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भगवत्प्राप्तिके लिये कैसी व्याकुलता अपेक्षित  [Short Story]
बोध कथा - Shikshaprad Kahani (Hindi Story)

एक शिष्यने अपने गुरुसे पूछा- 'भगवन्! भगवत्प्राप्तिके लिये किस प्रकारकी व्याकुलता होनी चाहिये ?' गुरु मौन रहे। शिष्य भी उनका रुख देखकर शान्त रह गया। दूसरे दिन स्नानके समय गुरु-शिष्यने एक ही साथ नदीमें गोता लगाया। गुरुने शिष्यको पकड़कर एकाएक जोरसे पानीमें दबाया। वह बड़े जोरसे छटपटाया और किसी प्रकार तड़प-कूद मचा बाहर निकल आया। स्वस्थ होनेपर गुरुने पूछा- 'पानीसे निकलनेके लियेकितनी आतुरता थी तुम्हारे मनमें।' शिष्य बोला- 'बस, एक क्षण और पानीमें रह जाता तो मर ही गया था।'

गुरुने कहा- 'बस, जिस क्षण संसाररूपी जलसे बाहर निकलकर अपने परम प्रियतम प्रभुसे मिलनेके लिये यों ही व्याकुल हो उठोगे, उसी क्षण तुम्हारी व्याकुलता उचित रूपमें व्यक्त होगी और वह प्रभुको प्राप्त करा सकेगी।'



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bhagavatpraaptike liye kaisee vyaakulata apekshita

ek shishyane apane guruse poochhaa- 'bhagavan! bhagavatpraaptike liye kis prakaarakee vyaakulata honee chaahiye ?' guru maun rahe. shishy bhee unaka rukh dekhakar shaant rah gayaa. doosare din snaanake samay guru-shishyane ek hee saath nadeemen gota lagaayaa. gurune shishyako pakada़kar ekaaek jorase paaneemen dabaayaa. vah bada़e jorase chhatapataaya aur kisee prakaar tada़pa-kood macha baahar nikal aayaa. svasth honepar gurune poochhaa- 'paaneese nikalaneke liyekitanee aaturata thee tumhaare manamen.' shishy bolaa- 'bas, ek kshan aur paaneemen rah jaata to mar hee gaya thaa.'

gurune kahaa- 'bas, jis kshan sansaararoopee jalase baahar nikalakar apane param priyatam prabhuse milaneke liye yon hee vyaakul ho uthoge, usee kshan tumhaaree vyaakulata uchit roopamen vyakt hogee aur vah prabhuko praapt kara sakegee.'

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