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शूलीसे स्वर्णसिंहासन  [Wisdom Story]
आध्यात्मिक कहानी - Story To Read (बोध कथा)

राजपुरोहित तथा सेठ सुदर्शनकी प्रगाढ़ मैत्री थी। पुरोहितजीकी पत्नीने सेठके सदाचारकी परीक्षा लेनेका निश्चय किया। एक दिन जब पुरोहितजी घरसे कहीं गये। थे, उनकी पत्नीने सेठजीके पास संदेश भेजा - 'आपके मित्र अस्वस्थ हैं।'

सेठ सुदर्शन पुरोहितजीके घर पहुँचे तो पुरोहित पत्नीका पापपूर्ण प्रस्ताव सुनकर वे काँप उठे। उन्होंने कानोंपर हाथ रखकर कहा-'मुझे क्षमा करो बहिन !"

और वहाँसे चले आये।

राजपुरोहितकी पत्नी चम्पानरेशकी रानीके साथ दूसरे दिन धर्मचर्चा करते हुए बोलीं- 'आज भी पृथ्वीपर सच्चे सदाचारी विद्यमान हैं।'

रानी हँसी - 'तभीतक, जबतक कोई सुन्दरी नारी अपने कटाक्षका उन्हें लक्ष्य नहीं बनाती।'

पुरोहितानी - 'आपका भ्रम है रानीजी! ऐसे महापुरुष भी हैं जिन्हें देवाङ्गनाएँ भी विचलित नहीं कर सकतीं।

इतिहास साक्षी है।' रानी- 'वे बातें लिखने तथा पढ़नेकी ही हैं।'पुरोहितानी - 'आप चाहें तो परीक्षा कर देखें। सेठ सुदर्शन वे जा रहे हैं राजपथसे ।'

रानीको बात लग गयी। उसने दासी भेजकर सेठ सुदर्शनको राजभवनके अन्तः पुरमें बुलवाया। परंतु रानी विफल हुई। उसके हाव-भाव, प्रलोभन तथा धमकियोंका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। ऐसे अवसरोंपर प्रायः पराजित नारी जो करती है, रानीने भी वही किया। उसने सेठ सुदर्शनपर आरोप लगाया कि वे छिपकर अन्तःपुरमें पहुँचे और रानीको भ्रष्ट करना चाहते थे।

सेठ सुदर्शन मौन बने रहे। उनका अपराध ही ऐसा बताया गया था कि नरेश क्रोधान्ध हो उठे। उन्होंने आज्ञा दी - ' इसे इसी समय शूलीपर चढ़ा दो ।'

सेठ सुदर्शन शूली पर चढ़ाये जाने लगे; किंतु नरेश, बधिक तथा सभी उपस्थित लोग चकित रह गये यह देखकर कि शूली सहसा स्वर्णसिंहासन बन गयी। अब जाकर रानीके पापका भण्डाफोड़ हुआ। परंतु सेठने उसे जीवनदान दिला दिया।



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shooleese svarnasinhaasana

raajapurohit tatha seth sudarshanakee pragaadha़ maitree thee. purohitajeekee patneene sethake sadaachaarakee pareeksha leneka nishchay kiyaa. ek din jab purohitajee gharase kaheen gaye. the, unakee patneene sethajeeke paas sandesh bheja - 'aapake mitr asvasth hain.'

seth sudarshan purohitajeeke ghar pahunche to purohit patneeka paapapoorn prastaav sunakar ve kaanp uthe. unhonne kaanonpar haath rakhakar kahaa-'mujhe kshama karo bahin !"

aur vahaanse chale aaye.

raajapurohitakee patnee champaanareshakee raaneeke saath doosare din dharmacharcha karate hue boleen- 'aaj bhee prithveepar sachche sadaachaaree vidyamaan hain.'

raanee hansee - 'tabheetak, jabatak koee sundaree naaree apane kataakshaka unhen lakshy naheen banaatee.'

purohitaanee - 'aapaka bhram hai raaneejee! aise mahaapurush bhee hain jinhen devaanganaaen bhee vichalit naheen kar sakateen.

itihaas saakshee hai.' raanee- 've baaten likhane tatha padha़nekee hee hain.'purohitaanee - 'aap chaahen to pareeksha kar dekhen. seth sudarshan ve ja rahe hain raajapathase .'

raaneeko baat lag gayee. usane daasee bhejakar seth sudarshanako raajabhavanake antah puramen bulavaayaa. parantu raanee viphal huee. usake haava-bhaav, pralobhan tatha dhamakiyonka koee prabhaav naheen pada़aa. aise avasaronpar praayah paraajit naaree jo karatee hai, raaneene bhee vahee kiyaa. usane seth sudarshanapar aarop lagaaya ki ve chhipakar antahpuramen pahunche aur raaneeko bhrasht karana chaahate the.

seth sudarshan maun bane rahe. unaka aparaadh hee aisa bataaya gaya tha ki naresh krodhaandh ho uthe. unhonne aajna dee - ' ise isee samay shooleepar chadha़a do .'

seth sudarshan shoolee par chadha़aaye jaane lage; kintu naresh, badhik tatha sabhee upasthit log chakit rah gaye yah dekhakar ki shoolee sahasa svarnasinhaasan ban gayee. ab jaakar raaneeke paapaka bhandaaphoda़ huaa. parantu sethane use jeevanadaan dila diyaa.

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