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छलसे किया गया कार्य सफल नहीं होता  [हिन्दी कहानी]
आध्यात्मिक कहानी - Spiritual Story (प्रेरक कहानी)

छलसे किया गया कार्य सफल नहीं होता

गरुड़की माता विनताको उनकी सौत कडूने छलसे अपनी दासी बना लिया था। माताको दास्यभावसे मुक्त करानेके लिये गरुड़ने स्वर्गलोक जाकर अमृतके कलशका हरण कर लिया। गरुड़को अमृत ले जाते देख क्रोधसे भरकर इन्द्रने उनपर वज्र चलाया। गरुड़ने वज्राहत होकर भी हँसते हुए कोमल वाणीसे कहा- 'इन्द्र! जिनकी हड्डीसे यह वज्र बना है, उनके सम्मानके लिये मैं अपना एक पंख छोड़ देता हूँ। तुम उसका भी अन्त नहीं पा सकोगे। वज्राघातसे मुझे तनिक भी पीड़ा नहीं हुई है।' गरुड़ने अपना एक पंख गिरा दिया। उसे देखकर लोगोंको बड़ा आनन्द हुआ। सबने कहा, 'जिसका यह पंख है, उस पक्षीका नाम 'सुपर्ण' हो।' इन्द्रने चकित होकर मन-ही-मन कहा, 'धन्य है यह पराक्रमी पक्षी!' उन्होंने
कहा, 'पक्षिराज मैं जानना चाहता हूँ कि तुममें कितना बल है? साथ ही तुम्हारी मित्रता भी चाहता हूँ।"
गरुड़ने कहा, 'देवराज। आपके इच्छानुसार हमारी मित्रता रहे। बलके सम्बन्धमें क्या बताऊँ ? अपने मुँहसे अपने गुणका बखान, बलकी प्रशंसा सत्पुरुषोंकी दृष्टिसे अच्छी नहीं है।' इन्द्रने कहा, आप मेरी घनिष्ठ मित्रता स्वीकार कीजिये। यदि आपको अमृतको आवश्यकता न हो, तो मुझे दे दीजिये। आप यह ले जाकर जिन्हें देंगे, वे हमें बहुत दुःख देंगे।' गरुड़ने कहा, 'देवराज। अमृतको ले जानेका एक कारण है। मैं इसे किसीको पिलाना नहीं चाहता हूँ। मैं इसे जहाँ रखूं, वहाँसे आप उठा लाइये।' इन्द्रने सन्तुष्ट होकर कहा, 'गरुड़! मुझसे मुँहमाँगा वर ले लो।' गरुड़को सपकी दुष्टता और उनके छलके कारण होनेवाले माताके दुःखका स्मरण हो आया। उन्होंने वर माँगा - 'ये बलवान् सर्प ही मेरा खाद्य हों।' देवराज इन्द्रने कहा, 'तथास्तु।'
इन्द्रसे विदा होकर गरुड़ सर्पोंके स्थानपर आये। वहाँ उनकी माता भी थीं। गरुड़ने सर्पोंसे कहा, 'वह लो, मैं अमृत ले आया, इसे कुशॉपर रख देता हूँ। स्नान करके पवित्र हो इसे पी लो। अब तुमलोगोंक कथनानुसार मेरी माता दासीपनसे छूट गयी; क्योंकि मैंने तुम्हारी बात पूरी कर दी है।' सपने स्वीकार कर लिया। जब सर्पगण प्रसन्नतासे भरकर स्नान करनेके लिये गये, तब इन्द्र अमृतकलश उठाकर स्वर्गमें ले आये। जब लौटकर सपने देखा तो अमृत उस स्थानपर नहीं था। उन्होंने समझ लिया कि हमने विनताको दासी बनानेके लिये जो कपट किया था, उसीका यह फल है। फिर यह समझकर कि यहाँ अमृत रखा गया था, इसलिये सम्भव है कि इसमें उसका कुछ अंश लगा हो, सपने कुशोंको चाटना शुरू किया। ऐसा करते ही उनकी जीभके दो-दो टुकड़े हो गये। इस प्रकार छलसे किये गये कार्यका कभी सुन्दर परिणाम नहीं होता। [महाभारत]



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chhalase kiya gaya kaary saphal naheen hotaa

chhalase kiya gaya kaary saphal naheen hotaa

garuड़kee maata vinataako unakee saut kadoone chhalase apanee daasee bana liya thaa. maataako daasyabhaavase mukt karaaneke liye garuda़ne svargalok jaakar amritake kalashaka haran kar liyaa. garuda़ko amrit le jaate dekh krodhase bharakar indrane unapar vajr chalaayaa. garuda़ne vajraahat hokar bhee hansate hue komal vaaneese kahaa- 'indra! jinakee haddeese yah vajr bana hai, unake sammaanake liye main apana ek pankh chhoda़ deta hoon. tum usaka bhee ant naheen pa sakoge. vajraaghaatase mujhe tanik bhee peeda़a naheen huee hai.' garuda़ne apana ek pankh gira diyaa. use dekhakar logonko bada़a aanand huaa. sabane kaha, 'jisaka yah pankh hai, us paksheeka naam 'suparna' ho.' indrane chakit hokar mana-hee-man kaha, 'dhany hai yah paraakramee pakshee!' unhonne
kaha, 'pakshiraaj main jaanana chaahata hoon ki tumamen kitana bal hai? saath hee tumhaaree mitrata bhee chaahata hoon."
garuda़ne kaha, 'devaraaja. aapake ichchhaanusaar hamaaree mitrata rahe. balake sambandhamen kya bataaoon ? apane munhase apane gunaka bakhaan, balakee prashansa satpurushonkee drishtise achchhee naheen hai.' indrane kaha, aap meree ghanishth mitrata sveekaar keejiye. yadi aapako amritako aavashyakata n ho, to mujhe de deejiye. aap yah le jaakar jinhen denge, ve hamen bahut duhkh denge.' garuda़ne kaha, 'devaraaja. amritako le jaaneka ek kaaran hai. main ise kiseeko pilaana naheen chaahata hoon. main ise jahaan rakhoon, vahaanse aap utha laaiye.' indrane santusht hokar kaha, 'garuda़! mujhase munhamaanga var le lo.' garuda़ko sapakee dushtata aur unake chhalake kaaran honevaale maataake duhkhaka smaran ho aayaa. unhonne var maanga - 'ye balavaan sarp hee mera khaady hon.' devaraaj indrane kaha, 'tathaastu.'
indrase vida hokar garuda़ sarponke sthaanapar aaye. vahaan unakee maata bhee theen. garuda़ne sarponse kaha, 'vah lo, main amrit le aaya, ise kushaॉpar rakh deta hoon. snaan karake pavitr ho ise pee lo. ab tumalogonk kathanaanusaar meree maata daaseepanase chhoot gayee; kyonki mainne tumhaaree baat pooree kar dee hai.' sapane sveekaar kar liyaa. jab sarpagan prasannataase bharakar snaan karaneke liye gaye, tab indr amritakalash uthaakar svargamen le aaye. jab lautakar sapane dekha to amrit us sthaanapar naheen thaa. unhonne samajh liya ki hamane vinataako daasee banaaneke liye jo kapat kiya tha, useeka yah phal hai. phir yah samajhakar ki yahaan amrit rakha gaya tha, isaliye sambhav hai ki isamen usaka kuchh ansh laga ho, sapane kushonko chaatana shuroo kiyaa. aisa karate hee unakee jeebhake do-do tukada़e ho gaye. is prakaar chhalase kiye gaye kaaryaka kabhee sundar parinaam naheen hotaa. [mahaabhaarata]

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