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सिकन्दरकी मातृभक्ति  [हिन्दी कहानी]
Shikshaprad Kahani - Spiritual Story (आध्यात्मिक कथा)

कहते हैं कि सिकन्दर अपने मित्रोंको अत्यन्त प्यार करता था। पर उसकी मातृभक्ति इतनी प्रबल थी कि वह उनसे हजारगुना माताकी प्रतिष्ठा करता था। एक बारकी बात है कि जब सिकन्दर बाहर था, तब अंटीपेटर नामक उसके एक मित्रने सिकन्दरको एक पत्र लिखा-' आपकी माताके हस्तक्षेपसे राजकार्यकापरिचालन बड़ा कठिन हो गया है। उनका स्वभाव आप जानते ही हैं, वे स्त्री होनेपर भी सदा राजकार्यमें हस्तक्षेप करती रहती हैं।'

सिकन्दरने इस पत्रको पढ़ा और हँसकर लिख दिया—'मेरी माताका एक बूँद आँसू तुम्हारी हजारों चिट्ठियोंको पोंछ डाल सकता है। इसका सदा ध्यान रखना।'



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sikandarakee maatribhakti

kahate hain ki sikandar apane mitronko atyant pyaar karata thaa. par usakee maatribhakti itanee prabal thee ki vah unase hajaaraguna maataakee pratishtha karata thaa. ek baarakee baat hai ki jab sikandar baahar tha, tab anteepetar naamak usake ek mitrane sikandarako ek patr likhaa-' aapakee maataake hastakshepase raajakaaryakaaparichaalan bada़a kathin ho gaya hai. unaka svabhaav aap jaanate hee hain, ve stree honepar bhee sada raajakaaryamen hastakshep karatee rahatee hain.'

sikandarane is patrako padha़a aur hansakar likh diyaa—'meree maataaka ek boond aansoo tumhaaree hajaaron chitthiyonko ponchh daal sakata hai. isaka sada dhyaan rakhanaa.'

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