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सर्वत्याग  [Hindi Story]
हिन्दी कथा - Story To Read (शिक्षदायक कहानी)

देवगुरु महर्षि बृहस्पतिके पुत्र कचने युवा होते. ही निश्चय किया कि 'प्राणीका पहला कर्तव्य है जन्म-मरणके पाशंसे छुटकारा पा लेना।' वे देवगुरुके पुत्र थे, वेद-वेदाङ्गों विद्वान थे। सात्विकता उनकी पैतृक सम्पत्ति थी। उन्हें सद्गुरु ढूँढना नहीं था पिताकी सेवामें उपस्थित होकर उन्होंने पूछा- 'भगवन् । इस संसारसागरसे मैं कैसे पार हो सकता है?"

देवगुरु बोले- 'पुत्र नाना अनर्थरूपी संसारसागरसे जीव सर्वत्यागका आश्रय लेकर अनायास पार हो जाता है।'

पिताका उपदेश सुनकर कचने उन्हें प्रणाम किया और देवलोक त्यागकर वे एक वनमें चले गये। महर्षि बृहस्पतिको इस प्रकार पुत्रके जानेसे न खेद हुआ न शोक और न चिन्ता ही पुत्र सत्पथपर जाता हो तो विचारवान् पिताको प्रसन्नता ही होती है।

कचको देवलोक से गये आठ वर्ष बीत गये। उनके चित्तकी क्या दशा है, यह जाननेके लिये महर्षि बृहस्पति उनके तपोवनमें पहुँचे। कचने पिताको प्रणाम किया, उनकी पूजा की और बोले-'भगवन्! सर्वत्याग किये मुझे आठ वर्ष हो गये; किंतु मुझे शान्ति नहीं मिली।'

'पुत्र! सभीका त्याग करो।' केवल इतना कहकर देवगुरु बृहस्पति अदृश्य हो गये। महर्षिके अदृश्य हो जानेपर कचने अपने शरीरपरसे वल्कल उतार दिया। वह दिगम्बर अवधूत बन गया। उसने वह आश्रम छोड़ दिया। अब धूप, शीत या वर्षासे बचनेके लिये वह गुफामें भी नहीं जाता था। एक स्थानपर वह नहीं रहता था। दिगम्बर अवधूत कचका अब न कोई आश्रय था न आश्रम वह तपस्यासे क्षीणकाय हो गया।

तीन वर्ष और बीत गये। सहसा एक वनमें महर्षि बृहस्पति कचके सामने प्रकट हुए। इस बार उन्होंने पुत्रका आलिङ्गन किया। कचने पितासे कहा-'भगवन्। मैंने आश्रम, वल्कल, कमण्डलु आदि सबका त्याग कर दिया; किंतु आत्मतत्त्वका ज्ञान मुझे अब भी नहीं हुआ।'

बृहस्पतिजी बोले- 'पुत्र! चित्त ही सब कुछ है। तुम उस चित्तका ही त्याग करो। चित्तका त्याग होसर्वत्याग कहा जाता है।'

देवगुरु उपदेश देकर चले गये। कच बैठकर सोचने लगे कि 'चित्त है क्या और उसका त्याग कैसे किया जाय ?' बहुत प्रयत्न करनेपर भी जब उन्हें चित्तका पता नहीं लगा, तब वे स्वर्गमें अपने पिताकी सेवामें उपस्थित हुए और वहाँ उन्होंने पूछा-'भगवन्। चित्त क्या है ?"

