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का भाषा का संस्कृत  [Hindi Story]
Short Story - Spiritual Story (हिन्दी कहानी)

'का भाषा का संस्कृत'

केरलमें 'पूंतानम नंपूतिरि' नामक एक महान् सन्त कवि हो गये हैं। एक दिन वे अपनी एक कविता लेकर अपने परिचित कवि मेल्पत्तूर नारायण भट्टतिरि (भगवान् गुरुवायूर - श्रीकृष्णके परम भक्त एवं प्रसिद्ध ग्रन्थ 'नारायणीयम्' के रचनाकार) के पास गये। भट्टतिरि संस्कृतके प्रकाण्ड पण्डित थे, मगर मलयालमका भी उन्हें ज्ञान था।
नंपूतिरिने उनसे कहा-'इस तुच्छ कवितामें जो भी त्रुटियाँ दिखायी दें, कृपया आप उनमें संशोधन कर दीजिये ।'
भट्टतिरिने सोचा कि उनके जैसे संस्कृतके विद्वान्‌को संस्कृतसे निम्नतर भाषामें संशोधन करना उचित नहीं, अतः उन्होंने नंपूतिरिसे कहा 'यह तो मलायलमकी रचना है। उचित होता, किसी मलयालमके कविको इसे दिखाया होता।' नंपूतिरि उनके पास बड़ी आशा लेकर गये थे, यह जवाब सुनकर उन्हें बड़ा दुःख हुआ। मन मसोसकर वे आ गये।
उसी रात्रिको भट्टतिरिको वातज रोगसे पीड़ा होने लगी। वैसे ऐसी पीड़ा उन्हें इससे पहले भी हुई थी और तब उन्होंने भगवान् श्रीकृष्णसे प्रार्थना की थी, जिससे पीड़ा दूर हो गयी थी। इस बार भी उन्होंने कातर स्वरसे भगवान् श्रीकृष्णसे पीड़ासे मुक्त करनेकी प्रार्थना की।
रात्रिको स्वप्नमें श्रीकृष्णने दर्शन देकर कहा 'तुमने आज मेरे शिष्य नंपूतिरिकी कविता न पढ़कर उसे दुखी किया है। जबतक तुम कविताके बारेमें अपना अभिप्राय नहीं बताओगे और उसका समाधान नहीं करोगे, तबतक तुम्हारी पीड़ा दूर नहीं होगी।'
भट्टतिरिकी जब प्रातः नींद खुली तो वे सीधे नंपूतिरिके पास गये। उन्होंने क्षमा माँगी और पूरी कविता पढ़कर उसकी मुक्त कण्ठसे प्रशंसा की। तब कहीं उन्हें वातज - पीड़ासे मुक्ति मिली।



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ka bhaasha ka sanskrita

'ka bhaasha ka sanskrita'

keralamen 'poontaanam nanpootiri' naamak ek mahaan sant kavi ho gaye hain. ek din ve apanee ek kavita lekar apane parichit kavi melpattoor naaraayan bhattatiri (bhagavaan guruvaayoor - shreekrishnake param bhakt evan prasiddh granth 'naaraayaneeyam' ke rachanaakaara) ke paas gaye. bhattatiri sanskritake prakaand pandit the, magar malayaalamaka bhee unhen jnaan thaa.
nanpootirine unase kahaa-'is tuchchh kavitaamen jo bhee trutiyaan dikhaayee den, kripaya aap unamen sanshodhan kar deejiye .'
bhattatirine socha ki unake jaise sanskritake vidvaan‌ko sanskritase nimnatar bhaashaamen sanshodhan karana uchit naheen, atah unhonne nanpootirise kaha 'yah to malaayalamakee rachana hai. uchit hota, kisee malayaalamake kaviko ise dikhaaya hotaa.' nanpootiri unake paas bada़ee aasha lekar gaye the, yah javaab sunakar unhen bada़a duhkh huaa. man masosakar ve a gaye.
usee raatriko bhattatiriko vaataj rogase peeda़a hone lagee. vaise aisee peeda़a unhen isase pahale bhee huee thee aur tab unhonne bhagavaan shreekrishnase praarthana kee thee, jisase peeda़a door ho gayee thee. is baar bhee unhonne kaatar svarase bhagavaan shreekrishnase peeda़aase mukt karanekee praarthana kee.
raatriko svapnamen shreekrishnane darshan dekar kaha 'tumane aaj mere shishy nanpootirikee kavita n padha़kar use dukhee kiya hai. jabatak tum kavitaake baaremen apana abhipraay naheen bataaoge aur usaka samaadhaan naheen karoge, tabatak tumhaaree peeda़a door naheen hogee.'
bhattatirikee jab praatah neend khulee to ve seedhe nanpootirike paas gaye. unhonne kshama maangee aur pooree kavita padha़kar usakee mukt kanthase prashansa kee. tab kaheen unhen vaataj - peeda़aase mukti milee.

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