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धन्य भामती  [Short Story]
छोटी सी कहानी - Story To Read (आध्यात्मिक कहानी)

रात्रिका समय है। दक्षिणभारतके एक छोटे-से गाँवकी एक छोटी-सी कोठरीमें रेंड़ीके तेलका दीपक जल रहा है। कोठरीका कच्चा आँगन और मिट्टीकी दीवालें गोबरसे लिपी-पुती बड़ी स्वच्छ और सुन्दर दिखायी दे रही हैं। एक कोनेमें कुछ मिट्टी पड़ी है, एक ओर पानीका घड़ा रखा है; दूसरे कोनेमें एक चक्की, मिट्टीके कुछ बरतन और छोटी-सी एक चारपाई पड़ी है । दीपकके समीप कुशके आसनपर एक पण्डितजी बैठे हैं, पास ही मिट्टीकी दावात रखी है और हाथमें कलम लिये वे बड़ी एकाग्रतासे लिख रहे हैं। बीच बीचमें पास रखी पोथियोंके पन्ने उलट-पलटकर पढ़ते हैं, फिर पन्ने रखकर आँखें मूँद लेते हैं। कुछ देर गहरा विचार करनेके पश्चात् पुनः आँखें खोलकर लिखने लगते हैं। इतनेमें दीपकका तेल बहुत कम हो जानेके कारण बत्तीपर गुल आ गया और प्रकाश मन्द पड़ गया। इसी बीच एक प्रौढ़ा स्त्रीने आकर दीपकमें तेल भर | दिया और वह बत्ती गुल झाड़ने लगी। ऐसा करते | दीपक बुझ गया। पण्डितजीका हाथ अँधेरेमें रुक गया। स्त्री बत्ती जलाकर तुरंत वहाँसे लौट रही थी कि | पण्डितजीकी दृष्टि उधर चली गयी। उन्होंने कौतूहलमें भरकर पूछा—'देवी! आप कौन हैं?' 'आप अपना काम कीजिये। दीपक बुझनेसे आपके काममें विन हुआ, इसके लिये क्षमा कीजिये ।' स्त्रीने जाते-जाते | बड़ी नम्रतासे कहा । 'परंतु ठहरें, बताइये तो आप कौन हैं और यहाँ क्यों आयी हैं।' पण्डितजीने बल देकर पूछा। स्त्रीने कहा- 'महाराज! आपके काममें विघ्न पड़ रहा है, इस विक्षेपके लिये मैं बड़ी अपराधिनी हूँ ।"

अब तो पण्डितजीने पन्ने नीचे रख दिये, कलम भी रख दी, मानो उन्हें जीवनका कोई नया तत्त्व प्राप्त | हुआ हो। वे बड़ी आतुरतासे बोले- 'नहीं, नहीं, आप अपना परिचय दीजिये जबतक परिचय नहीं देंगी, मैं पना हाथमें नहीं लूंगा।' स्त्री सकुचायी, उसके नेत्र नीचे हो गये और बड़ी ही विनयके साथ उसने कहा 'स्वामिन्! मैं आपकी परिणीता पत्नी हैं, 'आप' कहकर | मुझपर पाप न चढ़ाइये।' पण्डितजी आश्चर्यचकित | होकर बोले-'हैं, मेरी पत्नी ? विवाह कब हुआ था?' | स्त्रीने कहा- 'लगभग पचास साल हुए होंगे, तबसे दासी आपके चरणोंमें ही है।'

पण्डितजी- तुम इतने वर्षोंसे मेरे साथ रहती हो, मुझे आजतक इसका पता कैसे नहीं लगा ?

स्त्री-प्राणनाथ। आपने विवाहमण्डपमें दाहिने हाथ से मेरा बायाँ हाथ पकड़ा था और आपके बायें हाथमें ये पत्रे थे। विवाह हो गया, पर आप इन पन्नोंमें संलग्न रहे। तबसे आप और आपके ये पत्रे नित्यसङ्गी बने हुए हैं। पण्डितजी - पचास वर्षका लंबा समय तुमने कैसे बिताया? मैं तुम्हारा पति हूँ, यह बात तुमने इससे पहले मुझको क्यों नहीं बतलायी ?

