⮪ All Stories / कथा / कहानियाँ

मालिककी कृपाको दूसरे सेवकगण सहन नहीं कर पाते  [प्रेरक कहानी]
आध्यात्मिक कहानी - Short Story (प्रेरक कथा)

मालिककी कृपाको दूसरे सेवकगण सहन नहीं कर पाते

दक्षिणमें महिलारोप्य नामकी नगरी थी। वहाँ वर्धमान नामका धनिक रहता था। पूर्णरूपसे धनी होनेके पश्चात् भी उसने विचार किया कि दूसरे देशमें जाकर धन एकत्र किया जाय। इसके बाद वह नन्दक और संजीवक नामक दो बैलोंको गाड़ीमें जोतकर मथुराकी और चल दिया। मार्गमें संजीवकका घुटना टूट गया और वह गिर पहा। इसलिये वह व्यापारी संजीवकको वहीं छोड़कर दूसरे बैलको लेकर आगे चल पड़ा। ईश्वरकी कृपासे थोड़े ही समयमें संजीवक भी चलनेमें समर्थ हो गया और धीरे धीरे हरी-हरी घास चरता हुआ स्वस्थ और बलशाली भी हो गया। इसीलिये नीति हमें बताती है अरक्षितं तिष्ठति दैवरक्षितं सुरक्षितं दैवहतं विनश्यति ।
जीवत्यनाथोऽपि वने विसर्जितः कृतप्रयत्नोऽपि गृहे विनश्यति ॥
अरक्षित वस्तु भी दैवसे रक्षित होकर बची रहती है और अच्छी तरहसे रक्षित वस्तु भी दैवसे अरक्षित होकर नष्ट हो जाती है। वनमें परित्यक्त हुआ अनाथ भी जी जाता है, किंतु घरमें विशेष प्रयत्न करके रक्षित किया हुआ भी नष्ट हो जाता है।
एक बार नदीके किनारे चरते हुए संजीवकने अपनी इच्छासे जोरसे आवाज की। उस आवाजको सुनकर वनके राजा पिंगलक नामक सिंहने आश्चर्यचकित होते हुए अपने मन्त्रीके पुत्रों करटक और दमनक नामक सियारोंसे कहा इस वनमें कोई विशिष्ट पशु आया हुआ है। उसे जाकर देखो कि वह कौन है? तब राजाके आदेशसे वहाँ जाकर करटक वृक्षके नीचे अकड़कर बैठ गया और दमनक संजीवकके पास जाकर बोला- अरे बैल। यहाँ हम राजा पिंगलकके द्वारा वनकी रक्षाके लिये नियुक्त किये गये हैं। सेनापति करटककी आज्ञासे तुम हमारे स्वामोकी शरण में चलो, अन्यथा यहाँसे दूर चले जाओ। तब संजीवक करटकसे डरते हुए बोला- मैं तुम्हारे स्वामीके पास चलूँगा। करटकने कहा—तुम बिना किसी शंकाके चलो।
उसके बाद करटक तथा दमनक दोनों संजीवकको दूर ठहराकर पिंगलकके समीप गये और वे बोले-महाराज। हम लोगोंने उस जानवरका पता लगा लिया, वह आपसे मिलना चाहता है। तत्पश्चात् पिंगलककी आज्ञासे वे उसे ले आये। इस तरह पिंगलक और संजीवक परस्पर मैत्री करके सुखपूर्वक रहने लगे। पिंगलकने संजीवकको पशुओंका भोजन बाँटनेके कार्यमें नियुक्त कर दिया। उसके बाद वे दोनों प्रगाढ़ मैत्रीमें आकर करटक और भी भोजन देनेमें उपेक्षा दिखाने लगे। इससे करटक और दमनकने सोचा- अब पिंगलक और संजीवककी मैत्रीके भेदका कार्य करना होगा। तब दमनक सिंहके पास जाकर हाथ जोड़कर बोला- देव! किसी प्रकारके भयको देखकर मैं हूँ। संजीवक आपसे द्रोह करता है, इसलिये इससे सम्बन्ध तोड़ लेना चाहिये, यदि आप बतानेपर भी हमारा विश्वास न करें तो हमारा कोई दोष नहीं है। सिंह बोला-'यदि ऐसा है, तब मैं शीघ्र ही उसे मार डालूँगा।' उसके बाद वे दोनों संजीवकके पास जाकर बोले- स्वामी आपसे ईर्ष्या करते हैं और आपको मारनेके लिये तैयार बैठे हैं। अतः जाकर स्वयं देख लें। तब संजीवकने उनके वचनोंका विश्वासकर सिंहके समीप न जाकर जोरसे हुंकार भरी। सिंहने उस आवाजको सुनकर क्रोधित हो उसे मार डाला और खा लिया। इसलिये नीतिशास्त्रमें कहा गया है कि संसारमें मालिककी कृपाको दूसरे सेवकगण सहन नहीं कर सकते- 'प्रभोः प्रसादमन्यस्य न सहन्तीह सेवकाः' (मित्रभेद 309) ।.
संजीवक बैलको राजा सिंहने अपना प्रिय सेवक तथा मित्र बना लिया था, किंतु सिंहके दूसरे सेवक करटक तथा दमनकको यह सहन नहीं हो सका। अतः उन्होंने उन दोनों मित्रोंमें भेद उत्पन्न करा दिया और इसी भेदनीतिके परिणामस्वरूप संजीवकको अपने प्राण गवाने पड़े। [पंचतत्र ]



You may also like these:

