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भगवन्नामका जप करनेवाला सदा निर्भय है  [Moral Story]
हिन्दी कहानी - Spiritual Story (Hindi Story)

दैत्यराज हिरण्यकशिपु हैरान था जिस विष्णुको मारनेके लिये उसने सहस्रों वर्षतक तपस्या करके वरदान प्राप्त किया, जिस विष्णुने उसके सगे भाईको वाराहरूप धारण करके मार डाला, उसी विष्णुका स्मरण, उसीके नामका जप, उसीकी उपासना चल रही है हिरण्यकशिपुके जीते जी उसके राज्यमें ही नहीं, उसके राजसदनमें और वह भी उसके सगे पुत्रके द्वारा। नन्हा सा बालक होनेपर भी प्रह्लाद अद्भुत हठी है। वह अपना हठ किसी प्रकार छोड़ नहीं रहा है। सबसे अधिक चिन्ताकी बात यह है कि जिस हिरण्यकशिपुको भौंहाँपर बल पड़ते ही समस्त लोक और लोकपाल थर-थर काँपने लगते हैं, उसके क्रोधकी प्रह्लाद राई-रत्ती भी चिन्ता नहीं करता।

प्रह्लाद जैसे डरना जानता ही नहीं और अब तो हिरण्यकशिपु स्वयं अपने उस नन्हे पुत्रसे चित्तमें भग खाने लगा है। वह सोचता है-'यह बालक क्या अमर है ? क्या इसे समस्त पदार्थोंपर विजय प्राप्त है? कहीं इसके विरोधसे मेरी मृत्यु तो नहीं होगी ?"

हिरण्यकशिपुकी चिन्ता अकारण नहीं थी। उसने दियोंको आज्ञा दी थी प्रह्लादको मार डालनेके लिये; किंतु दैत्य भी क्या कर सकते थे, उनके शस्त्र प्रह्लादका शरीर छूते हो ऐसे टूट जाते थे, जैसे हिम या चीनी बने हों। उन्होंने पर्वतपरसे फेंका प्रह्लादको तो वह बालक ऐसे उठ खड़ा हुआ जैसे पुष्पराशिपर गिरा हो। समुद्र डुबानेका प्रयत्न भी असफल रहा। सर्प, सिंह, मतवाले हाथी-पता नहीं क्यों, सभी क्रूर जीव उसके पास जाकर ऐसे बन जाते हैं मानो युगोंसे उसने उन्हें पाला हो उसे उपवास कराया गयालंबे समयतक, हालाहल विष दिया गया, सब तो हो गया। प्रह्लादपर क्या किसी मारक क्रियाका प्रभाव पड़ेगा ही नहीं? कोई मारक पदार्थ क्यों उसे हानि नहीं पहुँचाता ?

एक आश्वासन मिला दैत्यराजको। उसकी बहिन होलिकाको एक वस्त्र मिला था किसीसे, जिसे ओढ़कर वह अग्रिमें बैठनेपर भी जलती न थी। वह इस बार प्रह्लादको पकड़कर अग्रिमें बैठेगी। सूखी लकड़ियोंका पूरा पर्वत खड़ा कर दिया दैत्योंने। उसमें अग्नि लगा दी। होलिका अपना वरदानी वस्त्र ओढ़कर प्रह्लादको गोदमें लेकर उस लकड़ियोंके पर्वतपर पहले ही जा बैठी थी।

हिरण्यकशिपु स्वयं देखने आया था कि इस बार क्या होता है। अग्रिकी लपटोंमें कुछ देर तो कुछ दिखायी नहीं पड़ा और जब कुछ दिखायी पड़ा, तब दैत्योंके साथ वह दैत्यराज भी नेत्र फाड़कर देखता रह गया। होलिकाका कहीं पता नहीं था। वह भस्म बन चुकी थी और प्रह्लाद अग्रिकी लपटोंमें बैठा मन्द मन्द मुसकरा रहा था। हिरण्यकशिपुने पूछा- 'तुझे डर नहीं लगता?' प्रह्लाद बोले

