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कष्टमें भी क्रोध नहीं  [प्रेरक कथा]
छोटी सी कहानी - Short Story (प्रेरक कहानी)

इटली के एक धर्मयाजक (पादरी) पर बड़े-बड़े कष्ट आये; परंतु उनके मनमें कभी ताव नहीं आया। लोग उन्हें गालियाँ बकते और वे हँसते रहते तथा उन्हें मीठा उत्तर देते। किसीने पूछा- 'आपमें इतनी सहनशक्ति कहाँसे आ गयी?' धर्मयाजकने कहा 'मैं ऊपरकी तरफ देखकर सोचता हूँ कि मैं तो वहाँ जाना चाहता हूँ, फिर यहाँके किसी व्यवहारसे अपनामन क्यों बिगाडूं? नीचे नजर करता हूँ तो देखता हूँ कि मुझे उठने-बैठने और सोनेके लिये जमीन ही कितनी चाहिये। आस-पास देखता हूँ तो मनमें आता है कितने लोग मुझसे भी अधिक कष्ट भोग रहे हैं। बस, इन्हीं विचारोंके कारण मेरा मस्तिष्क शीतल हो गया है और अब वह किसी भी दुःखसे गरम नहीं होता।'



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kashtamen bhee krodh naheen

italee ke ek dharmayaajak (paadaree) par bada़e-bada़e kasht aaye; parantu unake manamen kabhee taav naheen aayaa. log unhen gaaliyaan bakate aur ve hansate rahate tatha unhen meetha uttar dete. kiseene poochhaa- 'aapamen itanee sahanashakti kahaanse a gayee?' dharmayaajakane kaha 'main ooparakee taraph dekhakar sochata hoon ki main to vahaan jaana chaahata hoon, phir yahaanke kisee vyavahaarase apanaaman kyon bigaadoon? neeche najar karata hoon to dekhata hoon ki mujhe uthane-baithane aur soneke liye jameen hee kitanee chaahiye. aasa-paas dekhata hoon to manamen aata hai kitane log mujhase bhee adhik kasht bhog rahe hain. bas, inheen vichaaronke kaaran mera mastishk sheetal ho gaya hai aur ab vah kisee bhee duhkhase garam naheen hotaa.'

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