स्त्री-प्राणेश्वर! आप दिन-रात अपने काममें लगे रहते थे और मैं अपने काममें मुझे बड़ा सुख मिलता था उसीमें कि आपका कार्य निर्विघ्र चल रहा है। आज दीपक बुझनेसे विघ्न हो गया ! इसीसे यह प्रसङ्ग आ गया।

पण्डितजी - तुम प्रतिदिन क्या करती रहती थी ? स्त्री - नाथ! और क्या करती; जहाँतक बनता, स्वामीके कार्यको निर्विघ्न रखनेका प्रयत्न करती। प्रातःकाल आपके जागनेसे पहले उठकर धीरे-धीरे चक्की चलाती। आप उठते तब आपके शौच-स्नानके लिये जल दे देती। तदनन्तर संध्या आदिकी व्यवस्था करती, फिर भोजनका प्रबन्ध होता। रातको पढ़ते-पढ़ते आप सो जाते, तब में पोथियाँ बाँधकर ठिकाने रखती और आपके सिरहाने | एक तकिया लगा देती एवं आपके चरण दबाते-दबाते वहीं चरणान्तमें सो जाती।

पण्डितजी - मैंने तो तुमको कभी नहीं देखा। स्त्री-देखना अकेली आँखोंसे थोड़े ही होता है, उसके लिये तो मन चाहिये। दृष्टिके साथ मन न हो तो | फिर ये चक्षु-गोलक कैसे किसको देख सकते हैं। चीज | सामने रहती है, पर दिखायी नहीं देती। आपका मन नित्य निरन्तर तल्लीन रहता है-अध्ययन, विचार | और लेखनमें फिर आप मुझे कैसे देखते। पण्डितजी- अच्छा, तो हमलोगोंके खान-पानकी व्यवस्था कैसे होती है ?

स्त्री- दुपहरको अवकाशके समय अड़ोस-पड़ोसकी 1 लड़कियोंको बेल-बूटे निकालना तथा गाना सिखा आती हूँ और वे सब अपने-अपने घरोंसे चावल, दाल, गेहूँ आदि ला देती हैं उसीसे निर्वाह होता है।

यह सुनकर पण्डितजीका हृदय भर आया, वे | उठकर खड़े हो गये और गदद कण्ठसे बोले- 'तुम्हारा नाम क्या है, देवी ?' स्त्रीने कहा-भामती 'भामती! भामती ! मुझे क्षमा करो; पचास-पचास सालतक चुपचाप सेवा ग्रहण करनेवाले और सेविकाकी ओर आँख उठाकर देखनेतककी शिष्टता न करनेवाले इस पापीको क्षमा करो'- यों कहते हुए पण्डितजी भामतीके चरणोंपर गिरने लगे।

भामतीने पीछे हटकर नम्रतासे कहा- 'देव! आप इस प्रकार बोलकर मुझे पापग्रस्त न कीजिये। आपने मेरी ओर दृष्टि डाली होती तो आज मैं मनुष्य न रहकर विषय-विमुग्ध पशु बन गयी होती। आपने मुझे पशु बननेसे बचाकर मनुष्य ही रहने दिया, यह तो आपका अनुग्रह है। नाथ! आपका सारा जीवन शास्त्रके अध्ययन और लेखनमें बीता है। मुझे उसमें आपके अनुग्रहसे जो यत्किंचित् सेवा करनेका सुअवसर मिला है, यह तो मेरा महान् भाग्य है। किसी दूसरे घरमें विवाह हुआ होता तो मैं संसारके प्रपञ्चमें कितना फँस जाती और पता नहीं, शूकर- कूकरकी भाँति कितनी वंश-वृद्धि होती। आपकी तपश्चर्यासे मैं भी पवित्र बन गयी। यह सब आपका ही प्रताप और प्रसाद है। अब आप कृपापूर्वक अपने अध्ययन-लेखनमें लगिये। मुझे सदाके लिये भूल जाइये।' यों कहकर वह जाने लगी।

