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विवशतामें किये गये एकादशी व्रतका माहात्म्य  [Short Story]
आध्यात्मिक कथा - हिन्दी कथा (छोटी सी कहानी)

विवशतामें किये गये एकादशी व्रतका माहात्म्य

पूर्वकालकी बात है, नर्मदाके तटपर गालव नामसे प्रसिद्ध एक सत्यपरायण मुनि रहते थे। वे शम (मनोनिग्रह) और दम (इन्द्रियसंयम) से सम्पन्न तथा तपस्याकी निधि थे। सिद्ध, चारण, गन्धर्व, यक्ष और विद्याधर आदि देवयोनिके लोग भी वहाँ विहार करते थे। वह स्थान कन्द, मूल, फलोंसे परिपूर्ण था। वहाँ मुनियोंका बहुत बड़ा समुदाय निवास करता था । विप्रवर गालव वहाँ चिरकालसे निवास करते थे। उनके एक पुत्र हुआ, जो भद्रशील नामसे विख्यात हुआ। वह बालक अपने मन और इन्द्रियोंको वशमें रखता था। उसे अपने पूर्वजन्मकी बातोंका स्मरण था। वह महान् भाग्यशाली ऋषिकुमार निरन्तर भगवान् नारायणके भजन - चिन्तनमें ही लगा रहता था। महामति भद्रशील बालोचित क्रीड़ाके समय भी मिट्टी से भगवान् विष्णुकी प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करता और अपने साथियोंको समझाता कि 'मनुष्योंको सदा भगवान् विष्णुकी आराधना करनी चाहिये और विद्वानोंको एकादशी व्रतका भी पालन करना चाहिये।' भद्रशीलद्वारा इस प्रकार समझाये जानेपर उसके साथी शिशु भी मिट्टीसे भगवान्‌की प्रतिमा बनाकर एकत्र या अलग-अलग बैठ जाते और प्रसन्नतापूर्वक उसकी पूजा करते थे। इस तरह वे परम सौभाग्यशाली बालक भगवान् विष्णुके भजनमें तत्पर हो गये। भद्रशील भगवान् विष्णुको नमस्कार करके यही प्रार्थना करता था कि 'सम्पूर्ण जगत्‌का कल्याण हो।' खेलके समय वह दो घड़ी या एक घड़ी भी ध्यानस्थ हो एकादशी व्रतका संकल्प करके भगवान् विष्णुको समर्पित करता था। अपने पुत्रको इस प्रकार उत्तम चरित्रसे युक्त देखकर तपोनिधि गालवमुनि बड़े विस्मित हुए और उसे हृदयसे लगाकर पूछने लगे- 'उत्तम व्रतका पालन करनेवाले महाभाग भद्रशील! तुम अपने कल्याणमय शीलस्वभावके कारण सचमुच भद्रशील हो। तुम्हारा जो मंगलमय चरित्र है, वह योगियोंके लिये भी दुर्लभ है। तुम सदा भगवान् की पूजामें तत्पर, सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें संलग्न तथा एकादशीव्रत पालनमें लगे रहनेवाले हो । शास्त्रनिषिद्ध कर्मोंसे तुम सदा दूर रहते हो। तुमपर सुख-दुःख आदि द्वन्द्वोंका प्रभाव नहीं पड़ता। तुममें ममता नहीं दिखायी देती और तुम शान्तभावसे भगवान्‌के ध्यानमें मग्न रहते हो। बेटा! अभी तुम बहुत छोटे हो तो भी तुम्हारी बुद्धि ऐसी किस प्रकार हुई; क्योंकि महापुरुषोंकी सेवाके बिना भगवान्‌की भक्ति प्रायः दुर्लभ होती है। तुम्हारी अद्भुत स्थिति देखकर मैं बड़े विस्मयमें पड़ा हूँ और प्रसन्नतापूर्वक इसका कारण पूछता हूँ । अतः तुम्हें यह बताना चाहिये ।
