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सच्ची क्षमा  [Hindi Story]
शिक्षदायक कहानी - Shikshaprad Kahani (आध्यात्मिक कथा)

गीतगोविन्दके कर्ता भक्तश्रेष्ठ महाकवि जयदेव तीर्थयात्राको निकले थे। एक नरेशने उनका बहुत सम्मान किया और उन्हें बहुत सा धन दिया । धनके लोभसे कुछ डाकू उनके साथ हो लिये । एकान्त स्थानमें पहुँचनेपर डाकुओंने आक्रमण करके जयदेवजीको पटक दिया, उनके हाथ-पैर काटकर उन्हें एक कुएँ में डाल दिया और धनकी गठरी लेकर चलते बने। संयोगवश उस कुएँमें पानी नहीं था। जयदेवजीको जब चेतना लौटी, तब कुएँमें ही भगवन्नाम-कीर्तन करने लगे। उधरसे उसी दिन गौड़ेश्वर राजा लक्ष्मणसेनकी सवारी निकली। कुएँके भीतरसे मनुष्यका शब्द आता सुनायी पड़ा उन्हें । नरेशकी आज्ञासे जयदेवजी बाहर निकाले गये। जयदेवजीको लेकर नरेश राजधानी आये। नरेशपर जयदेवजीकी विद्वत्ता तथा भगवद्भक्तिका इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने जयदेवजीको अपनी पञ्चरत्नसभाका प्रधान बना दिया और सर्वाध्यक्षका भार भी उन्हें सौंप दिया। बहुत पूछनेपर भी नरेशको जयदेवजीने अपने हाथ-पैर काटनेवालोंका हुलिया बताया नहीं। एक बार राजमहलमें कोई उत्सव था। बहुत अधिक भिक्षुक, साधु तथा ब्राह्मण भोजन करने आये थे। उन्हींमें जयदेवजीके हाथ-पैर काटनेवाले डाकू भी साधुके वेशमें आये थे। लूले, पङ्गु जयदेवजीको वहाँ सर्वाध्यक्ष देखकर डाकुओंके प्राण सूख गये। जयदेवजीने भी उन्हें पहचान लिया और राजासे बोले - 'मेरे कुछ पुराने मित्र आये हैं। आप चाहें तो उन्हें कुछ धन दे सकते हैं।'

नरेशने डाकुओंको पास बुलवाया। डाकुओंने समझा कि अब प्राण नहीं बचेंगे; किंतु राजाने उनका बड़ा सत्कार किया, उन्हें बहुत अधिक धन दिया। डाकू शीघ्र वहाँसे चले जाना चाहते थे। नरेशने उन्हें साधु और जयदेवजीका मित्र समझकर बहुत धन दिया था। कुछ सेवक उनके साथ कर दिये, जिसमें वे सुरक्षित घर पहुँच सकें।मार्गमें राजसेवकोंने स्वभाववश पूछा—' श्रीजयदेवजीये आपलोगोंका क्या सम्बन्ध है ?'

डाकू बोले-'हमलोग एक राज्यमें ही कर्मचारी थे। तुम्हारा जो आज सर्वाध्यक्ष है, उसने वहाँ ऐसा कुकर्म किया कि राजाने इसे प्राणदण्डकी आज्ञा दी। लेकिन हमलोगोंने दया करके इसे हाथ-पैर कटवाकर जीवित छुड़वा दिया। हम उसका भेद न खोल दें, इस डरसे उसने हमारा इतना सम्मान कराया है।'

डाकुओंका पाप अब सृष्टिकर्ताको असह्य हो गया। | उसी समय वहाँ पृथ्वी फटी और सब डाकू उसमें समा गये। राजसेवक धन लेकर लौटे। श्रीजयदेवजीको समाचार मिला तो बहुत दुःखी हुए। उन्होंने राजासे सब बातें सच-सच बता दीं और बोले- 'मैंने सोचा था कि वे बेचारे दरिद्र हैं। धनके लोभसे पाप करते हैं। धन मिल जायगा तो पाप करनेसे बचेंगे; किंतु मैं ऐसा अभागा हूँ कि मेरे कारण उन्हें प्राण खोने पड़े। भगवान् उन्हें क्षमा करें। उनकी सद्गति हो!' इसी समय जयदेवजीके हाथ-पैर पहले के समान हो गये। - सु0 सिं0



