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अपनी प्रशंसासे अरुचि  [बोध कथा]
Short Story - Moral Story (आध्यात्मिक कहानी)

एक बार लियेन्स नगरके विद्वानोंने एक लेखके लिये पुरस्कारकी घोषणा की। उस समय नेपोलियन युवक थे। पुरस्कार प्रतियोगितामें उन्होंने भी लेख भेजा और उनका लेख ही प्रथम पुरस्कारके योग्य माना गया। सम्राट् होनेपर नेपोलियनको यह बात भूल चुकी थी; किंतु उनके मन्त्री टेलीरान्तने एक विशेष व्यक्तिको भेजकर लियेन्ससे नेपोलियनके उस लेखकी मूल प्रतिमँगायी। लेखको सम्राट्के आगे रखकर उसने हँसते हुए पूछा - 'सम्राट् इस लेखके लेखकको जानते हैं ?' टेलीरान्तको आशा थी कि उसके इस कार्यसे सम्राट् उसपर प्रसन्न होंगे और वह पुरस्कार पायेगा; किंतु नेपोलियनने लज्जित होकर सिर झुका लिया और लेखको उठाकर उसने जलती अँगीठीमें डाल दिया । मन्त्री महोदय तो अपने सम्राट्का मुख देखते रह गये । – सु0 सिं0



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apanee prashansaase aruchi

ek baar liyens nagarake vidvaanonne ek lekhake liye puraskaarakee ghoshana kee. us samay nepoliyan yuvak the. puraskaar pratiyogitaamen unhonne bhee lekh bheja aur unaka lekh hee pratham puraskaarake yogy maana gayaa. samraat honepar nepoliyanako yah baat bhool chukee thee; kintu unake mantree teleeraantane ek vishesh vyaktiko bhejakar liyensase nepoliyanake us lekhakee mool pratimangaayee. lekhako samraatke aage rakhakar usane hansate hue poochha - 'samraat is lekhake lekhakako jaanate hain ?' teleeraantako aasha thee ki usake is kaaryase samraat usapar prasann honge aur vah puraskaar paayegaa; kintu nepoliyanane lajjit hokar sir jhuka liya aur lekhako uthaakar usane jalatee angeetheemen daal diya . mantree mahoday to apane samraatka mukh dekhate rah gaye . – su0 sin0

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