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दूसरोंके दोष मत देखो  [शिक्षदायक कहानी]
शिक्षदायक कहानी - छोटी सी कहानी (प्रेरक कथा)

वे नागा साधु थे। एक नागा साधुके समान ही उनमें तितिक्षा थी, तपस्या थी, त्याग था और था अक्खड़पना। साधु तो रमते-राम ठहरे, जहाँ मन लगा; वहीं धूनी भी लग गयी। वे नागा महात्मा घूमते हुए श्रावस्ती नगरीमें पहुँचे। एक नीमका छायादार सघन वृक्ष उन्हें अच्छा लगा। वृक्षके चारों ओर चबूतरा था। साधुने वहीं धूनी लगा ली।

जहाँ साधुकी धूनी लगी थी उसके सम्मुख ही नगरकी एक वेश्याकी अट्टालिका थी। उसके भवनमें पुरुष तो आते-जाते ही रहते थे। साधुको पता नहीं क्या सूझी, जब वेश्याके घरमें कोई पुरुष जाता तब वे एक कंकड़ अपनी धूनीके एक ओर रख देते। उनके कंकड़ोंकी ढेरी पहले ही दिन भूमिसे ऊँची दीखने लगी। कुछ दिनों में तो वह अच्छी बड़ी राशि हो गयी।

एक दिन जब वह वेश्या अपने भवनसे बाहर निकली तब साधुने उसे समीप बुलाकर कहा 'पापिनी! देख अपने कुकृत्यका यह पहाड़! अरी दुष्टे ! तूने इतने पुरुषोंको भ्रष्ट किया है, जितने इस ढेरमें कंकड़ हैं

। अनन्त अनन्त वर्षोंतक तू नरकमें सड़ेगी।' वेश्या भयसे काँपने लगी। उसके नेत्रोंसे आँसूकी धारा चलने लगी। साधुके सामने पृथ्वीपर सिर रखकर गिड़गिड़ाती हुई बोली- 'मुझ पापिनीके उद्धारका उपाय बतावें प्रभु !'

साधु क्रोधपूर्वक बोले-'तेरा उद्धार तो हो ही नहीं सकता। यहाँसे अभी चली जा । तेरा मुख देखनेके कारण मुझे आज उपवास करके प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।'वेश्या भयके मारे वहाँसे चुपचाप अपने भवनमें चली गयी। पश्चात्तापकी अग्रिमें उसका हृदय जल रहा था। अपने पलंगपर मुखके बल पड़ी वह हिचकियाँ ले रही थी- 'भगवान् ! परमात्मा! मुझ अधम नारीको तो तेरा नाम भी लेनेका अधिकार नहीं। है, मुझपर दया कर!' पतितपावन तू उस पश्चात्तापकी घड़ीमें ही उसके प्राण प्रयाण कर गये और जो पापहारी श्रीहरिका स्मरण करते हुए देह त्याग करेगा उसको भगवद्धाम प्राप्त होगा, यह तो कहने की बात ही नहीं है।

उधर वे साधु घृणापूर्वक सोच रहे थे- 'कितनी पापिनी है यह नारी। आयी थी उद्धारका उपाय पूछने, भला ऐसोंका भी कहीं उद्धार हुआ करता है।'

उसी समय साधुकी आयु भी पूरी हो रही थी उन्होंने देखा कि हाथमें पाश लिये, दण्ड उठाये बड़े बड़े दाँतोंवाले भयंकर यमदूत उनके पास आ खड़े हुए हैं। साधुने डाँटकर पूछा- 'तुम सब क्यों आये हो ? कौन हो तुम ?'

यमदूतोंने कहा - 'हम तो धर्मराजके दूत हैं। आपको लेने आये हैं। अब यमपुरी पधारिये ।'

साधुने कहा- 'तुमसे भूल हुई दीखती है। किसी औरको लेने तुम्हें भेजा गया है। मैं तो बचपनसे साधु हो गया और अबतक मैंने तपस्या ही की है। मुझे लेने धर्मराज तुम्हें कैसे भेज सकते हैं। हो सकता है कि तुम इस मकानमें रहनेवाली वेश्याको लेने भेजे गये हो।' यमदूत बोले- 'हमलोग भूल नहीं किया करते।वह वेश्या तो वैकुण्ठ पहुँच चुकी । आपको अब यमपुरी चलना है। आपने बहुत तपस्या की है; किंतु बहुत पाप भी किया है। वेश्याके पापकी गणना करते हुए आप निरन्तर पाप-चिन्तन ही तो किया करते थे और इस मृत्युकालमें भी तो आप पाप-चिन्तन ही कररहे थे। अब आपके पाप-पुण्यके भोगोंका क्रम-निर्णय धर्मराज करेंगे।' साधुके वशकी बात अब नहीं थी । यमदूतोंके पाशमें बँधा प्राणी यमपुरी जानेको विवश होता ही है।

