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अतिथिके लिये उत्सर्ग  [आध्यात्मिक कथा]
छोटी सी कहानी - हिन्दी कहानी (Shikshaprad Kahani)

मेवाड़के गौरव हिंदूकुल- सूर्य महाराणा प्रताप अरावलीके वनोंमें उन दिनों भटक रहे थे। उनको अकेले ही वन-वन भटकना पड़ता तो भी एक बात थी; किंतु साथ थीं महारानी, अबोध राजकुमार और छोटी-सी राजकुमारी। अकबर जैसे प्रतापी शत्रुकी सेना पीछे पड़ी थी। कभी गुफामें, कभी वनमें, कभी किसी नालेमें रात्रि काटनी पड़ती थी। वनके कन्द-फल भी अलभ्य थे। घासके बीजोंकी रोटी भी कई-कई दिनपर मिल पाती थी। बच्चे सूखकर कंकाल हो रहे थे।

विपत्तिके इन्हीं दिनोंमें एक बार महाराणाको परिवारके साथ लगातार कई दिनोंतक उपवास करना पड़ा। बड़ी कठिनाईसे एक दिन घासकी रोटी बनी और वह भी केवल एक। महाराणा तथा रानीको तो जल पीकर समय बिता देना था; किंतु बच्चे कैसे रहें? राजकुमार सर्वथा अबोध था। उसे तो कुछ-न-कुछ भोजन देना ही चाहिये। राजकुमारी भी अभी बालिका थी। आधी आधी रोटी दोनों बच्चोंको उनकी माताने दे दी। राजकुमारने अपना भाग तत्काल खा लिया। परंतु राजकुमारी छोटी बच्ची होनेपर भी परिस्थित समझती थी। छोटा भाई कुछघंटे बाद भूखसे रोयेगा तो उसे क्या दिया जायगा, इसकी चिन्ता उस बालिकाको भी थी। उसने अपनी | आधी रोटी पत्थरके नीचे दबाकर सुरक्षित रख दी, यद्यपि स्वयं उसे कई दिनोंसे कुछ मिला नहीं था । संयोगवश वहाँ वनमें भी एक अतिथि महाराणाके

पास आ पहुँचे। राणाने उन्हें पत्ते बिछाकर बैठाया। पैर धोनेको जल दिया। इतना करके वे इधर-उधर देखने लगे। आज मेवाड़के अधीश्वरके पास अतिथिको जल - पीनेको देनेके लिये चनेके चार दाने भी नहीं। किंतु उनकी पुत्रीने पिताका भाव समझ लिया। वह अपने भागकी रोटीका टुकड़ा पत्तेपर रखकर ले आयी। | अतिथिके सम्मुख उसे रखकर बोली- 'देव! आप इसे ग्रहण करें। हमारे पास आपका सत्कार करने योग्य आज कुछ नहीं है।'

अतिथिने रोटी खायी, जल पिया और विदा हो गया; किंतु वह बालिका मूर्छित होकर गिर पड़ी। भूखसे वह दुर्बल हो चुकी थी। यह मूर्छा उसकी अन्तिम मूर्छा बन गयी। अतिथिके सत्कारमें उसने अपनी आधी रोटी ही नहीं दी थी, अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया था।



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atithike liye utsarga

mevaada़ke gaurav hindookula- soory mahaaraana prataap araavaleeke vanonmen un dinon bhatak rahe the. unako akele hee vana-van bhatakana pada़ta to bhee ek baat thee; kintu saath theen mahaaraanee, abodh raajakumaar aur chhotee-see raajakumaaree. akabar jaise prataapee shatrukee sena peechhe pada़ee thee. kabhee guphaamen, kabhee vanamen, kabhee kisee naalemen raatri kaatanee pada़tee thee. vanake kanda-phal bhee alabhy the. ghaasake beejonkee rotee bhee kaee-kaee dinapar mil paatee thee. bachche sookhakar kankaal ho rahe the.

vipattike inheen dinonmen ek baar mahaaraanaako parivaarake saath lagaataar kaee dinontak upavaas karana pada़aa. bada़ee kathinaaeese ek din ghaasakee rotee banee aur vah bhee keval eka. mahaaraana tatha raaneeko to jal peekar samay bita dena thaa; kintu bachche kaise rahen? raajakumaar sarvatha abodh thaa. use to kuchha-na-kuchh bhojan dena hee chaahiye. raajakumaaree bhee abhee baalika thee. aadhee aadhee rotee donon bachchonko unakee maataane de dee. raajakumaarane apana bhaag tatkaal kha liyaa. parantu raajakumaaree chhotee bachchee honepar bhee paristhit samajhatee thee. chhota bhaaee kuchhaghante baad bhookhase royega to use kya diya jaayaga, isakee chinta us baalikaako bhee thee. usane apanee | aadhee rotee pattharake neeche dabaakar surakshit rakh dee, yadyapi svayan use kaee dinonse kuchh mila naheen tha . sanyogavash vahaan vanamen bhee ek atithi mahaaraanaake

paas a pahunche. raanaane unhen patte bichhaakar baithaayaa. pair dhoneko jal diyaa. itana karake ve idhara-udhar dekhane lage. aaj mevaada़ke adheeshvarake paas atithiko jal - peeneko deneke liye chaneke chaar daane bhee naheen. kintu unakee putreene pitaaka bhaav samajh liyaa. vah apane bhaagakee roteeka tukada़a pattepar rakhakar le aayee. | atithike sammukh use rakhakar bolee- 'deva! aap ise grahan karen. hamaare paas aapaka satkaar karane yogy aaj kuchh naheen hai.'

atithine rotee khaayee, jal piya aur vida ho gayaa; kintu vah baalika moorchhit hokar gir pada़ee. bhookhase vah durbal ho chukee thee. yah moorchha usakee antim moorchha ban gayee. atithike satkaaramen usane apanee aadhee rotee hee naheen dee thee, apana jeevan utsarg kar diya thaa.

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