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पतिसेवासे पति वशमें  [Moral Story]
Hindi Story - Spiritual Story (शिक्षदायक कहानी)

वेरूलके निकट देवगाँवके आऊदेवकी कन्या बहिणाबाई और उसके पति गङ्गाधरराव पाठक पट्टीदारी के झगड़ेसे ऊबकर घर त्याग कोल्हापुरमें आकर बस गये।वहाँ मकान मालिक हिरंकटने उन्हें एक सवत्सा कपिला गौ समर्पित की। कपिलाका बछड़ा बहिणासे इतना हिल-मिल गया कि उसके बिना उसे एक क्षणभी चैन नहीं पड़ता।

उन दिनों कोल्हापुरमें समर्थ पंचायतनके प्रसिद्ध संत जयराम स्वामीका कीर्तन चल रहा था। बहिणाबाई भी वहाँ पहुँची और साथमें बछड़ेको लेती गयी। स्वामीका चरण छूकर वह उन्होंके पास बछड़े सहित बैठ गयी। कार्तिकी एकादशीके कारण बढ़ती भीड़ देख प्रबन्धकोंने बछड़ेको वहाँसे बाहर ले जाकर बाँध दिया। बछड़ा जोर-जोरसे रंभाने लगा और बहिणा भी अनमनी हो उठी। स्वामीको पता चलते ही उन्होंने बछड़ेको भीतर बुलवाया और दिव्य दृष्टिसे दोनोंको अधिकारी जान उनका विशेष गौरव किया।

फिर क्या था ! चारों ओर बहिणाकी चर्चा चल पड़ी। सभी कहा करते - 'इतने बड़े साधु जब बहिणाबाईका इतना सम्मान करते हैं, तब निश्चय ही वह पहुँची हुई होगी।' वैसे गृहस्थ होते हुए भी बहिणाबाईका सारा समय भजन-पूजन और गोसेवामें ही बीता।

गङ्गाधरबको यह पसंद न था। बहिणाका गृहस्थी से विराग और निवृत्तिसे अनुराग देख वे भीतर-ही-भीतर
उसपर कुढ़ते थे। यह विराग त्याग देनेके लिये उन्होंने

कई बार बहिणाका मन विषयोंकी ओर मोड़ना चाहा, पर वे कभी सफल न हुए।

जयरामस्वामीकी इस घटनाने तो आग में घीका काम कर दिया। रावका क्रोध भड़क उठा और उन्होंने बहिनाको इतना पीटा कि बेचारी सप्ताहों खटियापर पड़ी रही। उसे कभी होश आता तो कभी बेहोश हो जाती। पता लगनेपर जयरामस्वामी उसकी खबर लेने आये और रावको समझाकर भविष्यमें उसपर हाथ चलानेसे रोका; पर परम संसारी रावको यह अमृत उपदेश भी कडुवा लगा ।

इधर मर्मस्थानोंकी चोटसे बहिणाकी दशा दिन पर-दिन बिगड़ने लगी। इसी बीच एक दिन बहिणाको स्वप्रमें किसी ब्राह्मणने आकर कहा- 'बच्ची, सचेत हो जाओ।' स्वप्रमें ही उसने जयरामस्वामीकी जय बोली और तुकारामको प्रार्थना की। तुकारामने स्वप्रमें ही बहिणाको मन्त्रोपदेश दे दीक्षित किया। जागने के साथ ही बहिणाके स्वास्थ्य में आश्चर्यजनकपरिवर्तन हो गया। उसकी सारी पीड़ा हवा हीच चेहरा दिव्य कान्तिसे दीप्त हो उठा। अब तो वह भगवदानन्दमें और भी रमने लगी। उसके अन्तर तुकोबा प्रत्यक्ष दर्शनको तीव्र उत्कण्ठा जाग उठी। दुबारा जयदेवस्वामी उसके घर पधारे। अब तो सारा | कोल्हापुर बहिणाके घर टूट पड़ने लगा। बहिणाका घर साधकोंका अखाड़ा बन गया।

यह सब देखकर गङ्गाधरराव अत्यन्त निराश हुए। शुद्र जातिके तुकारामकी शिष्या बननेमें गौरव माननेपर बहिणासे वे और भी चिढ़ गये। उन्हें संसारसे विराग सा हो गया। उन्होंने घर त्याग कहीं चले जानेकी सोची और एक दिन जानेके लिये निश्चित भी कर लिया।

बहिणाको इसका पता चलते ही उसे भारी दुःख हुआ। पतिद्वारा परित्यक्ता होनेकी कल्पनासे ही वह काँप उठी। उसने बहुत अनुनय-विनय किया, पर राव टस से मस नहीं हुए।