देवगुरुने बतलाया-'आयुष्मन् अपना अहंकार ही चित्त है। प्राणीमें जो यह देहके प्रति अहंभाव है, यही त्याज्य है।'

कचके सामने एक समस्या आ गयी। उन्होंने फिर पूछा- 'इस अहंकारका त्याग कैसे हो सकता है? यह तो असम्भव लगता है।'

देवगुरु हँसकर बोले- 'पुत्र! अहंकारका त्याग तो कोमल पुष्पको मसल देनेकी अपेक्षा भी सुगम है। इस त्यागमें कोई क्लेश है ही नहीं जो वस्तु अज्ञानमे उत्पन्न होती है, वह ज्ञान होनेपर स्वतः नष्ट हो जाती है। एक ही चेतन सत्ता सर्वत्र व्याप्त है। उस साक्षीके अपरिचय के कारण देहमें मोहवश अहंभाव हुआ है। अतः साक्षीका परिचय होनेपर यह अहंकार स्वतः नष्ट हो जायगा। जैसे रस्सीमें सर्प प्रतीत होता हो, इसी प्रकार यह समस्त प्रपञ्च एक ही चेतन सत्तामें प्रतीत हो रहा है, वस्तुतः इसकी कोई सत्ता नहीं है। एक, अनादि, अनन्त चैतन्य मात्र ही सत्य है।'

'एक ही चिन्मात्र सत्तामें ये दृश्य क्यों हैं, कैसे हैं, इनका क्या स्वरूप है यह बात अनिर्वचनीय है; क्योंकि जो वस्तु है नहीं, केवल भ्रमसे प्रतीत हो रही है, उसका विवेचन सम्भव नहीं है। इस भ्रममें सदा सब समय निर्विकाररूपसे जो 'अहं' का ज्ञान है, वह 'अहं' देह नहीं है, मन नहीं है; क्योंकि देहादि तो बदलते हैं, नष्ट होते हैं। 'अहं' का लक्ष्य तो वह देश, काल आदिसे अपरिच्छिन्न, निर्मल, निर्विकार, व्यापक, अद्वय, चिन्मात्र सत्ता ही है।

'देहमें अहंभावको त्यागकर जो सबको आधारभूत चित् सत्ता है, ब्रा है, वही मैं हूँ-ऐसा निश्चय करो। | यह तुम्हारी परिच्छिन अहंभावना तो कोई वस्तु हीनहीं है।' देवगुरुने इस प्रकार अपना उपदेश समाप्त कर दिया।

कचका अन्त:करण तपस्यासे शुद्ध हो चुका था ।पिताके उपदेशको ग्रहण करनेमें उन्हें कठिनाई होनी नहीं थी। उनका ममत्व और अहंकार नष्ट हो गये। वे शुद्ध आत्मतत्त्वमें स्थित हो गये । – सु0 सिं0 (योगवासिष्ठ)



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sarvatyaaga

devaguru maharshi brihaspatike putr kachane yuva hote. hee nishchay kiya ki 'praaneeka pahala kartavy hai janma-maranake paashanse chhutakaara pa lenaa.' ve devaguruke putr the, veda-vedaangon vidvaan the. saatvikata unakee paitrik sampatti thee. unhen sadguru dhoondhana naheen tha pitaakee sevaamen upasthit hokar unhonne poochhaa- 'bhagavan . is sansaarasaagarase main kaise paar ho sakata hai?"

devaguru bole- 'putr naana anartharoopee sansaarasaagarase jeev sarvatyaagaka aashray lekar anaayaas paar ho jaata hai.'

pitaaka upadesh sunakar kachane unhen pranaam kiya aur devalok tyaagakar ve ek vanamen chale gaye. maharshi brihaspatiko is prakaar putrake jaanese n khed hua n shok aur n chinta hee putr satpathapar jaata ho to vichaaravaan pitaako prasannata hee hotee hai.

kachako devalok se gaye aath varsh beet gaye. unake chittakee kya dasha hai, yah jaananeke liye maharshi brihaspati unake tapovanamen pahunche. kachane pitaako pranaam kiya, unakee pooja kee aur bole-'bhagavan! sarvatyaag kiye mujhe aath varsh ho gaye; kintu mujhe shaanti naheen milee.'

