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मर्यादाका औचित्य  [Hindi Story]
बोध कथा - प्रेरक कहानी (Hindi Story)

छत्रपति शाहूजी महाराजके दाहिने हाथ श्रीमंत पेशवा बाजीराव थे। उनकी कामना थी कि भगवती कृष्णाके तसे सिन्धु-प्रदेशतक छत्रपति शिवाजी की अक्षय कीर्तिका प्रतीक भगवा ध्वज लहर उठे। वे अपने समयकी बहुत बड़ी शक्ति थे। महाराज जयसिंह द्वितीयको हार्दिक इच्छा थी कि तत्कालीन मुगलसम्राट् मुहम्मदशाह और श्रीमंत पेशवासे संधि हो जाय। मुगलसम्राट्के आदेशसे जयसिंहने पेशवाको दिल्ली पधारनेका निमन्त्रण दिया। अपने साथ अपार सेना लेकर पेशवाने छत्रपति शाहुकी आज्ञासे पूनासे प्रस्थान किया। दिल्ली पहुँचनेके पहले उन्होंने उदयपुरकी सीमामें प्रवेश किया; पर ध्यान देनेकी बात यह है कि पेशवाके साथ कुछ ही सैनिक थे, शेष सैनिकोंको उन्होंने बाहर ही बाहर दिल्ली जानेका आदेश दिया। उन्होंने सेनाके साथ मेवाड़की पवित्र भूमिपर चरण रखना अनुचित समझा।

महाराणा जगतसिंहने उनका धूम-धामसे स्वागत किया। समस्त नगरमें प्रसन्नताको लहर दौड़ गयी। महाराणाने चम्पा बागमें उनके ठहरनेकी व्यवस्था की और दूसरे दिन उनके सम्मानमें विशेष उत्सवका आयोजन किया।

'हिंदूपदपातशाहीके प्राण-श्रीमंत पेशवाकी जय हो। हिंदू- स्वत्व-संरक्षक महाराणा अमर हो।' मागध और वन्दीजनोंकी प्रशंसासे राजसभा भवन परिव्याप्त हो उठा।

'आओ, मित्र' महाराणाने पेशवाका आलिङ्गन किया। बाजीराव गम्भीर थे, पर अधरोंपर मुसकानको ज्योतिमयी गरिमा थी। पेशवाके चरण सिंहासनकी ओरबढ़ते गये। बाजीरावकी गति शिथिल हो गयी, आगे बढ़ने में विवशता थी।

मेवाड़के कोने-कोने से सामन्त पेशवाके भव्य दर्शनके लिये उपस्थित थे। पेशवाके दिल्लीस्थित प्रतिनिधि महादेवभट्ट और जयसिंहके दीवान मलजी भी दैवयोगसे आ गये थे। पेशवाने महाराणाकी राजसभाका ऐश्वर्य देखा, वे सोचने लगे।

'आओ, वीर !' महाराणाने फिर कहा। उन्होंने दो स्वर्णसिंहासन सजाये थे, सिंहासन एक पंक्तिमें थे।

'महाराणा ! यह बापा रावलका सिंहासन है; इस सिंहासनमें महारानी पद्मिनीकी आन, महाराणा साँगाकी वीरता, पन्नाधायका स्वार्थ-बलिदान और राजरानी मीराकी भक्ति अङ्कित है। इस सिंहासनपर विराजमान होकर महाराणा प्रतापने स्वदेश, स्वराज्य और स्वधर्मका मन्त्रानुष्ठान किया; घासकी रोटी खाकर इसकी प्रदीप्ति अक्षुण्ण रखी। इस सिंहासनमें महाराणा राजसिंह और
संग्रामसिंहका ऐश्वर्य संनिहित है।' पेशवा खड़े थे। 'मित्र ! इस सिंहासनपर बैठनेवाला मेवाड़ाधिपति अपने समकक्ष आसन प्रदानकर आपका अभिनन्दन करता है।' जगतसिंहने हाथ बढ़ाया।

