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समस्याओंका समाधान  [प्रेरक कहानी]
हिन्दी कहानी - Moral Story (आध्यात्मिक कथा)

समस्याओंका समाधान

एक गाँवमें एक वयोवृद्ध सरपंच रहते थे। दूर दूरके लोग उनसे अपनी समस्याओंका समाधान और इंझटोंका निबटारा कराने आया करते थे। सरपंचके नामसे ही उनकी ख्याति थी।
एक दिन किसी गाँवसे कुछ आदमी अपना इन्साफ कराने आये। उस गाँवमें वे पहली बार आये थे और सरपंचका घर भी उन्होंने देखा न था। इसलिये गाँवके समीप पहुँचनेपर उन्होंने नियत स्थानपर पहुँचने-सम्बन्धी पूछताछ आरम्भ की।
एक खेतमें चार हलवाहे खेत जोत रहे थे। उनसे उन्होंने पूछा- 'सरपंचजीका घर बतायें और उनके कुशल- समाचार बतायें।' हलवाहोंने उत्तर दिया- 'घर तो सामने ही है, पर वे कुछ सुनते-समझते नहीं।' आगन्तुक असमंजसमें पड़ गये कि यदि सुनते-समझते ही नहीं, तो समस्याका समाधान कैसे करेंगे? फिर भी उन्होंने उनके पासतक चलना ही ठीक समझा।
आगे चलनेपर एक कुएँपर चार महिलाएँ पानी भरती मिलीं। उनसे सरपंचजीके बारेमें कुछ पूछा। उन्होंने कहा-'उनको कुछ दीखता-भालता तो है ही। नहीं। आप व्यर्थ जा रहे हैं।'
तो भी इस कौतूहलके रहते वे सरपंचके घर जाने से रुके नहीं। जब मकान समीप आ गया तो दरवाजेपर एक बुढ़िया बैठी मिली। उससे पूछा—'सरपंचजीका घर यही है?' उसने तपाक्से कहा- 'वह तो मर गये, जाकर क्या करोगे ?' आगन्तुकोंका आश्चर्य और भी बढ़ा। पर वे आगे ही बढ़े।
सरपंच अच्छे-खासे अपने तख्तपर बैठे थे।उन्होंने आगन्तुकाँसे कुशल- समाचार पूछा, सत्कार किया और आनेका कारण बतानेको कहा
आगन्तुकोंने अपनी बात कहनेसे पहले उनके सम्बन्धमें जो कहा गया, उसका ब्योरा बताया और पूछा कि लोग आपके बारेमें ऐसी बातें क्यों कहते हैं ?
सरपंचने कहा- 'मेरी बड़ी गृहस्थी है। उसमें अनेक प्रकृतिके सदस्य हैं। सभी अपनी माँगें बढ़ चढ़कर रखते हैं। न परामर्श मानते हैं, न अनुशासन। ऐसी दशामें उनका रुष्ट होना स्वाभाविक है।'
चार हलवाहे मेरे चार बेटे हैं। वे काम करनेसेजी चुराते हैं और लड़ते-झगड़ते हैं। कुएँपर जो चार महिलाएँ मिली थीं, वे चारों बेटोंकी बहुएँ हैं अपने-अपने जेवर, कपड़े के लिये, मायके जानेके लिये रोज तकरार करती रहती हैं। मैं उनकी बातोंपर ध्यान न देकर टालता रहता हूँ। जो दरवाजेपर बैठी बुढ़िया थी, मेरी पत्नी है। आये दिन तीर्थयात्रापर चलने और घरके झंझट छोड़ने की बात कहती है, उससे भी मेरा सहमत होना कठिन है।.
आगन्तुकोंने समझा कि समस्या सभीके घरोंमें है. पर उनका समाधान आवेशमें आकर तत्काल करनेकी बात नहीं सोची जा सकती। सहनशीलता, दूरदर्शिता और धैर्य रखकर ही उन्हें समयानुसार पूरा किया जा सकता है। इस तथ्य को समझ लेनेके बाद आगन्तुकोंका इस समाधान हो गया। उन्होंने अपनी घरेलू समस्याएँ इसी आधार पर हल करनेका निश्चय किया।