'putra! sabheeka tyaag karo.' keval itana kahakar devaguru brihaspati adrishy ho gaye. maharshike adrishy ho jaanepar kachane apane shareeraparase valkal utaar diyaa. vah digambar avadhoot ban gayaa. usane vah aashram chhoda़ diyaa. ab dhoop, sheet ya varshaase bachaneke liye vah guphaamen bhee naheen jaata thaa. ek sthaanapar vah naheen rahata thaa. digambar avadhoot kachaka ab n koee aashray tha n aashram vah tapasyaase ksheenakaay ho gayaa.

teen varsh aur beet gaye. sahasa ek vanamen maharshi brihaspati kachake saamane prakat hue. is baar unhonne putraka aalingan kiyaa. kachane pitaase kahaa-'bhagavan. mainne aashram, valkal, kamandalu aadi sabaka tyaag kar diyaa; kintu aatmatattvaka jnaan mujhe ab bhee naheen huaa.'

brihaspatijee bole- 'putra! chitt hee sab kuchh hai. tum us chittaka hee tyaag karo. chittaka tyaag hosarvatyaag kaha jaata hai.'

devaguru upadesh dekar chale gaye. kach baithakar sochane lage ki 'chitt hai kya aur usaka tyaag kaise kiya jaay ?' bahut prayatn karanepar bhee jab unhen chittaka pata naheen laga, tab ve svargamen apane pitaakee sevaamen upasthit hue aur vahaan unhonne poochhaa-'bhagavan. chitt kya hai ?"

devagurune batalaayaa-'aayushman apana ahankaar hee chitt hai. praaneemen jo yah dehake prati ahanbhaav hai, yahee tyaajy hai.'

kachake saamane ek samasya a gayee. unhonne phir poochhaa- 'is ahankaaraka tyaag kaise ho sakata hai? yah to asambhav lagata hai.'

devaguru hansakar bole- 'putra! ahankaaraka tyaag to komal pushpako masal denekee apeksha bhee sugam hai. is tyaagamen koee klesh hai hee naheen jo vastu ajnaaname utpann hotee hai, vah jnaan honepar svatah nasht ho jaatee hai. ek hee chetan satta sarvatr vyaapt hai. us saaksheeke aparichay ke kaaran dehamen mohavash ahanbhaav hua hai. atah saaksheeka parichay honepar yah ahankaar svatah nasht ho jaayagaa. jaise rasseemen sarp prateet hota ho, isee prakaar yah samast prapanch ek hee chetan sattaamen prateet ho raha hai, vastutah isakee koee satta naheen hai. ek, anaadi, anant chaitany maatr hee saty hai.'

'ek hee chinmaatr sattaamen ye drishy kyon hain, kaise hain, inaka kya svaroop hai yah baat anirvachaneey hai; kyonki jo vastu hai naheen, keval bhramase prateet ho rahee hai, usaka vivechan sambhav naheen hai. is bhramamen sada sab samay nirvikaararoopase jo 'ahan' ka jnaan hai, vah 'ahan' deh naheen hai, man naheen hai; kyonki dehaadi to badalate hain, nasht hote hain. 'ahan' ka lakshy to vah desh, kaal aadise aparichchhinn, nirmal, nirvikaar, vyaapak, advay, chinmaatr satta hee hai.

'dehamen ahanbhaavako tyaagakar jo sabako aadhaarabhoot chit satta hai, bra hai, vahee main hoon-aisa nishchay karo. | yah tumhaaree parichchhin ahanbhaavana to koee vastu heenaheen hai.' devagurune is prakaar apana upadesh samaapt kar diyaa.

kachaka anta:karan tapasyaase shuddh ho chuka tha .pitaake upadeshako grahan karanemen unhen kathinaaee honee naheen thee. unaka mamatv aur ahankaar nasht ho gaye. ve shuddh aatmatattvamen sthit ho gaye . – su0 sin0 (yogavaasishtha)

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