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sachchee kshamaa

geetagovindake karta bhaktashreshth mahaakavi jayadev teerthayaatraako nikale the. ek nareshane unaka bahut sammaan kiya aur unhen bahut sa dhan diya . dhanake lobhase kuchh daakoo unake saath ho liye . ekaant sthaanamen pahunchanepar daakuonne aakraman karake jayadevajeeko patak diya, unake haatha-pair kaatakar unhen ek kuen men daal diya aur dhanakee gatharee lekar chalate bane. sanyogavash us kuenmen paanee naheen thaa. jayadevajeeko jab chetana lautee, tab kuenmen hee bhagavannaama-keertan karane lage. udharase usee din gauda़eshvar raaja lakshmanasenakee savaaree nikalee. kuenke bheetarase manushyaka shabd aata sunaayee pada़a unhen . nareshakee aajnaase jayadevajee baahar nikaale gaye. jayadevajeeko lekar naresh raajadhaanee aaye. nareshapar jayadevajeekee vidvatta tatha bhagavadbhaktika itana prabhaav pada़a ki unhonne jayadevajeeko apanee pancharatnasabhaaka pradhaan bana diya aur sarvaadhyakshaka bhaar bhee unhen saunp diyaa. bahut poochhanepar bhee nareshako jayadevajeene apane haatha-pair kaatanevaalonka huliya bataaya naheen. ek baar raajamahalamen koee utsav thaa. bahut adhik bhikshuk, saadhu tatha braahman bhojan karane aaye the. unheenmen jayadevajeeke haatha-pair kaatanevaale daakoo bhee saadhuke veshamen aaye the. loole, pangu jayadevajeeko vahaan sarvaadhyaksh dekhakar daakuonke praan sookh gaye. jayadevajeene bhee unhen pahachaan liya aur raajaase bole - 'mere kuchh puraane mitr aaye hain. aap chaahen to unhen kuchh dhan de sakate hain.'

nareshane daakuonko paas bulavaayaa. daakuonne samajha ki ab praan naheen bachenge; kintu raajaane unaka bada़a satkaar kiya, unhen bahut adhik dhan diyaa. daakoo sheeghr vahaanse chale jaana chaahate the. nareshane unhen saadhu aur jayadevajeeka mitr samajhakar bahut dhan diya thaa. kuchh sevak unake saath kar diye, jisamen ve surakshit ghar pahunch saken.maargamen raajasevakonne svabhaavavash poochhaa—' shreejayadevajeeye aapalogonka kya sambandh hai ?'

daakoo bole-'hamalog ek raajyamen hee karmachaaree the. tumhaara jo aaj sarvaadhyaksh hai, usane vahaan aisa kukarm kiya ki raajaane ise praanadandakee aajna dee. lekin hamalogonne daya karake ise haatha-pair katavaakar jeevit chhuda़va diyaa. ham usaka bhed n khol den, is darase usane hamaara itana sammaan karaaya hai.'

daakuonka paap ab srishtikartaako asahy ho gayaa. | usee samay vahaan prithvee phatee aur sab daakoo usamen sama gaye. raajasevak dhan lekar laute. shreejayadevajeeko samaachaar mila to bahut duhkhee hue. unhonne raajaase sab baaten sacha-sach bata deen aur bole- 'mainne socha tha ki ve bechaare daridr hain. dhanake lobhase paap karate hain. dhan mil jaayaga to paap karanese bachenge; kintu main aisa abhaaga hoon ki mere kaaran unhen praan khone pada़e. bhagavaan unhen kshama karen. unakee sadgati ho!' isee samay jayadevajeeke haatha-pair pahale ke samaan ho gaye. - su0 sin0

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