पण्डितजी-भामती! भामती! तनिक रुक जाओ, मेरी बात तो सुनो।

'भामती - नाथ। आप अपनी जीवनसङ्गिनी साधनाका विस्मरण करके क्यों मोहके गर्तमें गिरते हैं और मुझको भी क्यों इस पाप पडूमें फँसाते हैं।

पण्डितजी -भामती ! मैं तुझे पाप-पङ्कमें नहीं फँसाना चाहता मैं तो अपने लिये सोच रहा हूँ कि मैं पाप गर्तमें गिरा हूँ या किसी ऊँचाईपर स्थित हूँ। भामती - नाथ! आप तो देवता हैं; आप जो कुछ लिखेंगे, उससे जगत्का उद्धार होगा।

पण्डितजी - ' भामती ! तुम सच मानो! भगवान् व्यासने वर्षों तप करनेके बाद इस वेदान्त दर्शन ग्रन्थकी रचना की और मैंने जीवनभर इसका पठन एवं मनन किया; परंतु तुम विश्वास करो कि मेरा यह समस्त पठन, मनन, मेरा समग्र विवेक, यह सारा वेदान्त तुम्हारे पवित्र सहज तपोमय जीवनकी तुलनामें सर्वथा नगण्य है व्यासभगवान्ने ग्रन्थ लिखा, मैंने पठन-मनन किया; परंतु तुम तो मूर्तिमान् वेदान्त हो ।' यों कहते-कहते पण्डितजी पुनः उसके चरणोंपर गिरने लगे। भामतीने उन्हें उठाकर विनम्रभावसे कहा- 'पतिदेव ! यह क्या कर रहे हैं! मैंने तो अपने जीवनमें आपकी सेवाके अतिरिक्त कभी कुछ चाहा नहीं । आपने मुझ जैसीको ऐसी सेवाका सुअवसर दिया, यह आपका मुझपर महान् उपकार है। आजतक मैं प्रतिदिन आपके चरणोंमें सुखसे सोकर नींद लेती रही हूँ; यों इन चरणोंमें ही सोती सोती महानिद्रामें पहुँच जाऊँ तो मेरा महान् भाग्य हो ।' पण्डितजी – 'भामतीदेवी! सुनो, मैंने अपना सारा जीवन इन पन्नोंके लिखनेमें ही बिता दिया। परंतु तुमने मेरे पीछे जैसा जीवन बिताया है, उसके सामने मुझे अपना जीवन अत्यन्त क्षुद्र और नगण्य प्रतीत हो रहा है। मुझे इस ग्रन्थके एक-एक पन्नेमें, एक-एक पंक्ति में और अक्षर-अक्षरमें तुम्हारा जीवन दीख रहा है। अतः जगत् में यह ग्रन्थ अब तुम्हारे ही नामसे प्रसिद्ध होगा। तुमने मेरे लिये जो अपूर्व त्याग किया, उसकी चिरस्मृतिके लिये मेरा यह अनुरोध स्वीकार करो।' 'प्रभो!' आप ऐसा कीजिये जिसमें इस अतुलनीय आत्मत्यागके सामने मुझ-जैसे क्षुद्र मनुष्यको जगत् भूल जाय।' 'आप अपने काममें लगिये, देव!' यों कहकर भामती जाने लगी। तब 'तुमको जहाँ जाना हो, जाओ। परंतु अब मैं जीवित मूर्तिमान् वेदान्तको छोड़कर | वेदान्तके मृत शवका स्पर्श नहीं करना चाहता।' याँ कहकर पण्डितजीने पोथी पत्रे बाँध दिये।

पण्डितजीके द्वारा रचित महान् ग्रन्थ वेदान्तदर्शन (ब्रह्मसूत्र) - का अपूर्व भाष्य आज भी वेदान्तका एक अप्रतिम रत्न माना जाता है। इस ग्रन्थका नाम है 'भामती' और इसके लेखक हैं-प्रसिद्ध पण्डितशिरोमणि श्रीवाचस्पति मिश्र ।



