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चिन्ताका कारण  [प्रेरक कहानी]
Short Story - आध्यात्मिक कहानी (आध्यात्मिक कहानी)

सन् 1927 में 'स्टूडेंट्स वर्ल्ड फेडरेशन' का अधिवेशन मैसूरमें हुआ। अमेरिकाके रेवरेंड मॉट् उसके अध्यक्ष थे। वे जब भारत आये तब गांधीजीसे मिलनेके लिये उन्होंने समय चाहा। उन दिनों गांधीजीको अवकाश बहुत कम मिलता था। इसलिये उन्होंने उन्हें रातमें सोनेके पहले दस मिनटका समय दिया। कई लोग इस कुतूहलसे कि 'देखें दस मिनटमें ये लोग क्या बातें करते हैं' वहाँ जा उपस्थित हुए।

गांधीजी आँगनमें सोये हुए थे। रेवरेंड मॉट्ने अपने प्रश्न लिख रखे थे और उन्हें लेकर वे एक बेंचपर बैठ गये। उन्होंने पूछा कि 'आपको ऐसी क्या वस्तु दिखी जिससे अधिक आश्वासन मिलता है ?'

गांधीजीने कहा- 'कितनी ही छेड़छाड़ करनेपर भी यहाँके लोगोंके मनसे अहिंसा वृत्ति नहीं जाती। इससे मुझे बहुत आश्वासन मिलता है।''और कौन-सी ऐसी चीज है, जिससे दिन-रात आप चिन्तित तथा अस्वस्थ रहते हैं ?' मॉट्ने पूछा। 'शिक्षित लोगोंके अंदरसे दयाभाव सूखता जा रहा

है। इससे मैं सर्वदा चिन्तित रहता हूँ । ' गांधीजीके उत्तरसे मॉट् तथा दर्शक चकरा गये। कालेलकरजीके मनपर इसका इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने तत्काल 'ग्राम-सेवा-अभ्यासक्रम' आरम्भ किया। एक बार एक ऐंग्लो-इंडियनने, जो किसी जेलका

साधारण नौकर था, गांधीजीसे autograph (स्वाक्षरी अपने हाथका लिखा कोई वाक्य तथा हस्ताक्षर ) माँगा। उन्होंने लिखा- 'It does not cost to be kind— (दयालु बननेमें कुछ भी खर्च नहीं पड़ता)।' कहते हैं कि इस वाक्यसे उस व्यक्तिका स्वभाव ही बदल गया।

- जा0 श0



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chintaaka kaarana

san 1927 men 'stoodents varld phedareshana' ka adhiveshan maisooramen huaa. amerikaake revarend maॉt usake adhyaksh the. ve jab bhaarat aaye tab gaandheejeese milaneke liye unhonne samay chaahaa. un dinon gaandheejeeko avakaash bahut kam milata thaa. isaliye unhonne unhen raatamen soneke pahale das minataka samay diyaa. kaee log is kutoohalase ki 'dekhen das minatamen ye log kya baaten karate hain' vahaan ja upasthit hue.

gaandheejee aanganamen soye hue the. revarend maॉtne apane prashn likh rakhe the aur unhen lekar ve ek benchapar baith gaye. unhonne poochha ki 'aapako aisee kya vastu dikhee jisase adhik aashvaasan milata hai ?'

gaandheejeene kahaa- 'kitanee hee chheda़chhaada़ karanepar bhee yahaanke logonke manase ahinsa vritti naheen jaatee. isase mujhe bahut aashvaasan milata hai.''aur kauna-see aisee cheej hai, jisase dina-raat aap chintit tatha asvasth rahate hain ?' maॉtne poochhaa. 'shikshit logonke andarase dayaabhaav sookhata ja rahaa

hai. isase main sarvada chintit rahata hoon . ' gaandheejeeke uttarase maॉt tatha darshak chakara gaye. kaalelakarajeeke manapar isaka itana prabhaav pada़a ki unhonne tatkaal 'graama-sevaa-abhyaasakrama' aarambh kiyaa. ek baar ek ainglo-indiyanane, jo kisee jelakaa

saadhaaran naukar tha, gaandheejeese autograph (svaaksharee apane haathaka likha koee vaaky tatha hastaakshar ) maangaa. unhonne likhaa- 'It does not cost to be kind— (dayaalu bananemen kuchh bhee kharch naheen pada़taa).' kahate hain ki is vaakyase us vyaktika svabhaav hee badal gayaa.

- jaa0 sha0

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