बोध कथा रँगी लोमड़ी
हिन्दी कहानी बलिप्रथा अधर्म है
आध्यात्मिक कथा दसवें तुम्हीं हो!
हिन्दी कहानी सर्वोत्तम धन
छोटी सी कहानी सदाचारसे कल्याण
आध्यात्मिक कथा सच्ची दृष्टि
हिन्दी कहानी बासी अन्न


maalikakee kripaako doosare sevakagan sahan naheen kar paate

maalikakee kripaako doosare sevakagan sahan naheen kar paate

dakshinamen mahilaaropy naamakee nagaree thee. vahaan vardhamaan naamaka dhanik rahata thaa. poornaroopase dhanee honeke pashchaat bhee usane vichaar kiya ki doosare deshamen jaakar dhan ekatr kiya jaaya. isake baad vah nandak aur sanjeevak naamak do bailonko gaada़eemen jotakar mathuraakee aur chal diyaa. maargamen sanjeevakaka ghutana toot gaya aur vah gir pahaa. isaliye vah vyaapaaree sanjeevakako vaheen chhoda़kar doosare bailako lekar aage chal pada़aa. eeshvarakee kripaase thoda़e hee samayamen sanjeevak bhee chalanemen samarth ho gaya aur dheere dheere haree-haree ghaas charata hua svasth aur balashaalee bhee ho gayaa. iseeliye neeti hamen bataatee hai arakshitan tishthati daivarakshitan surakshitan daivahatan vinashyati .
jeevatyanaatho'pi vane visarjitah kritaprayatno'pi grihe vinashyati ..
arakshit vastu bhee daivase rakshit hokar bachee rahatee hai aur achchhee tarahase rakshit vastu bhee daivase arakshit hokar nasht ho jaatee hai. vanamen parityakt hua anaath bhee jee jaata hai, kintu gharamen vishesh prayatn karake rakshit kiya hua bhee nasht ho jaata hai.
ek baar nadeeke kinaare charate hue sanjeevakane apanee ichchhaase jorase aavaaj kee. us aavaajako sunakar vanake raaja pingalak naamak sinhane aashcharyachakit hote hue apane mantreeke putron karatak aur damanak naamak siyaaronse kaha is vanamen koee vishisht pashu aaya hua hai. use jaakar dekho ki vah kaun hai? tab raajaake aadeshase vahaan jaakar karatak vrikshake neeche akada़kar baith gaya aur damanak sanjeevakake paas jaakar bolaa- are baila. yahaan ham raaja pingalakake dvaara vanakee rakshaake liye niyukt kiye gaye hain. senaapati karatakakee aajnaase tum hamaare svaamokee sharan men chalo, anyatha yahaanse door chale jaao. tab sanjeevak karatakase darate hue bolaa- main tumhaare svaameeke paas chaloongaa. karatakane kahaa—tum bina kisee shankaake chalo.
usake baad karatak tatha damanak donon sanjeevakako door thaharaakar pingalakake sameep gaye aur ve bole-mahaaraaja. ham logonne us jaanavaraka pata laga liya, vah aapase milana chaahata hai. tatpashchaat pingalakakee aajnaase ve use le aaye. is tarah pingalak aur sanjeevak paraspar maitree karake sukhapoorvak rahane lage. pingalakane sanjeevakako pashuonka bhojan baantaneke kaaryamen niyukt kar diyaa. usake baad ve donon pragaadha़ maitreemen aakar karatak aur bhee bhojan denemen upeksha dikhaane lage. isase karatak aur damanakane sochaa- ab pingalak aur sanjeevakakee maitreeke bhedaka kaary karana hogaa. tab damanak sinhake paas jaakar haath joda़kar bolaa- deva! kisee prakaarake bhayako dekhakar main hoon. sanjeevak aapase droh karata hai, isaliye isase sambandh toda़ lena chaahiye, yadi aap bataanepar bhee hamaara vishvaas n karen to hamaara koee dosh naheen hai. sinh bolaa-'yadi aisa hai, tab main sheeghr hee use maar daaloongaa.' usake baad ve donon sanjeevakake paas jaakar bole- svaamee aapase eershya karate hain aur aapako maaraneke liye taiyaar baithe hain. atah jaakar svayan dekh len. tab sanjeevakane unake vachanonka vishvaasakar sinhake sameep n jaakar jorase hunkaar bharee. sinhane us aavaajako sunakar krodhit ho use maar daala aur kha liyaa. isaliye neetishaastramen kaha gaya hai ki sansaaramen maalikakee kripaako doosare sevakagan sahan naheen kar sakate- 'prabhoh prasaadamanyasy n sahanteeh sevakaah' (mitrabhed 309) ..
sanjeevak bailako raaja sinhane apana priy sevak tatha mitr bana liya tha, kintu sinhake doosare sevak karatak tatha damanakako yah sahan naheen ho sakaa. atah unhonne un donon mitronmen bhed utpann kara diya aur isee bhedaneetike parinaamasvaroop sanjeevakako apane praan gavaane pada़e. [panchatatr ]

134 Views





Bhajan Lyrics View All

बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
तमन्ना यही है के उड के बरसाने आयुं मैं
आके बरसाने में तेरे दिल की हसरतो को
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
जब शमा बुझ गयी तो महफ़िल में रंग आया
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी
यही मेरी ज़िंदगी है, यही मेरी बंदगी है
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
मीठे रस से भरी रे, राधा रानी लागे,
मने कारो कारो जमुनाजी रो पानी लागे
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही

New Bhajan Lyrics View All

मनमोहना मधुसूदना,
श्री बांके बिहारी लला,
मंगल कारी नाम है उनका,
शम्भू भोला भला रे,
शिव गौरां के मिलन का उत्सव, मिलकर सब
सावन के महीने में, भोले के दर्शन पा लो...
जबसे लागी लगन,
हर घडी रहता है मन मगन,
मिठो मिठो मत बोले कान्हा तेरी राधा नार
पतली पतली पोई रे फुलकिया,