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dhany bhaamatee

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ab to panditajeene panne neeche rakh diye, kalam bhee rakh dee, maano unhen jeevanaka koee naya tattv praapt | hua ho. ve bada़ee aaturataase bole- 'naheen, naheen, aap apana parichay deejiye jabatak parichay naheen dengee, main pana haathamen naheen loongaa.' stree sakuchaayee, usake netr neeche ho gaye aur bada़ee hee vinayake saath usane kaha 'svaamin! main aapakee parineeta patnee hain, 'aapa' kahakar | mujhapar paap n chadha़aaiye.' panditajee aashcharyachakit | hokar bole-'hain, meree patnee ? vivaah kab hua thaa?' | streene kahaa- 'lagabhag pachaas saal hue honge, tabase daasee aapake charanonmen hee hai.'

panditajee- tum itane varshonse mere saath rahatee ho, mujhe aajatak isaka pata kaise naheen laga ?

stree-praananaatha. aapane vivaahamandapamen daahine haath se mera baayaan haath pakada़a tha aur aapake baayen haathamen ye patre the. vivaah ho gaya, par aap in pannonmen sanlagn rahe. tabase aap aur aapake ye patre nityasangee bane hue hain. panditajee - pachaas varshaka lanba samay tumane kaise bitaayaa? main tumhaara pati hoon, yah baat tumane isase pahale mujhako kyon naheen batalaayee ?

stree-praaneshvara! aap dina-raat apane kaamamen lage rahate the aur main apane kaamamen mujhe baड़a sukh milata tha useemen ki aapaka kaary nirvighr chal raha hai. aaj deepak bujhanese vighn ho gaya ! iseese yah prasang a gayaa.

panditajee - tum pratidin kya karatee rahatee thee ? stree - naatha! aur kya karatee; jahaantak banata, svaameeke kaaryako nirvighn rakhaneka prayatn karatee. praatahkaal aapake jaaganese pahale uthakar dheere-dheere chakkee chalaatee. aap uthate tab aapake shaucha-snaanake liye jal de detee. tadanantar sandhya aadikee vyavastha karatee, phir bhojanaka prabandh hotaa. raatako padha़te-padha़te aap so jaate, tab men pothiyaan baandhakar thikaane rakhatee aur aapake sirahaane | ek takiya laga detee evan aapake charan dabaate-dabaate vaheen charanaantamen so jaatee.

panditajee - mainne to tumako kabhee naheen dekhaa. stree-dekhana akelee aankhonse thoda़e hee hota hai, usake liye to man chaahiye. drishtike saath man n ho to | phir ye chakshu-golak kaise kisako dekh sakate hain. cheej | saamane rahatee hai, par dikhaayee naheen detee. aapaka man nity nirantar talleen rahata hai-adhyayan, vichaar | aur lekhanamen phir aap mujhe kaise dekhate. panditajee- achchha, to hamalogonke khaana-paanakee vyavastha kaise hotee hai ?

stree- dupaharako avakaashake samay ada़osa-pada़osakee 1 lada़kiyonko bela-boote nikaalana tatha gaana sikha aatee hoon aur ve sab apane-apane gharonse chaaval, daal, gehoon aadi la detee hain useese nirvaah hota hai.

yah sunakar panditajeeka hriday bhar aaya, ve | uthakar khada़e ho gaye aur gadad kanthase bole- 'tumhaara naam kya hai, devee ?' streene kahaa-bhaamatee 'bhaamatee! bhaamatee ! mujhe kshama karo; pachaasa-pachaas saalatak chupachaap seva grahan karanevaale aur sevikaakee or aankh uthaakar dekhanetakakee shishtata n karanevaale is paapeeko kshama karo'- yon kahate hue panditajee bhaamateeke charanonpar girane lage.

