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प्रकाशानन्दजीको प्रबोध  [Wisdom Story]
हिन्दी कथा - छोटी सी कहानी (Spiritual Story)

काशी में वेदान्तके प्रकाण्ड पण्डित, सगुण उपासनाके विरोधी स्वामी प्रकाशानन्द सरस्वती रहते थे श्रीचैतन्यदेव जब पुरीमें प्रेमभक्तिका प्रवाह बहा रहे थे, तब उनपर कुछ नाराज होकर स्वामीजीने एक श्लोक लिखकर उनके पास भेजा

यत्रास्ते मणिकर्णिकामलसरः स्वर्दीर्घिका दीर्घिका

रत्नं तारकमक्षरं तनुभृते शम्भुः स्वयं यच्छति ।

तस्मिन्नद्भुतधामनि स्मररिपोर्निर्वाणमार्गे स्थिते

मूढोऽन्यत्र मरीचिकासु पशुवत् प्रत्याशया धावति ॥

'जहाँ मणिकर्णिका है, अमल सरोवर आदि पुण्यतोया तलाई और तालाब हैं तथा जहाँ शम्भु स्वयं जीवोंको 'तारक' यह दुर्लभ अक्षर-रत्न प्रदान करते है, कामशत्रुके ऐसे मुक्तिपथस्वरूप अद्भुत स्थानका परित्याग करके मूर्ख-लोग ही पशुवत् प्रत्याशाकी मोहिनी मूर्तिपर विमुग्ध होकर मरीचिकाके लोभसे । इधर-उधर भटकते हैं।'श्लोक पढ़कर श्रीचैतन्यदेव मुसकराये और उत्तरमें निम्नलिखित श्लोक लिखकर भेज दिया-

घर्माम्भो मणिकर्णिका भगवतः पादाम्बु भागीरथी

काशीनां पतिरर्द्धमस्य भजते श्रीविश्वनाथः स्वयम् ।

एतस्यैव हि नाम शम्भुनगरे निस्तारकं तारकं तस्मात्

कृष्णपदाम्बुजं भज सखे श्रीपादनिर्वाणदम् ॥

'जिनके पसीनेके जलसे मणिकर्णिकाकी उत्पत्ति हुई, जिनके चरणकमलोंका धोवन ही भागीरथी गङ्गा हैं, श्रीविश्वनाथ जिनका आधा अङ्ग बने हुए हैं और श्रीशम्भु जिनका तारक नाम देकर जीवोंका निस्तार करते रहते हैं, हे सखे! तुम उन्हीं मुक्तिदाता श्रीकृष्णके चरणकमलोंका भजन करो।'

इस श्लोकको पढ़कर प्रकाशानन्दजीके मनमें बड़ा परिवर्तन हो गया। इसके बाद श्रीचैतन्यदेव जब काशी पधारे, तब स्वामी प्रकाशानन्दजी दो महीने उनके सत्सङ्गमें रहकर श्रीकृष्ण भक्त बन गये।



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prakaashaanandajeeko prabodha

kaashee men vedaantake prakaand pandit, sagun upaasanaake virodhee svaamee prakaashaanand sarasvatee rahate the shreechaitanyadev jab pureemen premabhaktika pravaah baha rahe the, tab unapar kuchh naaraaj hokar svaameejeene ek shlok likhakar unake paas bhejaa

yatraaste manikarnikaamalasarah svardeerghika deerghikaa

ratnan taarakamaksharan tanubhrite shambhuh svayan yachchhati .

tasminnadbhutadhaamani smararipornirvaanamaarge sthite

moodho'nyatr mareechikaasu pashuvat pratyaashaya dhaavati ..

'jahaan manikarnika hai, amal sarovar aadi punyatoya talaaee aur taalaab hain tatha jahaan shambhu svayan jeevonko 'taaraka' yah durlabh akshara-ratn pradaan karate hai, kaamashatruke aise muktipathasvaroop adbhut sthaanaka parityaag karake moorkha-log hee pashuvat pratyaashaakee mohinee moortipar vimugdh hokar mareechikaake lobhase . idhara-udhar bhatakate hain.'shlok padha़kar shreechaitanyadev musakaraaye aur uttaramen nimnalikhit shlok likhakar bhej diyaa-

gharmaambho manikarnika bhagavatah paadaambu bhaageerathee

kaasheenaan patirarddhamasy bhajate shreevishvanaathah svayam .

etasyaiv hi naam shambhunagare nistaarakan taarakan tasmaat

krishnapadaambujan bhaj sakhe shreepaadanirvaanadam ..

'jinake paseeneke jalase manikarnikaakee utpatti huee, jinake charanakamalonka dhovan hee bhaageerathee ganga hain, shreevishvanaath jinaka aadha ang bane hue hain aur shreeshambhu jinaka taarak naam dekar jeevonka nistaar karate rahate hain, he sakhe! tum unheen muktidaata shreekrishnake charanakamalonka bhajan karo.'

is shlokako padha़kar prakaashaanandajeeke manamen bada़a parivartan ho gayaa. isake baad shreechaitanyadev jab kaashee padhaare, tab svaamee prakaashaanandajee do maheene unake satsangamen rahakar shreekrishn bhakt ban gaye.

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