एक संत कपड़े सीकर अपना निर्वाह करते थे। एक ऐसा व्यक्ति उस नगरमें था जो बहुत कपड़े सिलवाता था और उनसे ही सिलवाता था; किंतु सदा सिलाईके रूपमें खोटे सिक्के ही देता था। संत चुपचाप उसके सिक्के ले लेते थे। एक बार वे संत कहीं बाहर गये थे। उनकी दूकानपर उनका सेवक था । वह व्यक्ति सिलाई देने आया। सेवकने सिक्का देखा और लौटादिया- 'यह खोटा है महोदय ! दूसरा दीजिये।' संत लौटे तो सेवकने कहा-'अमुक व्यक्ति खोटे सिक्के देकर मुझे ठगने आया था।'
संत बोले- 'तुमने सिक्का ले क्यों नहीं लिया। वह तो सदा मुझे खोटे सिक्के ही देता है और उन्हें लेकर मैं भूमिमें गाड़ देता हूँ। मैं नहीं लूँ तो कोई दूसरा व्यक्ति ठगा जायगा ।' - सु0 सिं0
ek sant kapada़e seekar apana nirvaah karate the. ek aisa vyakti us nagaramen tha jo bahut kapada़e silavaata tha aur unase hee silavaata thaa; kintu sada silaaeeke roopamen khote sikke hee deta thaa. sant chupachaap usake sikke le lete the. ek baar ve sant kaheen baahar gaye the. unakee dookaanapar unaka sevak tha . vah vyakti silaaee dene aayaa. sevakane sikka dekha aur lautaadiyaa- 'yah khota hai mahoday ! doosara deejiye.' sant laute to sevakane kahaa-'amuk vyakti khote sikke dekar mujhe thagane aaya thaa.'
sant bole- 'tumane sikka le kyon naheen liyaa. vah to sada mujhe khote sikke hee deta hai aur unhen lekar main bhoomimen gaada़ deta hoon. main naheen loon to koee doosara vyakti thaga jaayaga .' - su0 sin0