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विद्याका अहंकार  [Short Story]
प्रेरक कथा - हिन्दी कथा (Hindi Story)

एक बौद्ध ब्रह्मचारी था। अवस्था बीस वर्षकी होगी । चतुर तो था ही, ज्ञानार्जनमें भी कुशल और तत्पर था। वह अपनी प्रशंसाके लिये अनेक कलाओंका अभ्यास करना चाहता था और एतदर्थ वह कई देशों में घूमता रहा। एक व्यक्तिको उसने बाण बनाते देखा और उससे बाण बनानेकी कला सीख ली। इसी प्रकार एक दूसरे देशमें जाकर उसने जहाज बनानेकी - नौ निर्माण- कला सीख ली। एक तीसरे देशमें जाकर गृह निर्माण - कला भी सीख ली। इसी प्रकार वह सोलह देशोंमें गया और वहाँसे अनेक कलाओंका विशारद होकर लौटा। वह अपने देशमें पहुँचा तो प्रायः अहंकारसे लोगोंसे पूछ बैठता- 'पृथ्वीपर है मुझ जैसा कोई चतुर व्यक्ति ?'

भगवान् बुद्धको इस युवा ब्रह्मचारीकी दशापर दया आयी। उन्होंने उसे एक उच्चतर कला सिखानी चाही। वे एक वृद्ध श्रमणका वेष बनाकर हाथमें भिक्षापात्रलिये उसके सामने उपस्थित हुए ।

'कौन हो तुम?' ब्रह्मचारीने बड़े अभिमानसे पूछा । 'मैं आत्मविजयका पथिक हूँ।' भगवान्ने कहा।

'क्या अर्थ है तुम्हारे इस कथनका ?'

'इषुकार बाण बना लेता है, नौचालक जहाजपर नियन्त्रण रख लेता है। गृहनिर्माता घर भी बना लेता है। पर यह तो महाविद्वान्‌का ही कार्य है जो अपने शरीरपर, मनपर नियन्त्रण रख सके- आत्मविजय पा सके ।'

'किस प्रकार ?' युवकने प्रश्न किया ।

'यदि संसार उसकी प्रशंसाके गीत गाता है तो उसका मन शान्त स्थिर है। यदि संसार उसे गाली देता है, तब भी उसका दिल-दिमाग ठीक है। जो ऐसा है, वही साधक शान्ति तथा निर्वाणको प्राप्त करता है-न कि प्रशंसाका इच्छुक ।' उत्तर था भगवान्‌का । वह समझ गया अपनी भूलको । — जा0 श0



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vidyaaka ahankaara

ek bauddh brahmachaaree thaa. avastha bees varshakee hogee . chatur to tha hee, jnaanaarjanamen bhee kushal aur tatpar thaa. vah apanee prashansaake liye anek kalaaonka abhyaas karana chaahata tha aur etadarth vah kaee deshon men ghoomata rahaa. ek vyaktiko usane baan banaate dekha aur usase baan banaanekee kala seekh lee. isee prakaar ek doosare deshamen jaakar usane jahaaj banaanekee - nau nirmaana- kala seekh lee. ek teesare deshamen jaakar grih nirmaan - kala bhee seekh lee. isee prakaar vah solah deshonmen gaya aur vahaanse anek kalaaonka vishaarad hokar lautaa. vah apane deshamen pahuncha to praayah ahankaarase logonse poochh baithataa- 'prithveepar hai mujh jaisa koee chatur vyakti ?'

bhagavaan buddhako is yuva brahmachaareekee dashaapar daya aayee. unhonne use ek uchchatar kala sikhaanee chaahee. ve ek vriddh shramanaka vesh banaakar haathamen bhikshaapaatraliye usake saamane upasthit hue .

'kaun ho tuma?' brahmachaareene bada़e abhimaanase poochha . 'main aatmavijayaka pathik hoon.' bhagavaanne kahaa.

'kya arth hai tumhaare is kathanaka ?'

'ishukaar baan bana leta hai, nauchaalak jahaajapar niyantran rakh leta hai. grihanirmaata ghar bhee bana leta hai. par yah to mahaavidvaan‌ka hee kaary hai jo apane shareerapar, manapar niyantran rakh sake- aatmavijay pa sake .'

'kis prakaar ?' yuvakane prashn kiya .

'yadi sansaar usakee prashansaake geet gaata hai to usaka man shaant sthir hai. yadi sansaar use gaalee deta hai, tab bhee usaka dila-dimaag theek hai. jo aisa hai, vahee saadhak shaanti tatha nirvaanako praapt karata hai-n ki prashansaaka ichchhuk .' uttar tha bhagavaan‌ka . vah samajh gaya apanee bhoolako . — jaa0 sha0

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