamah manune un naaraayanakee aaraadhanaase hee shreshth pad paayaa. bhagavaan brahma shreeharikee kripaase hee brahmatvako bhooshit karate hain. samast laukika-paaralaukik sukhonkee praaptika saadhan bhagavadbhakti hee hai.'

baalak dhruvako jaise maarg mil gayaa. unhen pata naheen tha ki bhagavaan kaun hain, unakee bhakti kaise hotee hain, kintu ve maataako pranaam karake gharase nikal pada़e akele vanake maargamen. dhruvako kuchh pata ho ya n ho, dhruv jise paane nikale the, use to sab pata rahata hai. koee sachamuch use paane chale aur use maarg n mile, yah sambhav naheen hai. bhagavaan naaraayanake manake hee ansh hain devarshi naaradajee, dhruvake vanamen pahunchate-na-pahunchate veena bajaate ve unake sammukh maargamen a khada़e hue.

baalak dhruvane devarshiko pranaam kiyaa. devarshine unake mastakapar haath rakha, puchakaara aur sab baaten | poochhakar samajhaayaa- 'abhee to tum bachche ho . baalakonka kya apamaan aur kya sammaana. ghar laut chalo, main tumhaare pitaako samajha deta hoon. yah tapasya aur upaasanaaka maarg bada़a kathor hai. samay aayega, bada़e hooge tum aur tab yah sab bhee kar loge.'

dhruv bachche the, kintu kachche naheen the. unaka nishchay to samraat-kumaaraka nishchay thaa. bada़ee namrataase unhonne nivedan kiyaa-'mujhe to aisa pad chaahiye jo mere pita, pitaamah ya aur kiseeko bhee naheen mila hai. aisa padabhee mujhe praapt karana hai keval shreeharise. aapane kripa karake darshan diya hai to ab is uddeshyakee siddhika saadhan bhee bata deejiye.'

devarshi prasann ho gaye is dridha़taase. unhonne kaha 'tumhaaree maataane tumhen theek maarg batalaaya hai. kiseeko koee purushaarth abheesht ho usakee praaptika sarvottam saadhan naaraayanabhagavaankee aaraadhana hee hai.' devarshine kripa karake dvaadashaakshar mantraka upadesh kiya, mathura jaakar bhagavaan‌kee pooja karaneka aadesh diyaa. maayaakee gati chhaaya jaisee dharai chalai tau dhaavai.

peeth pher jo tyaag chalai to paachhe-paachhe aavai .. kahaan to mahaaraaj uttaanapaad dhruvako godamense hataaye jaanepar chup baithe rahe aur kahaan ab ve hee dhruvake vanamen jaaneke samaachaarase atyant vyaakul ho uthe. unhen bhookha-pyaas aur nidra bhee bhool gayee. dhruv lauten to unhen sarvasv de den, yahee sochane lage devarshi naarad dhruvako mathura bhejakar mahaaraajake paas aaye aur unhen aashvaasan diyaa.

dhruv madhuvanamen pahunche. yamuna snaan karake ve devarshike upadeshake anusaar mantr jap tatha bhagavaddhyaanamen jut gaye. ek maheene unhonne teen dinake antarase ek baar ber aur kaith khaaneka niyam banaayaa. doosare maheene ve prati chhathe din sookhe trin tatha vrikshase apane-aap gire patte khaakar rahe. teesare maheene nau dinake antarase ek baar keval jal pee lete the aur chauthe maheene to baarah din beetanepar ek baar shvaas lena maatr unaka vrat ban gayaa. chautha maheena beeta aur dhruvane shvaas lena bhee band kar diyaa. ek pairase nishchal, nispand khada़a akhand dhyaanamagr tha vah kshatriyakumaara. baadal garaje, bijalee tootee, ole pada़e, sinh aur ajagar dahaada़te phunkaarate aaye-vyarth tha maayaaka yah sab prapanch dhruv to aise dridh shail the ki usapar mastak patakakar maayik prapaksh svayan nasht ho jaate the. antamen maata suneetika roop banaakar maaya pukaaratee aayee 'beta dhruv ! laut chala! laut chal, betaa!' par dhruvakeband palak n hile, n hile devata chhatapata rahe the. ve pratyek dehamen hain, dhruvake dridha़ praananirodhake kaaran unaka dam ghuta ja raha tha aur dhruv unakee pahunchase pare pahunch chuke the. unaka koee udyog dhruvake dhyaanako kampitatak karanemen samarth naheen thaa. antamen sab devata 'traahi traahi karate bhagavaan naaraayanakee sharan pahunche. bhagavaanne unhen aashvaasan diya aur svayan garuda़par baithakar dhruvako kritaarth karane madhuvan padhaare.

trilokeeke naath sammukh khada़e hain, kintu dhyaanamagn dhruvako isaka pata tak naheen. bhagavaanne dhruvake hridayase apanee moorti adrishy kar dee vyaakul hokar dhulane netr khole aur chakit dekhate rah gaye. haath joda़ liye kintu kahen kyaa; bahut ichchha hai stuti karanekee, par stuti karanee aatee naheen. sarvajn prabhu hans pada़e apane nikhilavedamay shankhaka baalakake kapolase sparsh kar diyaa. sarasvatee jaagrat ho gayeen, vaanee khul pada़ee, dhruv stuti karane lage.

stavanake pashchaat prabhune kahaa- 'beta dhruv ! jis padako tumhaare pita ya pitaamahatakane naheen paaya hai, jise aur bhee koee naheen pa saka hai, vah dhruvalok tumhaara hai. abhee to tum ghar jaao. pitaake baad paitrik sinhaasanako bhooshit karanaa. dharaaka raajy bhogakar yahaanka samay samaapt honepar tum sashareer us mere divy lokamen nivaas karoge. saptarshi tatha samast taarak mandal us lokakee pradakshina kiya karenge.'

bhagavatkripa paakar dhruv laute. unake lautaneka samaachaar denevaaleko mahaaraaj uttaanapaadane apane kanthaka ratnahaar upahaaramen de diyaa. maata suneetike harshakee baat to kya koee kahega, prasannataake maare poora aasheervaad to naheen de sakeen dhruvako tiraskrit karanevaalee raanee suruchi. dhruvake pranaam karanepar gadgad svarase unhonne kaha 'chiranjeevee ho putr !' mahaaraajane samaarohake saath dhruvako nagaramen laakar yuvaraajapad usee samay de diyaa.

-su0 sin0 (shreemadbhaagavat 4 . 89)

151 Views





Bhajan Lyrics View All

लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
हर पल तेरे साथ मैं रहता हूँ,
डरने की क्या बात? जब मैं बैठा हूँ
अच्युतम केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दमोधराम वासुदेवं हरिं,
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
रंग डालो ना बीच बाजार
श्याम मैं तो मर जाऊंगी
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
श्याम देखा घनश्याम देखा
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
बहुत बड़ा दरबार तेरो बहुत बड़ा दरबार,
चाकर रखलो राधा रानी तेरा बहुत बड़ा
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।

New Bhajan Lyrics View All

तेरी जोगनिया आई तेरे दरबार महाकाल,
तेरे ही नाम की शोहरत मुझे उज्जैन लाई,
मैया रानी के भवन में हम दीवाने हो गए,
हम दीवाने हो गए माँ हम दीवाने हो गए,
अमरनाथ दी अमर ज्योत नू, लख लख सीस
बाबा बालक नाथ दी भगतो, कथा मैं अमर
माँ के चरणों मे जग समाया है
माँ के बिन लागे जग पराया है
ए मोरी मैया के, शारद मैया के, दुर्गा
सखी री चलो चले जल ढारन को,