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samasyaaonka samaadhaana

samasyaaonka samaadhaana

ek gaanvamen ek vayovriddh sarapanch rahate the. door doorake log unase apanee samasyaaonka samaadhaan aur injhatonka nibataara karaane aaya karate the. sarapanchake naamase hee unakee khyaati thee.
ek din kisee gaanvase kuchh aadamee apana insaaph karaane aaye. us gaanvamen ve pahalee baar aaye the aur sarapanchaka ghar bhee unhonne dekha n thaa. isaliye gaanvake sameep pahunchanepar unhonne niyat sthaanapar pahunchane-sambandhee poochhataachh aarambh kee.
ek khetamen chaar halavaahe khet jot rahe the. unase unhonne poochhaa- 'sarapanchajeeka ghar bataayen aur unake kushala- samaachaar bataayen.' halavaahonne uttar diyaa- 'ghar to saamane hee hai, par ve kuchh sunate-samajhate naheen.' aagantuk asamanjasamen pada़ gaye ki yadi sunate-samajhate hee naheen, to samasyaaka samaadhaan kaise karenge? phir bhee unhonne unake paasatak chalana hee theek samajhaa.
aage chalanepar ek kuenpar chaar mahilaaen paanee bharatee mileen. unase sarapanchajeeke baaremen kuchh poochhaa. unhonne kahaa-'unako kuchh deekhataa-bhaalata to hai hee. naheen. aap vyarth ja rahe hain.'
to bhee is kautoohalake rahate ve sarapanchake ghar jaane se ruke naheen. jab makaan sameep a gaya to daravaajepar ek budha़iya baithee milee. usase poochhaa—'sarapanchajeeka ghar yahee hai?' usane tapaakse kahaa- 'vah to mar gaye, jaakar kya karoge ?' aagantukonka aashchary aur bhee badha़aa. par ve aage hee badha़e.
sarapanch achchhe-khaase apane takhtapar baithe the.unhonne aagantukaanse kushala- samaachaar poochha, satkaar kiya aur aaneka kaaran bataaneko kahaa
aagantukonne apanee baat kahanese pahale unake sambandhamen jo kaha gaya, usaka byora bataaya aur poochha ki log aapake baaremen aisee baaten kyon kahate hain ?
sarapanchane kahaa- 'meree bada़ee grihasthee hai. usamen anek prakritike sadasy hain. sabhee apanee maangen badha़ chadha़kar rakhate hain. n paraamarsh maanate hain, n anushaasana. aisee dashaamen unaka rusht hona svaabhaavik hai.'
chaar halavaahe mere chaar bete hain. ve kaam karanesejee churaate hain aur lada़te-jhagada़te hain. kuenpar jo chaar mahilaaen milee theen, ve chaaron betonkee bahuen hain apane-apane jevar, kapada़e ke liye, maayake jaaneke liye roj takaraar karatee rahatee hain. main unakee baatonpar dhyaan n dekar taalata rahata hoon. jo daravaajepar baithee budha़iya thee, meree patnee hai. aaye din teerthayaatraapar chalane aur gharake jhanjhat chhoda़ne kee baat kahatee hai, usase bhee mera sahamat hona kathin hai..
aagantukonne samajha ki samasya sabheeke gharonmen hai. par unaka samaadhaan aaveshamen aakar tatkaal karanekee baat naheen sochee ja sakatee. sahanasheelata, dooradarshita aur dhairy rakhakar hee unhen samayaanusaar poora kiya ja sakata hai. is tathy ko samajh leneke baad aagantukonka is samaadhaan ho gayaa. unhonne apanee ghareloo samasyaaen isee aadhaar par hal karaneka nishchay kiyaa.

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