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आत्मप्रशंसासे पुण्य नष्ट हो जाते हैं।  [Hindi Story]
Spiritual Story - शिक्षदायक कहानी (आध्यात्मिक कथा)

महाराज ययातिने दीर्घकालतक राज्य किया था। अन्तमें सांसारिक भोगोंसे विरक्त होकर अपने छोटे पुत्र पुरुको उन्होंने राज्य दे दिया और वे स्वयं वनमें चले ये वनमें कन्दमूल खाकर क्रोधको जीतकर वानप्रस्थाश्रमको विधिका पालन करते हुए पितरों एवं देवताओंको संतुष्ट करनेके लिये वे तपस्या करने लगे। के नित्य विधिपूर्वक अग्रिहोत्र करते थे; जो अतिथि अभ्यागत आते, उनका आदरपूर्वक कन्द-मूल-फलसे सत्कार करते और स्वयं कटे हुए खेतमें गिरे अन्नके दाने चुनकर तथा स्वतः वृक्षसे गिरे फल लाकर जीवन निर्वाह करते थे। इस प्रकार पूरे एक सहस्र वर्ष तप करनेके बाद महाराज ययातिने केवल जल पोकर तीस वर्ष व्यतीत कर दिये। फिर एक वर्षतक केवल वायु पर रहे। उसके पश्चात् एक वर्षतक वे पञ्चानि तापतेरहे । अन्तके छः महीने तो वायुके आहारपर रहकर एक पैरसे खड़े होकर वे तपस्या करते रहे।

इस कठोर तपस्याके फलसे राजा ययाति स्वर्ग पहुँचे। वहाँ देवताओंने उनका बड़ा आदर किया। वे कभी देवताओंके साथ स्वर्गमें रहते और कभी ब्रह्मलोक चले जाते थे। उनका यह महत्त्व देवताओंकी ईर्ष्याका कारण हो गया। ययाति जब कभी देवराजके भवनमें पहुँचते तब इन्द्रके साथ उनके सिंहासनपर बैठते थे। देवराज इन्द्र उन परम पुण्यात्माको अपनेसे नीचा आसन नहीं दे सकते थे। परंतु स्वर्गमें आये मर्त्यलोकके एक जीवको अपने सिंहासनपर बैठाना इन्द्रको बुरा लगता था। इसमें वे अपना अपमान अनुभव करते थे। देवता भी चाहते थे कि किसी प्रकार ययातिको स्वर्ग-भ्रष्ट कर दिया जाय। इन्द्रको देवताओंका भाव भी ज्ञात हो गया।एक दिन ययाति इन्द्रभवनमें देवराज इन्द्रके साथ एक सिंहासनपर बैठे थे । इन्द्रने अत्यन्त मधुर स्वरमें कहा- 'आप तो महान् पुण्यात्मा हैं। आपकी समानता भला कौन कर सकता है। मेरी यह जाननेकी बहुत इच्छा है कि आपने कौन-सा ऐसा तप किया है, जिसके प्रभावसे ब्रह्मलोकमें जाकर वहाँ इच्छानुसार रह लेते हैं।'

ययाति बड़ाई सुनकर फूल गये और वे इन्द्रकी मीठी वाणीके जालमें आ गये। वे अपनी तपस्याकी प्रशंसा करने लगे। अन्तमें उन्होंने कहा- 'इन्द्र ! देवता, मनुष्य, गन्धर्व और ऋषि आदिमें कोई भी तपस्यामें मुझे अपने समान दीख नहीं पड़ता।

बात समाप्त होते ही देवराजका भाव बदल गया।कठोर स्वरमें वे बोले-'ययाति ! मेरे आसनसे उठ जाओ। तुमने अपने मुखसे अपनी प्रशंसा की है, इससे तुम्हारे वे सब पुण्य नष्ट हो गये, जिनकी तुमने चर्चा की है। देवता, मनुष्य, गन्धर्व, ऋषि आदिमें किसने कितना तप किया है—यह बिना जाने ही तुमने उनका तिरस्कार किया है, इससे अब तुम स्वर्गसे गिरोगे।'

