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स्वागतका तरीका  [Short Story]
Moral Story - Moral Story (Shikshaprad Kahani)

कहा जाता है कि किसी नगरका एक नागरिक अतिथियों तथा अभ्यागतोंको अधिक परेशान करनेके लिये विख्यात हो गया था। कहते हैं कि वह अभ्यागतोंको स्वागत-सत्कारकी पूछताछ और आवभगतमें ही पूरा तंग कर देता था ।

इसपर एक दिन एक दूसरे व्यक्तिने, जो अपनी धुनका बड़ा पक्का था, उस मनुष्यको स्वयं अपनी आँखों देखना चाहा और चलकर उसकी परीक्षा लेनेकी ठानी। उसके मनमें यह बात जमती ही न थी कि 'कोई पुरुष स्वागत और आवभगतमें किसीको परेशान कैसे कर सकेगा?"

इन सब बातोंको सोचकर वह पुरुष पूर्वोक्त अरब सज्जनके दरवाजेपर उपस्थित हुआ और उसे नमस्कारकिया। गृहपतिने भी उससे पधारनेकी प्रार्थना की। वह भीतर गया।

अब जब गृहपतिने उसे स्वागतमन्दिरमें ले जाकर सर्वोत्तम पलंगपर विराजनेकी प्रार्थना की तो यह अभ्यागत बिना किंचिदपि ननु नच किये उसपर चुपचाप बैठ गया। अब थोड़ी देरमें वह एक बड़ा मुलायम मसनद उस आगन्तुकके लिये लाया और यह नवागत व्यक्ति भी पूर्ववत् बिना किसी आनाकानीके उसके सहारे बैठ रहा। थोड़ी देरमें गृहपतिने अतिथिको चौपड़ खेलनेके लिये निमन्त्रित किया और वह तुरंत उस खेलमें शामिल हो गया। अब उसने आगन्तुकके पास भोजन लाकर रख दिया। इस भले आदमीने भी तुरंत उसे खा ही लिया। अब उसने उसके हाथ-पैरधोते ही फुलवाड़ीमें टहलनेका अनुरोध किया और वह भी सीधे वहाँ जाकर टहलने लगा।

अब अभ्यागतने उस गृहपतिसे कहा- 'मैं आपसे एक बात कहना चाहता हूँ।' 'वह क्या' गृहपतिने पूछा।

'मुझे यह पता चला है कि आप अतिथियोंको इस लिये अधिक परेशान कर देते हैं कि वे जो नहीं चाहते उसे आप उनके सामने उपस्थित कर देते हैं और वे जो चाहते हैं उसे आप ध्यानमें भी नहीं लाते।'

'हाँ, हाँ, मैं आपकी बात समझ गया। मेरे घर जब कोई आता है तो जब मैं उसे उत्तम शय्या, उत्तम आसन देने लगता हूँ तो प्रायः वह सबको अस्वीकार करता है। जब मैं भोजन लाता हूँ तो वह कहता है 'नहीं; नहीं; धन्यवाद ।' जब मैं उन्हें शतरंज खेलनेके लिये आमन्त्रितकरता हूँ तो वह उसे भी स्वीकार नहीं करता। ऐसी दशामें ठीक विरुद्ध बुद्धिके लोगोंको हम कैसे प्रसन्न करें। मनुष्यको यह चाहिये कि वह जब मित्रोंके साथ मिले तो उसके विचारोंका भी ध्यान रखे' गृहपति बोल गया एक ही स्वरमें।

'और यही बात आपको भी चाहिये। एक दूसरेके ध्यानसे ही निर्वाह सम्भव है। जो अपनेको बुरा प्रतीत हो वह दूसरेके साथ न करे, जो अपनेको रुचे वह दूसरोंको भी मिले, यह बड़ा व्यापक नियम है तथापि रुचिवैचित्र्यको जानकर भिन्न रुचिवाले व्यक्तिके मनोनुकूल व्यवहार-स्वागत-मिलन ही स्वागतकी विशेषता है।' आगन्तुकने? कहा।

-जा0 श0



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svaagataka tareekaa

kaha jaata hai ki kisee nagaraka ek naagarik atithiyon tatha abhyaagatonko adhik pareshaan karaneke liye vikhyaat ho gaya thaa. kahate hain ki vah abhyaagatonko svaagata-satkaarakee poochhataachh aur aavabhagatamen hee poora tang kar deta tha .

isapar ek din ek doosare vyaktine, jo apanee dhunaka bada़a pakka tha, us manushyako svayan apanee aankhon dekhana chaaha aur chalakar usakee pareeksha lenekee thaanee. usake manamen yah baat jamatee hee n thee ki 'koee purush svaagat aur aavabhagatamen kiseeko pareshaan kaise kar sakegaa?"

in sab baatonko sochakar vah purush poorvokt arab sajjanake daravaajepar upasthit hua aur use namaskaarakiyaa. grihapatine bhee usase padhaaranekee praarthana kee. vah bheetar gayaa.

ab jab grihapatine use svaagatamandiramen le jaakar sarvottam palangapar viraajanekee praarthana kee to yah abhyaagat bina kinchidapi nanu nach kiye usapar chupachaap baith gayaa. ab thoda़ee deramen vah ek bada़a mulaayam masanad us aagantukake liye laaya aur yah navaagat vyakti bhee poorvavat bina kisee aanaakaaneeke usake sahaare baith rahaa. thoda़ee deramen grihapatine atithiko chaupada़ khelaneke liye nimantrit kiya aur vah turant us khelamen shaamil ho gayaa. ab usane aagantukake paas bhojan laakar rakh diyaa. is bhale aadameene bhee turant use kha hee liyaa. ab usane usake haatha-pairadhote hee phulavaada़eemen tahalaneka anurodh kiya aur vah bhee seedhe vahaan jaakar tahalane lagaa.

ab abhyaagatane us grihapatise kahaa- 'main aapase ek baat kahana chaahata hoon.' 'vah kyaa' grihapatine poochhaa.

'mujhe yah pata chala hai ki aap atithiyonko is liye adhik pareshaan kar dete hain ki ve jo naheen chaahate use aap unake saamane upasthit kar dete hain aur ve jo chaahate hain use aap dhyaanamen bhee naheen laate.'

'haan, haan, main aapakee baat samajh gayaa. mere ghar jab koee aata hai to jab main use uttam shayya, uttam aasan dene lagata hoon to praayah vah sabako asveekaar karata hai. jab main bhojan laata hoon to vah kahata hai 'naheen; naheen; dhanyavaad .' jab main unhen shataranj khelaneke liye aamantritakarata hoon to vah use bhee sveekaar naheen karataa. aisee dashaamen theek viruddh buddhike logonko ham kaise prasann karen. manushyako yah chaahiye ki vah jab mitronke saath mile to usake vichaaronka bhee dhyaan rakhe' grihapati bol gaya ek hee svaramen.

'aur yahee baat aapako bhee chaahiye. ek doosareke dhyaanase hee nirvaah sambhav hai. jo apaneko bura prateet ho vah doosareke saath n kare, jo apaneko ruche vah doosaronko bhee mile, yah bada़a vyaapak niyam hai tathaapi ruchivaichitryako jaanakar bhinn ruchivaale vyaktike manonukool vyavahaara-svaagata-milan hee svaagatakee visheshata hai.' aagantukane? kahaa.

-jaa0 sha0

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