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ईश्वरके विधानपर विश्वास  [प्रेरक कहानी]
छोटी सी कहानी - हिन्दी कथा (Moral Story)

एक अंग्रेज अफसर अपनी नवविवाहिता पत्नीके साथ जहाजमें सवार होकर समुद्र यात्रा कर रहा था। रास्तेमें जोरसे तूफान आया। मुसाफिर घबरा उठे, पर वह अंग्रेज जरा भी नहीं घबराया। उसकी नयी पत्नी भी व्याकुल हो गयी थी। उसने पूछा- आप निश्चिन्त कैसे बैठे हैं?' पत्नीकी बात सुनकर पतिने म्यानसे तलवार खींचकर धीरेसे पत्नीके सिरपर रख दी और हँसकर पूछा कि 'तुम डरती हो या नहीं ?' पत्नीने कहा – 'मेरी बातका जवाब न देकर यह क्या खेलकर रहे हैं? आपके हाथमें तलवार हो और मैं डरूँ, यह कैसी बात? आप क्या मेरे वैरी हैं, आप तो मुझको प्राणोंसे भी अधिक चाहते हैं।' इसपर अफसरने कहा 'साध्वी! जैसे मेरे हाथमें तलवार है वैसे ही भगवान्‌के हाथमें यह तूफान है। जैसे तुम मुझे अपना सुहृद् समझकर नहीं डरती, वैसे ही मैं भी भगवान्‌को अपना परम सुहृद् समझकर नहीं डरता। भगवान्का अपने जीवोंपर अगाध प्रेम है, वे वही करेंगे जो वास्तवमें हमारे लिये कल्याणकारी होगा। फिर डर किस बातका ?'



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eeshvarake vidhaanapar vishvaasa

ek angrej aphasar apanee navavivaahita patneeke saath jahaajamen savaar hokar samudr yaatra kar raha thaa. raastemen jorase toophaan aayaa. musaaphir ghabara uthe, par vah angrej jara bhee naheen ghabaraayaa. usakee nayee patnee bhee vyaakul ho gayee thee. usane poochhaa- aap nishchint kaise baithe hain?' patneekee baat sunakar patine myaanase talavaar kheenchakar dheerese patneeke sirapar rakh dee aur hansakar poochha ki 'tum daratee ho ya naheen ?' patneene kaha – 'meree baataka javaab n dekar yah kya khelakar rahe hain? aapake haathamen talavaar ho aur main daroon, yah kaisee baata? aap kya mere vairee hain, aap to mujhako praanonse bhee adhik chaahate hain.' isapar aphasarane kaha 'saadhvee! jaise mere haathamen talavaar hai vaise hee bhagavaan‌ke haathamen yah toophaan hai. jaise tum mujhe apana suhrid samajhakar naheen daratee, vaise hee main bhee bhagavaan‌ko apana param suhrid samajhakar naheen darataa. bhagavaanka apane jeevonpar agaadh prem hai, ve vahee karenge jo vaastavamen hamaare liye kalyaanakaaree hogaa. phir dar kis baataka ?'

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मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
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श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
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ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
मेरी बाँह पकड़ लो इक बार,सांवरिया
मैं तो जाऊँ तुझ पर कुर्बान, सांवरिया
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
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दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
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मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
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