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समताका भाव  [हिन्दी कहानी]
Moral Story - Spiritual Story (Hindi Story)

समताका भाव

एकबार युद्ध से सम्बन्धित कोई विशेष समाचार लेकर एक सैनिक वायुवेगसे सम्राट् नेपोलियनके पास आया। उस सैनिकका घोड़ा इतना थक गया था कि उसने वहीं दम तोड़ दिया। नेपोलियनने समाचार पढ़ा और उसका जवाब देते हुए उस घुड़सवारसे कहा 'सैनिक! तुम्हारा घोड़ा वीरगतिको प्राप्त हो चुका है, काम बहुत जरूरी है, अत: तुम मेरे इस विशेष घोड़ेपर सवार होकर युद्धभूमिमें जाओ और सेनापतिको हमारा यह पत्र पहुँचा दो।'
सैनिकको विश्वास नहीं हुआ। भला नेपोलियन जैसा ऊँचा शासक उसे अपने सर्वश्रेष्ठ घोड़ेपर बैठनेका आदेश दे !
वह बोला-'हुजूर! मुझ जैसे निम्न श्रेणीके एक तुच्छ सैनिकका आपके घोड़ेपर बैठना उचित नहीं। कहाँ आप आकाशके सूर्यकी तरह ऊँचे और कहाँ हम धरतीके कंकड़-पत्थर! मैं पैदल ही जाकर जल्दी-से जल्दी समाचार देनेका प्रयास करूँगा।'
'नहीं, नहीं! पैदल क्यों जाओगे ? दुनियामें ऐसी कोई भी उत्कृष्ट स्थिति या वस्तु नहीं, जिसपर तुम्हारा अधिकार न हो। एक छोटे-से-छोटा सैनिक भी कोई भी ऊँची वस्तु प्राप्त कर सकता है। बिना विलम्ब किये मेरे इस घोड़ेपर सवार होकर यह आवश्यक पत्र सेनानायकके पास पहुँचा दो ।'
सैनिक आश्चर्यमें डूबा हुआ भयभीत नेत्रोंसे नेपोलियनके उस सर्वश्रेष्ठ घोड़ेको निहारने लगा। उसे साहस न हुआ कि वह उस घोड़ेपर सवार हो। वह पुनः बोला- 'हुजूर! ऐसे सर्वोत्तम घोड़ेपर तो आपको ही बैठना शोभा देता है। मुझ-सरीखे मामूली सैनिकके भाग्यमें यह लिखा नहीं, अतः आप आग्रह न करें।'
इसपर नेपोलियनने उत्तर दिया- 'इस धरतीपर कोई भी ऐसी ऊँची, उत्तम या गौरवपूर्ण स्थिति अथवा असाधारण वस्तु नहीं, जिसका कोई साधारण व्यक्ति उपयोग न कर सके अथवा जिसे अपने पौरुषसे प्राप्त न कर सके!' और सैनिक उस अश्वपर आरूढ़ होकर
वहाँसे युद्धस्थलकी ओर रवाना हो गया।



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samataaka bhaava

samataaka bhaava

ekabaar yuddh se sambandhit koee vishesh samaachaar lekar ek sainik vaayuvegase samraat nepoliyanake paas aayaa. us sainikaka ghoda़a itana thak gaya tha ki usane vaheen dam toda़ diyaa. nepoliyanane samaachaar padha़a aur usaka javaab dete hue us ghuda़savaarase kaha 'sainika! tumhaara ghoda़a veeragatiko praapt ho chuka hai, kaam bahut jarooree hai, ata: tum mere is vishesh ghoda़epar savaar hokar yuddhabhoomimen jaao aur senaapatiko hamaara yah patr pahuncha do.'
sainikako vishvaas naheen huaa. bhala nepoliyan jaisa ooncha shaasak use apane sarvashreshth ghoda़epar baithaneka aadesh de !
vah bolaa-'hujoora! mujh jaise nimn shreneeke ek tuchchh sainikaka aapake ghoda़epar baithana uchit naheen. kahaan aap aakaashake sooryakee tarah oonche aur kahaan ham dharateeke kankada़-patthara! main paidal hee jaakar jaldee-se jaldee samaachaar deneka prayaas karoongaa.'
'naheen, naheen! paidal kyon jaaoge ? duniyaamen aisee koee bhee utkrisht sthiti ya vastu naheen, jisapar tumhaara adhikaar n ho. ek chhote-se-chhota sainik bhee koee bhee oonchee vastu praapt kar sakata hai. bina vilamb kiye mere is ghoda़epar savaar hokar yah aavashyak patr senaanaayakake paas pahuncha do .'
sainik aashcharyamen dooba hua bhayabheet netronse nepoliyanake us sarvashreshth ghoda़eko nihaarane lagaa. use saahas n hua ki vah us ghoda़epar savaar ho. vah punah bolaa- 'hujoora! aise sarvottam ghoda़epar to aapako hee baithana shobha deta hai. mujha-sareekhe maamoolee sainikake bhaagyamen yah likha naheen, atah aap aagrah n karen.'
isapar nepoliyanane uttar diyaa- 'is dharateepar koee bhee aisee oonchee, uttam ya gauravapoorn sthiti athava asaadhaaran vastu naheen, jisaka koee saadhaaran vyakti upayog n kar sake athava jise apane paurushase praapt n kar sake!' aur sainik us ashvapar aaroodha़ hokar
vahaanse yuddhasthalakee or ravaana ho gayaa.

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