'महाराणा! मैं इस सिंहासनके समकक्ष आसनपर किस तरह बैठ सकता हूँ। यह छत्रपति शिवाजीके पूर्वजोंका सिंहासन है। मैंने सीसोदिया वंशका नमक खाया है। मेरे पूर्वजोंने सतारा और सिंहगढ़में इस सिंहासनका जयगान गाया है। मैं मर्यादा भङ्ग नहीं कर सकता।' पेशवा सिंहासनके नीचे बैठ गये। 'मेवाड़ केसरीकी जय हो!' बाजीरावने आशीर्वाद दिया।

रा0 श्री0



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maryaadaaka auchitya

chhatrapati shaahoojee mahaaraajake daahine haath shreemant peshava baajeeraav the. unakee kaamana thee ki bhagavatee krishnaake tase sindhu-pradeshatak chhatrapati shivaajee kee akshay keertika prateek bhagava dhvaj lahar uthe. ve apane samayakee bahut bada़ee shakti the. mahaaraaj jayasinh dviteeyako haardik ichchha thee ki tatkaaleen mugalasamraat muhammadashaah aur shreemant peshavaase sandhi ho jaaya. mugalasamraatke aadeshase jayasinhane peshavaako dillee padhaaraneka nimantran diyaa. apane saath apaar sena lekar peshavaane chhatrapati shaahukee aajnaase poonaase prasthaan kiyaa. dillee pahunchaneke pahale unhonne udayapurakee seemaamen pravesh kiyaa; par dhyaan denekee baat yah hai ki peshavaake saath kuchh hee sainik the, shesh sainikonko unhonne baahar hee baahar dillee jaaneka aadesh diyaa. unhonne senaake saath mevaada़kee pavitr bhoomipar charan rakhana anuchit samajhaa.

mahaaraana jagatasinhane unaka dhooma-dhaamase svaagat kiyaa. samast nagaramen prasannataako lahar dauda़ gayee. mahaaraanaane champa baagamen unake thaharanekee vyavastha kee aur doosare din unake sammaanamen vishesh utsavaka aayojan kiyaa.

'hindoopadapaatashaaheeke praana-shreemant peshavaakee jay ho. hindoo- svatva-sanrakshak mahaaraana amar ho.' maagadh aur vandeejanonkee prashansaase raajasabha bhavan parivyaapt ho uthaa.

'aao, mitra' mahaaraanaane peshavaaka aalingan kiyaa. baajeeraav gambheer the, par adharonpar musakaanako jyotimayee garima thee. peshavaake charan sinhaasanakee orabadha़te gaye. baajeeraavakee gati shithil ho gayee, aage badha़ne men vivashata thee.

mevaada़ke kone-kone se saamant peshavaake bhavy darshanake liye upasthit the. peshavaake dilleesthit pratinidhi mahaadevabhatt aur jayasinhake deevaan malajee bhee daivayogase a gaye the. peshavaane mahaaraanaakee raajasabhaaka aishvary dekha, ve sochane lage.

'aao, veer !' mahaaraanaane phir kahaa. unhonne do svarnasinhaasan sajaaye the, sinhaasan ek panktimen the.

'mahaaraana ! yah baapa raavalaka sinhaasan hai; is sinhaasanamen mahaaraanee padmineekee aan, mahaaraana saangaakee veerata, pannaadhaayaka svaartha-balidaan aur raajaraanee meeraakee bhakti ankit hai. is sinhaasanapar viraajamaan hokar mahaaraana prataapane svadesh, svaraajy aur svadharmaka mantraanushthaan kiyaa; ghaasakee rotee khaakar isakee pradeepti akshunn rakhee. is sinhaasanamen mahaaraana raajasinh aura
sangraamasinhaka aishvary sannihit hai.' peshava khada़e the. 'mitr ! is sinhaasanapar baithanevaala mevaada़aadhipati apane samakaksh aasan pradaanakar aapaka abhinandan karata hai.' jagatasinhane haath badha़aayaa.

'mahaaraanaa! main is sinhaasanake samakaksh aasanapar kis tarah baith sakata hoon. yah chhatrapati shivaajeeke poorvajonka sinhaasan hai. mainne seesodiya vanshaka namak khaaya hai. mere poorvajonne sataara aur sinhagadha़men is sinhaasanaka jayagaan gaaya hai. main maryaada bhang naheen kar sakataa.' peshava sinhaasanake neeche baith gaye. 'mevaada़ kesareekee jay ho!' baajeeraavane aasheervaad diyaa.

raa0 shree0

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