- सु0 सिं0



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doosaronke dosh mat dekho

ve naaga saadhu the. ek naaga saadhuke samaan hee unamen titiksha thee, tapasya thee, tyaag tha aur tha akkhada़panaa. saadhu to ramate-raam thahare, jahaan man lagaa; vaheen dhoonee bhee lag gayee. ve naaga mahaatma ghoomate hue shraavastee nagareemen pahunche. ek neemaka chhaayaadaar saghan vriksh unhen achchha lagaa. vrikshake chaaron or chabootara thaa. saadhune vaheen dhoonee laga lee.

jahaan saadhukee dhoonee lagee thee usake sammukh hee nagarakee ek veshyaakee attaalika thee. usake bhavanamen purush to aate-jaate hee rahate the. saadhuko pata naheen kya soojhee, jab veshyaake gharamen koee purush jaata tab ve ek kankada़ apanee dhooneeke ek or rakh dete. unake kankada़onkee dheree pahale hee din bhoomise oonchee deekhane lagee. kuchh dinon men to vah achchhee bada़ee raashi ho gayee.

ek din jab vah veshya apane bhavanase baahar nikalee tab saadhune use sameep bulaakar kaha 'paapinee! dekh apane kukrityaka yah pahaada़! aree dushte ! toone itane purushonko bhrasht kiya hai, jitane is dheramen kankada़ hain

. anant anant varshontak too narakamen sada़egee.' veshya bhayase kaanpane lagee. usake netronse aansookee dhaara chalane lagee. saadhuke saamane prithveepar sir rakhakar gida़gida़aatee huee bolee- 'mujh paapineeke uddhaaraka upaay bataaven prabhu !'

saadhu krodhapoorvak bole-'tera uddhaar to ho hee naheen sakataa. yahaanse abhee chalee ja . tera mukh dekhaneke kaaran mujhe aaj upavaas karake praayashchitt karana pada़egaa.'veshya bhayake maare vahaanse chupachaap apane bhavanamen chalee gayee. pashchaattaapakee agrimen usaka hriday jal raha thaa. apane palangapar mukhake bal pada़ee vah hichakiyaan le rahee thee- 'bhagavaan ! paramaatmaa! mujh adham naareeko to tera naam bhee leneka adhikaar naheen. hai, mujhapar daya kara!' patitapaavan too us pashchaattaapakee ghada़eemen hee usake praan prayaan kar gaye aur jo paapahaaree shreeharika smaran karate hue deh tyaag karega usako bhagavaddhaam praapt hoga, yah to kahane kee baat hee naheen hai.

udhar ve saadhu ghrinaapoorvak soch rahe the- 'kitanee paapinee hai yah naaree. aayee thee uddhaaraka upaay poochhane, bhala aisonka bhee kaheen uddhaar hua karata hai.'

usee samay saadhukee aayu bhee pooree ho rahee thee unhonne dekha ki haathamen paash liye, dand uthaaye bada़e bada़e daantonvaale bhayankar yamadoot unake paas a khada़e hue hain. saadhune daantakar poochhaa- 'tum sab kyon aaye ho ? kaun ho tum ?'

yamadootonne kaha - 'ham to dharmaraajake doot hain. aapako lene aaye hain. ab yamapuree padhaariye .'

saadhune kahaa- 'tumase bhool huee deekhatee hai. kisee aurako lene tumhen bheja gaya hai. main to bachapanase saadhu ho gaya aur abatak mainne tapasya hee kee hai. mujhe lene dharmaraaj tumhen kaise bhej sakate hain. ho sakata hai ki tum is makaanamen rahanevaalee veshyaako lene bheje gaye ho.' yamadoot bole- 'hamalog bhool naheen kiya karate.vah veshya to vaikunth pahunch chukee . aapako ab yamapuree chalana hai. aapane bahut tapasya kee hai; kintu bahut paap bhee kiya hai. veshyaake paapakee ganana karate hue aap nirantar paapa-chintan hee to kiya karate the aur is mrityukaalamen bhee to aap paapa-chintan hee kararahe the. ab aapake paapa-punyake bhogonka krama-nirnay dharmaraaj karenge.' saadhuke vashakee baat ab naheen thee . yamadootonke paashamen bandha praanee yamapuree jaaneko vivash hota hee hai.

- su0 sin0

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