लाचार बहिणा निर्बलके बल रामको मनाने लगी 'प्रभो! मैंने कौन सा ऐसा महान् अपराध किया ज आप इतना कठोर दण्ड दे रहे हो? सच कहती हूँ, पति मुझसे अलग हो गये तो मैं प्राण दे दूँगी। पत्थरके पण्ढरिनाथ और स्वाप्निक तुकारामके लिये प्रत्यक्ष देवता पतिको त्यागनेके लिये मैं कभी तैयार नहीं। नारीके जीवनका विश्राम एकमात्र पति ही होता है। दयालो दया करो और पत रखो।'

भगवान्ने पतिव्रताकी पुकार सुन ली। घर त्यागने से ठीक पहले दिन रातमें गङ्गाधररावको अकस्मात् जोरका ज्वर आ गया और उनकी यात्रा रुक गयी।

साध्वी बहिणाको अवसर मिला और उसने उसका पूरा-पूरा लाभ उठाया। उसने लगातार एक मासतक एकनिष्ठासे पतिकी सेवा-शुश्रूषा की पति सेवामें वह नींद ही क्या भूख-प्यासतक भूल गयी।

बहिणाकी इस अद्भुत सेवासे रावको अपनी करनीपर अनुताप हुआ और उसीके बाद उनका वर ताप भी मिटा के बहिणाको लेकर देहू आये और तुकाराम महाराजके अनन्य भक्त बन गये। पतिव्रताकी सेवाने परम संसारी पतिको परमार्थका पथिक बनालिया।

- गो0 न0 बै0 (धेनुकथा-संग्रह)



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patisevaase pati vashamen

veroolake nikat devagaanvake aaoodevakee kanya bahinaabaaee aur usake pati gangaadhararaav paathak patteedaaree ke jhagada़ese oobakar ghar tyaag kolhaapuramen aakar bas gaye.vahaan makaan maalik hirankatane unhen ek savatsa kapila gau samarpit kee. kapilaaka bachhada़a bahinaase itana hila-mil gaya ki usake bina use ek kshanabhee chain naheen pada़taa.

un dinon kolhaapuramen samarth panchaayatanake prasiddh sant jayaraam svaameeka keertan chal raha thaa. bahinaabaaee bhee vahaan pahunchee aur saathamen bachhada़eko letee gayee. svaameeka charan chhookar vah unhonke paas bachhada़e sahit baith gayee. kaartikee ekaadasheeke kaaran badha़tee bheeda़ dekh prabandhakonne bachhada़eko vahaanse baahar le jaakar baandh diyaa. bachhada़a jora-jorase ranbhaane laga aur bahina bhee anamanee ho uthee. svaameeko pata chalate hee unhonne bachhada़eko bheetar bulavaaya aur divy drishtise dononko adhikaaree jaan unaka vishesh gaurav kiyaa.

phir kya tha ! chaaron or bahinaakee charcha chal pada़ee. sabhee kaha karate - 'itane bada़e saadhu jab bahinaabaaeeka itana sammaan karate hain, tab nishchay hee vah pahunchee huee hogee.' vaise grihasth hote hue bhee bahinaabaaeeka saara samay bhajana-poojan aur gosevaamen hee beetaa.

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usapar kuढ़te the. yah viraag tyaag deneke liye unhonne

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jayaraamasvaameekee is ghatanaane to aag men gheeka kaam kar diyaa. raavaka krodh bhada़k utha aur unhonne bahinaako itana peeta ki bechaaree saptaahon khatiyaapar pada़ee rahee. use kabhee hosh aata to kabhee behosh ho jaatee. pata laganepar jayaraamasvaamee usakee khabar lene aaye aur raavako samajhaakar bhavishyamen usapar haath chalaanese rokaa; par param sansaaree raavako yah amrit upadesh bhee kaduva laga .

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bhagavaanne pativrataakee pukaar sun lee. ghar tyaagane se theek pahale din raatamen gangaadhararaavako akasmaat joraka jvar a gaya aur unakee yaatra ruk gayee.

saadhvee bahinaako avasar mila aur usane usaka pooraa-poora laabh uthaayaa. usane lagaataar ek maasatak ekanishthaase patikee sevaa-shushroosha kee pati sevaamen vah neend hee kya bhookha-pyaasatak bhool gayee.

bahinaakee is adbhut sevaase raavako apanee karaneepar anutaap hua aur useeke baad unaka var taap bhee mita ke bahinaako lekar dehoo aaye aur tukaaraam mahaaraajake anany bhakt ban gaye. pativrataakee sevaane param sansaaree patiko paramaarthaka pathik banaaliyaa.

- go0 na0 bai0 (dhenukathaa-sangraha)

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