भद्रशीलने कहा- 'पिताजी! सुनिये पूर्वजन्ममें मैंने जो कुछ अनुभव किया है, वह जातिस्मर होनेके कारण अब भी जानता है। मैं पूर्वजन्ममें चन्द्रवंशी राजा था। मेरा नाम धर्मकीर्ति था और महर्षि दत्तात्रेयने मुझे शिक्षा दी थी। मैंने नौ हजार वर्षोंतक सम्पूर्ण पृथ्वीका पालन किया। पहले मैंने पुण्यकर्म भी बहुत से किये थे, परंतु पीछे पाखण्डियोंसे बाधित होकर मैंने वैदिकमार्गको त्याग दिया। पाखण्डियोंकी कूट युक्तिका अवलम्बन करके मैंने भी सब यज्ञोंका विध्वंस किया। मुझे अधर्ममें तत्पर देख मेरे देशकी प्रजा भी सदैव पाप कर्म करने लगी। उसमें छठा अंश और मुझे मिलने लगा। इस प्रकार में सदा पापाचारपरायण हो दुर्व्यसनोंमें आसक्त रहने लगा। एक दिन शिकार खेलनेकी रुचिसे मैं सेनासहित एक वनमें गया और वहाँ भूख-प्यास से पीड़ित हो थका-माँदा नर्मदाके तटपर आया। सूर्यकी तीखी धूपसे संतप्त होनेके कारण मैंने नर्मदाजीके जलमें स्नान किया। सेना किधर गयी, यह मैंने नहीं देखा। अकेला ही वहाँ भूखसे बहुत कष्ट पा रहा था। संध्याके समय नर्मदा तटके निवासी, जो एकादशीव्रत करनेवाले थे, वहाँ एकत्र हुए। उन सबको मैंने देखा उन्हीं लोगोंके साथ निराहार रहकर बिना सेनाके ही मैं अकेला रातमें वहाँ जागरण करता रहा। और हे तात! जागरण समाप्त होनेपर मेरी वहीं मृत्यु हो गयी। तब बड़ी-बड़ी दाढ़ोंसे भय उत्पन्न करनेवाले यमराजके दूतोंने मुझे बाँध लिया और अनेक प्रकारके क्लेशसे भरे हुए मार्गद्वारा यमराजके निकट पहुँचाया। वहाँ जाकर मैंने यमराजको देखा, जो सबके | प्रति समान बर्ताव करनेवाले हैं। यमराजने चित्रगुप्तको बुलाकर कहा-'विदन्। इसको दण्ड विधान कैसे करना है बताओ।' धर्मराजके ऐसा कहनेपर चित्रगुप्तने दस्तक विचार किया; फिर इस प्रकार कहा धर्मराज! यद्यपि यह सदा पापमें लगा रहा है, यह ठीक है, तथापि एक बात सुनिये। एकादशीको उपवास करनेवाला मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। नर्मदाके रमणीय तटपर एकादशीके दिन यह निराहार रहा है। वहाँ जागरण और उपवास करके यह सर्वथा निष्याप हो गया है। इसने जो कोई भी बहुत-से पाप किये थे, वे सब उपवासके प्रभावसे नष्ट हो चुके हैं।' बुद्धिमान् चित्रगुप्तके ऐसा कहनेपर धर्मराजने भक्तिभावसे मेरी पूजा की। तदनन्तर अपने सब दूतको बुलाकर इस प्रकार कहा।
धर्मराज बोले-'दूतो! मेरी बात सुनो। मैं तुम्हारे हितकी बड़ी उत्तम बात बतलाता है। धर्ममार्ग में लगे हुए मनुष्योंको मेरे पास न लाया करो जो भगवान् विष्णुके पूजनमें तत्पर, संयमी, कृतज्ञ, एकादशी व्रतपरायण तथा जितेन्द्रिय हैं और जो 'हे नारायण! हे अच्युत! हे हरे! मुझे शरण दीजिये इस प्रकार शान्तभावसे निरन्तर कहते रहते हैं, ऐसे लोगोंको तुम तुरंत छोड़ देना।
इस प्रकार जब मैंने यमराजकी कही हुई बातें सुन तो पश्चात्तापसे दग्ध होकर अपने किये उन निन्दित कमोंका स्मरण किया। पापकर्मके लिये पश्चात्ताप और श्रेष्ठ धर्मका श्रवण करनेसे मेरे सब पाप वहीं नष्ट हो गये। उसके बाद में उस पुण्यकर्मके प्रभावसे इन्द्रलोकमें गया। वहाँपर मैं सब प्रकारके भोगोंसे सम्पन्न रहा। सम्पूर्ण देवता मुझे नमस्कार करते थे। बहुत कालतक स्वर्गमें रहकर फिर वहाँसे मैं भूलोकमें आया। यहाँ भी आप जैसे विष्णु-भक्तोंके कुलमें मेरा जन्म हुआ। जातिस्मर होनेके कारण मैं यह सब बातें जानता हूँ। इसलिये मैं बालकोंके साथ भगवान् विष्णुके पूजनकी चेष्टा करता हूँ। पूर्वजन्ममें एकादशी व्रतका ऐसा माहात्म्य है, यह बात मैं नहीं जान सका था। इस समय पूर्वजन्मकी बातोंकी स्मृतिके प्रभावसे मैंने एकादशी व्रतको जान लिया है। पहले विवश होकर भी जो व्रत किया गया था, उसका यह फल मिला है। प्रभो! फिर जो भक्तिपूर्वक एकादशी व्रत करते हैं, उनको क्या नहीं मिल सकता!