bhaamateene peechhe hatakar namrataase kahaa- 'deva! aap is prakaar bolakar mujhe paapagrast n keejiye. aapane meree or drishti daalee hotee to aaj main manushy n rahakar vishaya-vimugdh pashu ban gayee hotee. aapane mujhe pashu bananese bachaakar manushy hee rahane diya, yah to aapaka anugrah hai. naatha! aapaka saara jeevan shaastrake adhyayan aur lekhanamen beeta hai. mujhe usamen aapake anugrahase jo yatkinchit seva karaneka suavasar mila hai, yah to mera mahaan bhaagy hai. kisee doosare gharamen vivaah hua hota to main sansaarake prapanchamen kitana phans jaatee aur pata naheen, shookara- kookarakee bhaanti kitanee vansha-vriddhi hotee. aapakee tapashcharyaase main bhee pavitr ban gayee. yah sab aapaka hee prataap aur prasaad hai. ab aap kripaapoorvak apane adhyayana-lekhanamen lagiye. mujhe sadaake liye bhool jaaiye.' yon kahakar vah jaane lagee.

panditajee-bhaamatee! bhaamatee! tanik ruk jaao, meree baat to suno.

'bhaamatee - naatha. aap apanee jeevanasanginee saadhanaaka vismaran karake kyon mohake gartamen girate hain aur mujhako bhee kyon is paap padoomen phansaate hain.

panditajee -bhaamatee ! main tujhe paapa-pankamen naheen phansaana chaahata main to apane liye soch raha hoon ki main paap gartamen gira hoon ya kisee oonchaaeepar sthit hoon. bhaamatee - naatha! aap to devata hain; aap jo kuchh likhenge, usase jagatka uddhaar hogaa.

panditajee - ' bhaamatee ! tum sach maano! bhagavaan vyaasane varshon tap karaneke baad is vedaant darshan granthakee rachana kee aur mainne jeevanabhar isaka pathan evan manan kiyaa; parantu tum vishvaas karo ki mera yah samast pathan, manan, mera samagr vivek, yah saara vedaant tumhaare pavitr sahaj tapomay jeevanakee tulanaamen sarvatha nagany hai vyaasabhagavaanne granth likha, mainne pathana-manan kiyaa; parantu tum to moortimaan vedaant ho .' yon kahate-kahate panditajee punah usake charanonpar girane lage. bhaamateene unhen uthaakar vinamrabhaavase kahaa- 'patidev ! yah kya kar rahe hain! mainne to apane jeevanamen aapakee sevaake atirikt kabhee kuchh chaaha naheen . aapane mujh jaiseeko aisee sevaaka suavasar diya, yah aapaka mujhapar mahaan upakaar hai. aajatak main pratidin aapake charanonmen sukhase sokar neend letee rahee hoon; yon in charanonmen hee sotee sotee mahaanidraamen pahunch jaaoon to mera mahaan bhaagy ho .' panditajee – 'bhaamateedevee! suno, mainne apana saara jeevan in pannonke likhanemen hee bita diyaa. parantu tumane mere peechhe jaisa jeevan bitaaya hai, usake saamane mujhe apana jeevan atyant kshudr aur nagany prateet ho raha hai. mujhe is granthake eka-ek pannemen, eka-ek pankti men aur akshara-aksharamen tumhaara jeevan deekh raha hai. atah jagat men yah granth ab tumhaare hee naamase prasiddh hogaa. tumane mere liye jo apoorv tyaag kiya, usakee chirasmritike liye mera yah anurodh sveekaar karo.' 'prabho!' aap aisa keejiye jisamen is atulaneey aatmatyaagake saamane mujha-jaise kshudr manushyako jagat bhool jaaya.' 'aap apane kaamamen lagiye, deva!' yon kahakar bhaamatee jaane lagee. tab 'tumako jahaan jaana ho, jaao. parantu ab main jeevit moortimaan vedaantako chhoda़kar | vedaantake mrit shavaka sparsh naheen karana chaahataa.' yaan kahakar panditajeene pothee patre baandh diye.

panditajeeke dvaara rachit mahaan granth vedaantadarshan (brahmasootra) - ka apoorv bhaashy aaj bhee vedaantaka ek apratim ratn maana jaata hai. is granthaka naam hai 'bhaamatee' aur isake lekhak hain-prasiddh panditashiromani shreevaachaspati mishr .

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वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
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तू राधे राधे गा ,
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