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अच्छा पैसा ही अच्छे काममें लगता है।  [शिक्षदायक कहानी]
Moral Story - Shikshaprad Kahani (हिन्दी कहानी)

एक ईश्वरविश्वासी, त्यागी महात्मा थे; वे किसीसे भीख नहीं माँगते, टोपी सीकर अपना गुजारा करते। एक टोपीकी कीमत सिर्फ दो पैसे लेते। इनमेंसे जो याचक पहले मिलता, उसे एक पैसा दे देते। बचे हुए एक पैसेसे पेट भरते। इस प्रकार जबतक दोनों पैसे बरत नहीं जाते तबतक नयी टोपी नहीं सीते। भजन ही करते रहते।

इनके एक धनी शिष्य था, उसके पास धर्मादिकी निकाली हुई कुछ रकम थी। उसने एक दिन पूछा, 'भगवन्! मैं किसको दान करूँ ?' महात्माने कहा, "जिसे सुपात्र समझो, उसीको दान करो।' शिष्यने रास्ते में एक गरीब अंधेको देखा और उसे सुपात्र समझकर एक सोनेकी मोहर दे दी। दूसरे दिन उसी रास्तेसे शिष्य फिर निकला। पहले दिनवाला अंधा एक दूसरे अंधेसे कह रहा था कि 'कल एक आदमीने मुझको एक सोनेकी मोहर दी थी, मैंने उससे खूब शराब पी और रातको अमुक वेश्याके यहाँ जाकर आनन्द लूटा।'

शिष्यको यह सुनकर बड़ा खेद हुआ। उसने महात्माके पास आकर सारा हाल कहा। महात्मा उसके हाथमें एक पैसा देकर बोले-'जा, जो सबसे पहले। मिले उसीको पैसा दे देना।' यह पैसा टोपी सौकर कमाया हुआ था।

शिष्य पैसा लेकर निकला, उसे एक मनुष्य मिलाउसने उसको पैसा दे दिया और उसके पीछे-पीछे चलना शुरू किया। वह मनुष्य एक निर्जन स्थानमें गया और उसने अपने कपड़ोंमें छिपाये हुए एक मरे पक्षीको निकालकर फेंक दिया। शिष्यने उससे पूछा कि 'तुमने मरे पक्षीको कपड़ोंमें क्यों छिपाया था और अब क्यों निकालकर फेंक दिया ?' उसने कहा- 'आज सात दिनसे मेरे कुटुम्बको दाना-पानी नहीं मिला। भीख माँगना मुझे पसंद नहीं, आज इस जगह मरे पक्षीको पड़ा देख मैंने लाचार होकर अपनी और परिवारकी भूख मिटानेके लिये उठा लिया था और इसे लेकर मैं घर जा रहा था। आपने मुझे बिना ही माँगे पैसा दे दिया, इसलिये अब मुझे इस मरे पक्षीकी जरूरत नहीं रही। अतएव जहाँसे उठाया था, वहीं लाकर डाल दिया।'

शिष्यको उसकी बात सुनकर बड़ा अचरज हुआ। उसने महात्माके पास जाकर सब वृत्तान्त कहा। महात्मा बोले- 'यह स्पष्ट है कि तुमने दुराचारियोंके साथ मिलकर अन्यायपूर्वक धन कमाया होगा; इसीसे उस धनका दान दुराचारी अंधेको दिया गया और उसने उससे सुरापान और वेश्या-गमन किया। मेरे न्यायपूर्वक कमाये हुए एक पैसेने एक कुटुम्बको निषिद्ध आहारसे बचा लिया। ऐसा होना स्वाभाविक ही है। अच्छा पैसा ही अच्छे काममें लगता है।'



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achchha paisa hee achchhe kaamamen lagata hai.

ek eeshvaravishvaasee, tyaagee mahaatma the; ve kiseese bheekh naheen maangate, topee seekar apana gujaara karate. ek topeekee keemat sirph do paise lete. inamense jo yaachak pahale milata, use ek paisa de dete. bache hue ek paisese pet bharate. is prakaar jabatak donon paise barat naheen jaate tabatak nayee topee naheen seete. bhajan hee karate rahate.

inake ek dhanee shishy tha, usake paas dharmaadikee nikaalee huee kuchh rakam thee. usane ek din poochha, 'bhagavan! main kisako daan karoon ?' mahaatmaane kaha, "jise supaatr samajho, useeko daan karo.' shishyane raaste men ek gareeb andheko dekha aur use supaatr samajhakar ek sonekee mohar de dee. doosare din usee raastese shishy phir nikalaa. pahale dinavaala andha ek doosare andhese kah raha tha ki 'kal ek aadameene mujhako ek sonekee mohar dee thee, mainne usase khoob sharaab pee aur raatako amuk veshyaake yahaan jaakar aanand lootaa.'

shishyako yah sunakar bada़a khed huaa. usane mahaatmaake paas aakar saara haal kahaa. mahaatma usake haathamen ek paisa dekar bole-'ja, jo sabase pahale. mile useeko paisa de denaa.' yah paisa topee saukar kamaaya hua thaa.

shishy paisa lekar nikala, use ek manushy milaausane usako paisa de diya aur usake peechhe-peechhe chalana shuroo kiyaa. vah manushy ek nirjan sthaanamen gaya aur usane apane kapada़onmen chhipaaye hue ek mare paksheeko nikaalakar phenk diyaa. shishyane usase poochha ki 'tumane mare paksheeko kapada़onmen kyon chhipaaya tha aur ab kyon nikaalakar phenk diya ?' usane kahaa- 'aaj saat dinase mere kutumbako daanaa-paanee naheen milaa. bheekh maangana mujhe pasand naheen, aaj is jagah mare paksheeko pada़a dekh mainne laachaar hokar apanee aur parivaarakee bhookh mitaaneke liye utha liya tha aur ise lekar main ghar ja raha thaa. aapane mujhe bina hee maange paisa de diya, isaliye ab mujhe is mare paksheekee jaroorat naheen rahee. ataev jahaanse uthaaya tha, vaheen laakar daal diyaa.'

shishyako usakee baat sunakar bada़a acharaj huaa. usane mahaatmaake paas jaakar sab vrittaant kahaa. mahaatma bole- 'yah spasht hai ki tumane duraachaariyonke saath milakar anyaayapoorvak dhan kamaaya hogaa; iseese us dhanaka daan duraachaaree andheko diya gaya aur usane usase suraapaan aur veshyaa-gaman kiyaa. mere nyaayapoorvak kamaaye hue ek paisene ek kutumbako nishiddh aahaarase bacha liyaa. aisa hona svaabhaavik hee hai. achchha paisa hee achchhe kaamamen lagata hai.'

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