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vivashataamen kiye gaye ekaadashee vrataka maahaatmya

vivashataamen kiye gaye ekaadashee vrataka maahaatmya

poorvakaalakee baat hai, narmadaake tatapar gaalav naamase prasiddh ek satyaparaayan muni rahate the. ve sham (manonigraha) aur dam (indriyasanyama) se sampann tatha tapasyaakee nidhi the. siddh, chaaran, gandharv, yaksh aur vidyaadhar aadi devayonike log bhee vahaan vihaar karate the. vah sthaan kand, mool, phalonse paripoorn thaa. vahaan muniyonka bahut bada़a samudaay nivaas karata tha . vipravar gaalav vahaan chirakaalase nivaas karate the. unake ek putr hua, jo bhadrasheel naamase vikhyaat huaa. vah baalak apane man aur indriyonko vashamen rakhata thaa. use apane poorvajanmakee baatonka smaran thaa. vah mahaan bhaagyashaalee rishikumaar nirantar bhagavaan naaraayanake bhajan - chintanamen hee laga rahata thaa. mahaamati bhadrasheel baalochit kreeda़aake samay bhee mittee se bhagavaan vishnukee pratima banaakar usakee pooja karata aur apane saathiyonko samajhaata ki 'manushyonko sada bhagavaan vishnukee aaraadhana karanee chaahiye aur vidvaanonko ekaadashee vrataka bhee paalan karana chaahiye.' bhadrasheeladvaara is prakaar samajhaaye jaanepar usake saathee shishu bhee mitteese bhagavaan‌kee pratima banaakar ekatr ya alaga-alag baith jaate aur prasannataapoorvak usakee pooja karate the. is tarah ve param saubhaagyashaalee baalak bhagavaan vishnuke bhajanamen tatpar ho gaye. bhadrasheel bhagavaan vishnuko namaskaar karake yahee praarthana karata tha ki 'sampoorn jagat‌ka kalyaan ho.' khelake samay vah do ghada़ee ya ek ghada़ee bhee dhyaanasth ho ekaadashee vrataka sankalp karake bhagavaan vishnuko samarpit karata thaa. apane putrako is prakaar uttam charitrase yukt dekhakar taponidhi gaalavamuni bada़e vismit hue aur use hridayase lagaakar poochhane lage- 'uttam vrataka paalan karanevaale mahaabhaag bhadrasheela! tum apane kalyaanamay sheelasvabhaavake kaaran sachamuch bhadrasheel ho. tumhaara jo mangalamay charitr hai, vah yogiyonke liye bhee durlabh hai. tum sada bhagavaan kee poojaamen tatpar, sampoorn praaniyonke hitamen sanlagn tatha ekaadasheevrat paalanamen lage rahanevaale ho . shaastranishiddh karmonse tum sada door rahate ho. tumapar sukha-duhkh aadi dvandvonka prabhaav naheen pada़taa. tumamen mamata naheen dikhaayee detee aur tum shaantabhaavase bhagavaan‌ke dhyaanamen magn rahate ho. betaa! abhee tum bahut chhote ho to bhee tumhaaree buddhi aisee kis prakaar huee; kyonki mahaapurushonkee sevaake bina bhagavaan‌kee bhakti praayah durlabh hotee hai. tumhaaree adbhut sthiti dekhakar main bada़e vismayamen pada़a hoon aur prasannataapoorvak isaka kaaran poochhata hoon . atah tumhen yah bataana chaahiye .
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