रामनाम जपतां कुतो भयं सर्वतापशमनैकभेषजम् ।

पश्य तात मम गात्रसन्निधौ पावकोऽपि सलिलायतेऽधुना ॥

समस्त संतापोंको नष्ट करनेवाली एकमात्र औषधरूप रामनामका जप करनेवालेको भय कहाँ। पिताजी! देखिये न, इस समय मेरे शरीरसे लगनेवाली अग्रिकी लपटें भी मेरे लिये जलके समान शीतल हो गयी हैं। हिरण्यकशिपु भला, क्या कहता। वह चुप-चाप हट गया वहाँसे । (विष्णुपुराण 1। 15-20 )



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bhagavannaamaka jap karanevaala sada nirbhay hai

daityaraaj hiranyakashipu hairaan tha jis vishnuko maaraneke liye usane sahasron varshatak tapasya karake varadaan praapt kiya, jis vishnune usake sage bhaaeeko vaaraaharoop dhaaran karake maar daala, usee vishnuka smaran, useeke naamaka jap, useekee upaasana chal rahee hai hiranyakashipuke jeete jee usake raajyamen hee naheen, usake raajasadanamen aur vah bhee usake sage putrake dvaaraa. nanha sa baalak honepar bhee prahlaad adbhut hathee hai. vah apana hath kisee prakaar chhoda़ naheen raha hai. sabase adhik chintaakee baat yah hai ki jis hiranyakashipuko bhaunhaanpar bal pada़te hee samast lok aur lokapaal thara-thar kaanpane lagate hain, usake krodhakee prahlaad raaee-rattee bhee chinta naheen karataa.

prahlaad jaise darana jaanata hee naheen aur ab to hiranyakashipu svayan apane us nanhe putrase chittamen bhag khaane laga hai. vah sochata hai-'yah baalak kya amar hai ? kya ise samast padaarthonpar vijay praapt hai? kaheen isake virodhase meree mrityu to naheen hogee ?"

hiranyakashipukee chinta akaaran naheen thee. usane diyonko aajna dee thee prahlaadako maar daalaneke liye; kintu daity bhee kya kar sakate the, unake shastr prahlaadaka shareer chhoote ho aise toot jaate the, jaise him ya cheenee bane hon. unhonne parvataparase phenka prahlaadako to vah baalak aise uth khada़a hua jaise pushparaashipar gira ho. samudr dubaaneka prayatn bhee asaphal rahaa. sarp, sinh, matavaale haathee-pata naheen kyon, sabhee kroor jeev usake paas jaakar aise ban jaate hain maano yugonse usane unhen paala ho use upavaas karaaya gayaalanbe samayatak, haalaahal vish diya gaya, sab to ho gayaa. prahlaadapar kya kisee maarak kriyaaka prabhaav pada़ega hee naheen? koee maarak padaarth kyon use haani naheen pahunchaata ?

ek aashvaasan mila daityaraajako. usakee bahin holikaako ek vastr mila tha kiseese, jise odha़kar vah agrimen baithanepar bhee jalatee n thee. vah is baar prahlaadako pakada़kar agrimen baithegee. sookhee lakada़iyonka poora parvat khada़a kar diya daityonne. usamen agni laga dee. holika apana varadaanee vastr odha़kar prahlaadako godamen lekar us lakada़iyonke parvatapar pahale hee ja baithee thee.

hiranyakashipu svayan dekhane aaya tha ki is baar kya hota hai. agrikee lapatonmen kuchh der to kuchh dikhaayee naheen pada़a aur jab kuchh dikhaayee pada़a, tab daityonke saath vah daityaraaj bhee netr phaada़kar dekhata rah gayaa. holikaaka kaheen pata naheen thaa. vah bhasm ban chukee thee aur prahlaad agrikee lapatonmen baitha mand mand musakara raha thaa. hiranyakashipune poochhaa- 'tujhe dar naheen lagataa?' prahlaad bole

raamanaam japataan kuto bhayan sarvataapashamanaikabheshajam .

pashy taat mam gaatrasannidhau paavako'pi salilaayate'dhuna ..

samast santaaponko nasht karanevaalee ekamaatr aushadharoop raamanaamaka jap karanevaaleko bhay kahaan. pitaajee! dekhiye n, is samay mere shareerase laganevaalee agrikee lapaten bhee mere liye jalake samaan sheetal ho gayee hain. hiranyakashipu bhala, kya kahataa. vah chupa-chaap hat gaya vahaanse . (vishnupuraan 1. 15-20 )

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