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मनोविज्ञानका नियम  [Spiritual Story]
आध्यात्मिक कहानी - Short Story (प्रेरक कहानी)

मनोविज्ञानका नियम

प्रख्यात मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रॉयड छुट्टीके दिन अपने परिवारके साथ एक पार्कमें घूमने गये। काफी देर टहलते रहे। लौटते समय देखा तो उनका बच्चा गायब था। पति-पत्नी बातोंमें इतने मशगूल थे कि बच्चेका ध्यान ही नहीं रहा। बच्चेको न पाकर उनकी पत्नी काफी घबरा गयी, मगर फ्रॉयडको जैसे कुछ हुआ ही न हो। वे एकदम निश्चिन्त चले जा रहे थे। फ्रॉयडको इस तरह निश्चिन्त देखकर उनकी पत्नी गुस्सेमें बोली- 'आप इस तरह खामोश क्यों हैं? देखिये न, वह कहाँ गया? क्या आपको उसकी चिन्ता नहीं है ?'
फ्रॉयडने उसे ढाँढ़स बँधाते हुए कहा, 'इतना घबराओ मत, वह मिल जायगा।' पत्नीने खीजकर कहा- 'बिना खोजे कैसे मिल जायगा ?' फ्रॉयडने पूछा- 'क्या तुमने उसे कहीं जानेसे मना किया था ?' पत्नीको थोड़ी देर सोचनेके बाद याद आया कि उन्होंने बच्चेको फव्वारेके पास जानेसे मना किया था। फ्रॉयड बोले- 'वह निश्चितरूपसे फव्वारेके पास ही होगा।' पत्नीने कहा—'तुम्हें यकीन है ?' फ्रॉयडने कहा-'95 फीसदी।' बच्चा वाकई फव्वारेके पास बैठा पानीकी उठती धारको मुग्ध होकर देख रहा था। पत्नीके भीतर जिज्ञासा जागी कि आखिर फ्रॉयडने यह कैसे पता लगाया कि बच्चा फव्वारेके पास ही होगा ? फ्रॉयडने इसे स्पष्ट करते हुए बताया-'बच्चा वहीं जायगा, जहाँ उसे जानेके लिये मना किया जायगा। इसी तरह उसे जिस कामको करनेसे रोका जायगा, वह उसे जानबूझकर करेगा।'
फ्रॉयडने इस रहस्योद्घाटनके बाद बताया कि मनोविज्ञानका यह सीधा-सा नियम बच्चोंपर ही नहीं, समान रूपसे बड़ोंके मनपर भी लागू होता है।



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manovijnaanaka niyama

manovijnaanaka niyama

prakhyaat manovaijnaanik sigamand phraॉyad chhutteeke din apane parivaarake saath ek paarkamen ghoomane gaye. kaaphee der tahalate rahe. lautate samay dekha to unaka bachcha gaayab thaa. pati-patnee baatonmen itane mashagool the ki bachcheka dhyaan hee naheen rahaa. bachcheko n paakar unakee patnee kaaphee ghabara gayee, magar phraॉyadako jaise kuchh hua hee n ho. ve ekadam nishchint chale ja rahe the. phraॉyadako is tarah nishchint dekhakar unakee patnee gussemen bolee- 'aap is tarah khaamosh kyon hain? dekhiye n, vah kahaan gayaa? kya aapako usakee chinta naheen hai ?'
phraॉyadane use dhaandha़s bandhaate hue kaha, 'itana ghabaraao mat, vah mil jaayagaa.' patneene kheejakar kahaa- 'bina khoje kaise mil jaayaga ?' phraॉyadane poochhaa- 'kya tumane use kaheen jaanese mana kiya tha ?' patneeko thoda़ee der sochaneke baad yaad aaya ki unhonne bachcheko phavvaareke paas jaanese mana kiya thaa. phraॉyad bole- 'vah nishchitaroopase phavvaareke paas hee hogaa.' patneene kahaa—'tumhen yakeen hai ?' phraॉyadane kahaa-'95 pheesadee.' bachcha vaakaee phavvaareke paas baitha paaneekee uthatee dhaarako mugdh hokar dekh raha thaa. patneeke bheetar jijnaasa jaagee ki aakhir phraॉyadane yah kaise pata lagaaya ki bachcha phavvaareke paas hee hoga ? phraॉyadane ise spasht karate hue bataayaa-'bachcha vaheen jaayaga, jahaan use jaaneke liye mana kiya jaayagaa. isee tarah use jis kaamako karanese roka jaayaga, vah use jaanaboojhakar karegaa.'
phraॉyadane is rahasyodghaatanake baad bataaya ki manovijnaanaka yah seedhaa-sa niyam bachchonpar hee naheen, samaan roopase bada़onke manapar bhee laagoo hota hai.

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