आत्मप्रशंसाने ययातिके तीव्र तपके फलको नष्ट कर दिया। वे स्वर्गसे गिर गये। उनकी प्रार्थनापर देवराजने कृपा करके यह सुविधा उन्हें दे दी थी कि वे सत्पुरुषोंकी मण्डलीमें ही गिरें । सत्सङ्ग-प्राप्तिके परिणामस्वरूप वे पुनः शीघ्र ही स्वर्ग जा सके।

- सु0 सिं0

(महाभारत, आदि0 80-81)



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aatmaprashansaase puny nasht ho jaate hain.

mahaaraaj yayaatine deerghakaalatak raajy kiya thaa. antamen saansaarik bhogonse virakt hokar apane chhote putr puruko unhonne raajy de diya aur ve svayan vanamen chale ye vanamen kandamool khaakar krodhako jeetakar vaanaprasthaashramako vidhika paalan karate hue pitaron evan devataaonko santusht karaneke liye ve tapasya karane lage. ke nity vidhipoorvak agrihotr karate the; jo atithi abhyaagat aate, unaka aadarapoorvak kanda-moola-phalase satkaar karate aur svayan kate hue khetamen gire annake daane chunakar tatha svatah vrikshase gire phal laakar jeevan nirvaah karate the. is prakaar poore ek sahasr varsh tap karaneke baad mahaaraaj yayaatine keval jal pokar tees varsh vyateet kar diye. phir ek varshatak keval vaayu par rahe. usake pashchaat ek varshatak ve panchaani taapaterahe . antake chhah maheene to vaayuke aahaarapar rahakar ek pairase khada़e hokar ve tapasya karate rahe.

is kathor tapasyaake phalase raaja yayaati svarg pahunche. vahaan devataaonne unaka bada़a aadar kiyaa. ve kabhee devataaonke saath svargamen rahate aur kabhee brahmalok chale jaate the. unaka yah mahattv devataaonkee eershyaaka kaaran ho gayaa. yayaati jab kabhee devaraajake bhavanamen pahunchate tab indrake saath unake sinhaasanapar baithate the. devaraaj indr un param punyaatmaako apanese neecha aasan naheen de sakate the. parantu svargamen aaye martyalokake ek jeevako apane sinhaasanapar baithaana indrako bura lagata thaa. isamen ve apana apamaan anubhav karate the. devata bhee chaahate the ki kisee prakaar yayaatiko svarga-bhrasht kar diya jaaya. indrako devataaonka bhaav bhee jnaat ho gayaa.ek din yayaati indrabhavanamen devaraaj indrake saath ek sinhaasanapar baithe the . indrane atyant madhur svaramen kahaa- 'aap to mahaan punyaatma hain. aapakee samaanata bhala kaun kar sakata hai. meree yah jaananekee bahut ichchha hai ki aapane kauna-sa aisa tap kiya hai, jisake prabhaavase brahmalokamen jaakar vahaan ichchhaanusaar rah lete hain.'

yayaati bada़aaee sunakar phool gaye aur ve indrakee meethee vaaneeke jaalamen a gaye. ve apanee tapasyaakee prashansa karane lage. antamen unhonne kahaa- 'indr ! devata, manushy, gandharv aur rishi aadimen koee bhee tapasyaamen mujhe apane samaan deekh naheen pada़taa.

baat samaapt hote hee devaraajaka bhaav badal gayaa.kathor svaramen ve bole-'yayaati ! mere aasanase uth jaao. tumane apane mukhase apanee prashansa kee hai, isase tumhaare ve sab puny nasht ho gaye, jinakee tumane charcha kee hai. devata, manushy, gandharv, rishi aadimen kisane kitana tap kiya hai—yah bina jaane hee tumane unaka tiraskaar kiya hai, isase ab tum svargase giroge.'

aatmaprashansaane yayaatike teevr tapake phalako nasht kar diyaa. ve svargase gir gaye. unakee praarthanaapar devaraajane kripa karake yah suvidha unhen de dee thee ki ve satpurushonkee mandaleemen hee giren . satsanga-praaptike parinaamasvaroop ve punah sheeghr hee svarg ja sake.

- su0 sin0

(mahaabhaarat, aadi0 80-81)

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