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कौड़ियोंसे भी कम कीमत  [Moral Story]
प्रेरक कथा - Spiritual Story (शिक्षदायक कहानी)

एक जिज्ञासुने किसी संतसे पूछा- 'महाराज ! राम नाममें कैसे प्रेम हो तथा कैसे भजन बने ?'

संत बोले- भाई! रामनामका मूल्य, उसका महत्त्व समझनेसे प्रेम होता है और तभी भजन होता है।'

'महाराज! मूल्य और महत्व तो कुछ-कुछ समझमें आता है परंतु भजन नहीं होता।' "क्या भूल समझमें आता है समझमें आया होता तो क्या यह प्रश्न शेष रह जाता। फिर तो भजन ही

होता। अभीतक तो तुम राम नामको कौड़ियोंसे भी

कम कीमती समझते हो!"

महाराज! यह कैसे ? कौड़ियोंके साथ राम- नामको तुलना कैसी ?"

'अच्छा तो बतलाओ तुम्हारी वार्षिक आय अधिक अधिक क्या है?" 'अनुमान पैंतालीस-पचास हजार रुपये।'

'अच्छा तो अब विचार करो। व्यापारी हो, हिसाब लगाओ। वार्षिक पैंतालीस-पचास हजारके मानी हुए मासिक लगभग चार हजार रुपये और दैनिक लगभग एक सौ चालीस रुपये दिन रातके चौबीस घंटेकीतुम्हारी आमदनी एक सौ चालीस रुपये हैं, इस हिसाब से एक घंटेमें लगभग पौने छः रुपये और एक मिनटमें डेढ़ आना आमदनी होती है। अब जरा सोचो, उसी एक मिनटमें तुम कम-से-कम डेढ़ सौ राम नामका बड़े आरामसे उच्चारण कर सकते हो। अर्थात् - जितनी देरमें छ: पैसे पैदा होते हैं, उतनी देरमें डेढ़ सौ राम-नाम आते हैं। अभिप्राय यह कि एक पैसेमें पचीस राम-नाम हुए। इतनेपर भी पैसेके लिये तो खूब चेष्टा करते हो और राम-नामके लिये नहीं। अब बताओ तुमने राम-नामका महत्त्व और मूल्य कौड़ियोंके बराबर भी कहाँ समझा ? यह हिसाब तो पैंतालीस पचास हजारकी वार्षिक आयवालेका है। साधारण आयवाले लोग हिसाब लगाकर देखें और समझें कि राम-नामकी वे कितनी कम कीमत आँकते हैं।' 'महाराज ! बात तो ऐसी ही है।'

'इसीसे कहता हूँ-सोचो, विचारो, हिसाबकी भूलको सुधारो और समयका सदुपयोग करो। सदुपयोग यही है कि समयको निरन्तर नाम-जपमें लगाओ।'



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kauda़iyonse bhee kam keemata

ek jijnaasune kisee santase poochhaa- 'mahaaraaj ! raam naamamen kaise prem ho tatha kaise bhajan bane ?'

sant bole- bhaaee! raamanaamaka mooly, usaka mahattv samajhanese prem hota hai aur tabhee bhajan hota hai.'

'mahaaraaja! mooly aur mahatv to kuchha-kuchh samajhamen aata hai parantu bhajan naheen hotaa.' "kya bhool samajhamen aata hai samajhamen aaya hota to kya yah prashn shesh rah jaataa. phir to bhajan hee

hotaa. abheetak to tum raam naamako kauda़iyonse bhee

kam keematee samajhate ho!"

mahaaraaja! yah kaise ? kauda़iyonke saath raama- naamako tulana kaisee ?"

'achchha to batalaao tumhaaree vaarshik aay adhik adhik kya hai?" 'anumaan paintaaleesa-pachaas hajaar rupaye.'

'achchha to ab vichaar karo. vyaapaaree ho, hisaab lagaao. vaarshik paintaaleesa-pachaas hajaarake maanee hue maasik lagabhag chaar hajaar rupaye aur dainik lagabhag ek sau chaalees rupaye din raatake chaubees ghantekeetumhaaree aamadanee ek sau chaalees rupaye hain, is hisaab se ek ghantemen lagabhag paune chhah rupaye aur ek minatamen dedha़ aana aamadanee hotee hai. ab jara socho, usee ek minatamen tum kama-se-kam dedha़ sau raam naamaka bada़e aaraamase uchchaaran kar sakate ho. arthaat - jitanee deramen chha: paise paida hote hain, utanee deramen dedha़ sau raama-naam aate hain. abhipraay yah ki ek paisemen pachees raama-naam hue. itanepar bhee paiseke liye to khoob cheshta karate ho aur raama-naamake liye naheen. ab bataao tumane raama-naamaka mahattv aur mooly kauda़iyonke baraabar bhee kahaan samajha ? yah hisaab to paintaalees pachaas hajaarakee vaarshik aayavaaleka hai. saadhaaran aayavaale log hisaab lagaakar dekhen aur samajhen ki raama-naamakee ve kitanee kam keemat aankate hain.' 'mahaaraaj ! baat to aisee hee hai.'

'iseese kahata hoon-socho, vichaaro, hisaabakee bhoolako sudhaaro aur samayaka sadupayog karo. sadupayog yahee hai ki samayako nirantar naama-japamen lagaao.'

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