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दुर्जन-सङ्गका फल  [हिन्दी कहानी]
Spiritual Story - Shikshaprad Kahani (प्रेरक कथा)

कोई राजा वनमें आखेटके लिये गया था। थककर वह एक वृक्षके नीचे रुक गया। वृक्षकी डालपर एक कौआ बैठा था। संयोगवश एक हंस भी उड़ता आया और उसी डालपर बैठ गया। कौएने स्वभाववश बीट कर दी जो राजाके सिरपर गिरी। इससे क्रोधमें आकर राजाने धनुषपर बाण चढ़ाया और कौएको लक्ष्य करके बाण छोड़ दिया। धूर्त कौआ तो उड़ गया; किंतु बाण हंसको लगा और वह लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ा। राजाने आश्चर्यसे कहा- 'अरे! इस वनमें क्या सफेद कौए होते हैं ?'

मरते हंसने उत्तर दिया—'राजन् ! मैं कौआ नहीं हूँ। मैं तो मान-सरोवरवासी हंस हूँ; किंतु कुछ क्षण कौएके समीप बैठनेका यह दारुण फल मुझे प्राप्त हुआ है।'



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durjana-sangaka phala

koee raaja vanamen aakhetake liye gaya thaa. thakakar vah ek vrikshake neeche ruk gayaa. vrikshakee daalapar ek kaua baitha thaa. sanyogavash ek hans bhee uda़ta aaya aur usee daalapar baith gayaa. kauene svabhaavavash beet kar dee jo raajaake sirapar giree. isase krodhamen aakar raajaane dhanushapar baan chadha़aaya aur kaueko lakshy karake baan chhoda़ diyaa. dhoort kaua to uda़ gayaa; kintu baan hansako laga aur vah lada़khada़aakar neeche gir pada़aa. raajaane aashcharyase kahaa- 'are! is vanamen kya saphed kaue hote hain ?'

marate hansane uttar diyaa—'raajan ! main kaua naheen hoon. main to maana-sarovaravaasee hans hoon; kintu kuchh kshan kaueke sameep baithaneka yah daarun phal mujhe praapt hua hai.'

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